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९. भाषा अने व्याकरण ई. स. १९१८ मांडॉ. याकोबीए भविसयत्तकहा प्रसिद्ध करी त्यार थी मांडी आज सुधी. मां घणा अपभ्रंश ग्रंथो प्रकाशित थई चूक्या छे. अने अनेक विद्वानोए अपभ्रंश भाषा अने साहित्यना विविध पासाओनी छणावट करी छे.
गुजराती, मारवाडी अने पश्चिमी हिंदी बोलीओ जेमांथी विकसी आवी ते अपभ्रंश भाषा ईसवी पांचमी सदी आसपास भारतना पश्चिम कांठानी निवासी प्रजाओनी बोलचालनी भाषा हती अने पाछळथी पंडितो द्वारा तेमां साहित्य लखायाथी साहित्य-भाषा बनी स्थिर थई तेटलो हकीकत तो लगभग सर्वस्वीकृत छे. आ स्थिर साहित्यीक के शिष्टपान्य अपभ्रंशने विद्वानोए नागर अपभ्रश कह्यो छे.'
__ अपभ्रंशनुं व्याकरण आचार्य हेमचन्द्रसूरिए पोताना सिद्ध हेमशब्दानुशासनमां अष्टम अध्याय (पाद-४,सूत्र ३२९-४४८) मां उदाहरणो साथे अप्युं छे. हेमचन्द्राचार्यनी संचयलक्षी दृष्टिने कारणे तेमणे आपेला उदाहरणोमां अपभ्रंशना बोलीभेदोनी भात जणाई आवे छे. परंतु एमणे प्रतिपादित करेल अपभ्रंश एकंदरे नागर अपभ्रंश छे.२
विलासर्वई-कहानी भाषा आ नागर अपभ्रंश छे.
अपभ्रंश व्याकरण- अनेक जगाए आलेखन थई चूक्युं होवाथी अहीं समग्र व्याकरण न आपतां विलासवई-कहाना अपभ्रंशनी मुख्य मुख्य लाक्षणिकताओ नोंधवामां आवी छे. ध्वनिपरिवत्तन :
(१) ध्वनि विषयक लाक्षणिकताओमा प्रथम नोंघनीय छे 'न' कार-विषयक वलाण. हस्तप्रतोना परिचयमा जणाव्या मुजब बन्ने प्रतोमां आदि 'न' अने मध्यवर्ती संयुक्त 'न' सुरक्षित छे.
(२) 'य' श्रुति : सि. हे. ८. १. १८० 'अवर्णो यश्रुतिः 'विधान उपरथी प्रतीत थाय छे के व्यंजन लोप पछी अवशिष्ट 'अ' ने 'आ'नी मध्ये 'य' श्रुति मूकवामां आवती. परंतु जै। हस्प्रतो सर्वत्र उद्वृत्त स्वर देखतां ज 'य' मूकी दे छे. विलासर्वई-कहा पण एमां अपवाद नथी.
उदा० पहयर १. १. १, सयल १. २. ८, पय १. १. १०, पमाय १. २. ११, नायर १. ४. ७, विणिज्जिय १. १. ३, वइयर १. ४. ११, नियय (निजक) १. ५.४ दियह (दिवस) १. ५. ११ गेय (गीत) १. ६. १० असोय १. ७. ४ णेय १. ६.१०. सेयविया १. ३. १ लोय १ ४. ७ सीयल १. १. ७ सुय १. १. १३ कामुय १, ६. ४ धूय १. ८. २
(३) द्विस्वरान्तर्गत 'म' नी जाळवणी . उदा० कमल १. ९. १२ भमर १.२३.९ रमणीउ ५.९.१९ नाम १. ३. १ जेन ४. ११. ९ जो के घणा ओछ। शब्दोनां आ वलण जोवा मळे छे.
(४) हेमचंद्राचार्ये नोंघेला तृणु, सुकृदु जेवा 'ऋ' कारवाला शब्दोनो अभाव. १. वागल्यापार डॉ० हरिवल्लभ भायाणी पृ. १४७. २. एजन पृ. १३५-१४८ ३. प्रा० व्या० ४. ३९७ ४. प्रा० व्या० ४. ३२९
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