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विलासवई-कहा
(५) बीजा पुरुष सर्वनामनु षष्ठी एकवचनन रूप 'तुद्ध' आमां बे वार मळे छे ( २. ३. २ अने ७. १३. ९) (धनपालनी 'भविसयत्तकहा' मां पण आ रूप मळे छे. अने 'घाहिलना' 'पउमसिरिचरिउ'मां पण).
आमांना केटलांक लक्षणो, जेवां के (१) स्वरमध्यगत 'म्' अने 'व्' नी जाळवणी (२) 'स' कारवाळा भविष्य काळनां अंगो अने 'ह' विकरणवाळा प्रत्ययोनो अभाव (३) आज्ञार्थ बीजो पुरुष एकवचननो 'इ' प्रत्यय (3) संबंधक भूत कृदंतनो इउ' प्रत्यय (५) पुल्लिंग प्रथमा विभक्ति एक वचननो 'उ' प्रत्यय अने (६) अंगने अनुरूप षष्ठिना प्रत्ययो
- परथी विलासर्वई कहानो अपभ्रंश गुजरात प्रदेशनी तत्कालीन भाषाना प्रभाववाळो साहित्यिक अपभ्रंश छे ए स्पष्ट थाय छे. तत्कालीन भाषाना प्रभावना द्योतक अन्य चिह्नो कहेवतो अने रूढिप्रयोगोना प्रकरणमां पण नोध्यो छे,
विलासवई कहानी भाषानी बीजी लाक्षणिकता छे ते तेना परनो प्राकृतनो घनिष्ठ प्रभाव. समराइच्च-कहाने आधारे साधारण कविए आ रचना करो होवाथी प्राकृतनो आ रीतनो प्रभाव अपेक्षित ज छे. प्राकृतना अनेक प्रत्ययो अने रूपो आमां ठेर ठेर वपरायां छे. तदुपरांत संस्कृतना सिद्धरूपोर्नु प्राकृतीकरण करवाना पण अनेक दृष्टांतो जोई शकाय छे.
आम विलासर्वई-कहानो अपभ्रंश एकंदर शिष्टमान्य साहित्यिक अपभ्रंश छे अने तेना पर गुजरात प्रदेशनी तत्कालीन भाषानो प्रभाव जोई शकाय छे.
१० कहेवतो रूढ़िप्रयोगो अने सुभाषितो साधारण कवि जनसाधारणना कवि हता. कथारूपी गोळ वोटोने उपदेशरूपी कडवं औषध पावानी आख्यानकारनी शैली तेमने सिद्ध हती आवी लोकरजनी शैली माटे भाषा पण लोकप्रचलिन जोईए. विलासवई-कहामां सर्वत्र दृष्टिगो वर थता रूढ़िप्रयोगो कहेवतो अने सुभाषितो कविनो आ बाबतनी निपुणताना सूचक छे. ते काळे प्रचलित एवा केटलाक भाषाप्रयोगो अने कहेवतो आज पण आपणने गुजराती भाषामां ते ज स्वरूपे अने केटलाक थोड़ा बदलाईने वपराता जोवा मळे छे. नीचे आवा रूढिप्रयोगो, कहेवतो अने सुभाषितो नोध्या छे. रूढिप्रयोगो १. को मह पाणेसु धरतएसु, एक्कु वि उप्पाडेइ तुज्झ केसु ? ॥ २. ६
'ह जीयु छु त्यां सुधी तारो एक पण वाळ उखाडवा कोण समर्थ छ ?' 'एक वाळ पण वांको करवानी कोईनी ताकात नथी' एवो प्रयोग अत्यारे
प्रचलित छे. २. तुहु अज्जु जमु रुटु । २. ८
'आज तारा उपर जम रूठ्यो छे.'
आ प्रयोग पण जाणितो छे. ३. म करहि काणि । २. १०
'काण न कर.' काण करवी - मोटा नूकसानवाळो प्रसंग ऊमो करवो ए अर्थमा हाल पण 'म्होकाण करवी' ए प्रयोग प्रसिद्ध छे,
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