Book Title: Vikrambhup Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 8
________________ Acharya kalaga yan dit विक्रम चरित्र __ अर्थः-पर्वतोपते हाथीना मजबूत दांतोनीपेठे, मारी आ व्याधिओ पासे ते मुद्राओ, मंडलो, मंत्रो, औषधो तथा मानताओ पण दू सान्वय थाकी गयां. ॥ १७॥ भाषांतर तन्मे दर्पादमी रोगसर्पाः सर्पन्ति यद्दलात् । तत्तमः शमयाम्यद्य ज्ञानभानुं भजे मुनिम् ॥१८॥ ___ अन्वयः-तत् मे अमी रोग सर्पाः यत् बलात् दर्षात् सर्पति, तत् तमः भय शमयामि, ज्ञान भानुं मुनिं भजे. ॥ १८ ॥ अर्थः-माटे मारा आ रोगोरूपी सो जेना बलयी पोतानुं जोर तजे ते भज्ञानरूपी अंधकारने हूं उपशमा, अने ते माटे ज्ञानथी सूर्यसरखा एवा, आ मुनिराजनी हुँ सेवा करु.॥ १८॥ अथ व्यजिज्ञपद् भूपमसावुद्यमसाहसी । शमगशिं नमस्कर्तुं समं नयत मामिति ॥ १९ ॥ अन्वयः-अथ उधम साहसी असो भूपं इति व्यजिझपन, शम राशि नमस्कर्तुं मां समं नयत।। १९॥ मर्थः-पछी उद्यम करवामां साहसिक एवा ते विक्रम कुमारे राजाने एवी विनंति करी के, शांतिना समूह सरखा (ते केवली भगवानने) बांद्वामाटे मने साथे लेइ जाओ ? ॥ १९ ॥ मुक्तालिखचितश्मश्रु मुखमश्रुकणेः सृजन् । नृपोऽथ नृविमानेन समं तमनयत्सुखम् ॥ २०॥ अन्वयः-अथ नृपः भश्रु कणैः मुक्ता आलि खचित श्मश्रु मुखं सृजन् , तं न विमानेन सुख समं अनयत् ॥ २० ॥ अर्थः-पछी ते राजा आंसओना विदुभोथी (जाणे) मोतीभोनी श्रेणिथी भरेनां दाढी मूबाळां (पोतानां) मुखने रचतोयको ते 131 For Private And Personal Use Only

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