Book Title: Vilasvaikaha
Author(s): Sadharan, R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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साहारणकइघिरइया
[९.३३ सो जपइ एत्थ सणंकुमारु अज्ज वि न पहुत्तउ अम्ह बारु । सुव्वइ य विवण्णउं जाणवत्तु मह भाइणेउ संदेहु पत्तु । ५ इय निसुणेवि सोय-वसंगएण मई चिंतिउं साहस-संगएण । उत्तरिउ ताव दुत्तरु समुदु अणुहविउ किलेसु महा-रउदु । तह वि हु उवलक्षु न सो कुमारु तुस-कंडणु केवल किउ असारु । ता पुण्ण-विवज्जिउ किं करेमि सायर-तडे चिय विरएवि मरेमि ।
गुरु-कज्ज-भार-उव्वहण-सज्ज पारद्ध-निरालस-सिद्ध-कज्ज । १० पहु-पेसणु सफलउं जे करेंति ते अन्न के वि सप्पुरिस होति ।
पुण्ण-हीणु अम्हारिसो पुणो एउ कज्ज साहेइ किह जणो । ता पइण्ण पूरेमि संपयं निदहेमि जलणेण अप्पयं ॥३२॥
[३३]
तो जाएवि रयणायर-तडम्मि बहु सारकट्ठ मेलेवि वणम्मि । पज्जालिउ मई सयमेव अग्गिजाला-कलावु गउ गयण-मग्गि । एत्थंतरे परियरु संजमेवि मई जंपिउं कर-संपुडु रएवि ।
भो भो निसुणेहु वण-देवयाहो जलनिहि-तड-काणण-सेवयाहो । ५ इह लोय-पाल पंच वि सुगंति जे सयल-लोय-चेद्विउ मुणंति । मई तइयहं ताव नरिंद-पासि परिस पइण्ण किय गरुय आसि । जइ कह वि कुमारु न सो लहेमि अप्पाणु जलिय-हुयवहे दहेमि । सो सयलु गविट्ठउ मइं न पत्तु तो एवहिं पेच्छह मज्झ सत्तु ।
इय भणिवि चिोवरि मई अकंप तरु-सिहरे चडेविणु दिन्न झंप । १० जा न चिय न दारु न जलणु दिछु अच्छामि पउम-सरवरे निविठु ।
तो मणम्मि अच्छरिय-जुत्तउ देवयाए पञ्चक्खु वुत्तउ । पुत्त तुज्झ सत्तेण तुठिया देवया अहं वण-अहिटिया ॥३३॥
मई रक्खिउ तुहुं हुयवहे पविठ्ठ वरु वरहि पुत्त जो तुज्झ इटु ।
मई भणिउ देवि वरु देहि सारु देक्खालहि मज्झ सणंकुमारु । [३२] १. पु०भायणेउ ७. ला० तुस-खंडणु १०. पु० करंति, ला. हुंति। ११. ला० पुण्ण -हीण [३३] १. पु० जायवि, ला० मेलिवि १०. पु० ता न...पिच्छामि......निदिदछु ।
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