Book Title: Vikrambhup Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 34
________________ S Maham An Kende www.sobatem.org Acharya Sun Kaisager Gamandi विक्रम चरित्रं ॥३२॥ अर्थः-तें मने वचनोथी जीत्यो, माटे (हुं) तारो नोकर छु, तथा (मने) शुद्ध धर्मनो उपदेश देवाथी तुं मारो सद्गुरु छ.। ५ । || सान्वय खचित्तकोणं वासाय निजदासाय यच्छ मे । त्वच्छिष्यो यदि जानामि तद्गतां त्वद्गुणावलीम् ॥ ६ ॥ भाषांतर अन्वयः-निज दासाय मे वासाय व चित्त कोणं यच्छ, यदि त्वत् शिष्यः तत् गतां त्वत् गुण आवली जानामि. ।। ६॥ __ अर्थ:--तारा सेवक एवा मने बसवा माटे तारां हृदयनो (एक) खूणो आप? के जेथी तारो शिष्य थयेलो हुं तेमा रहेली तारा ॥३२॥ | गुणोनी श्रेणिने जाणी शकुं.॥६॥ विभो विरहयिष्यामि निजं चेतो न च त्वया । कदापि यदि वेत्तीदं जिनसेवोत्सवं तव ॥ ७॥ __ अन्वयः-(हे) विभो! च त्वया निज चेतः न विरहयिष्यामि, यदि कदापि इदं तब जिन सेवा उत्स वेति. ॥ ७ ॥ अर्थ:-हे प्रभु! बळी तारी साथे मारां हृदयनो हुँ विरह करीश नही, के जेथी कोइक दिवसे पण आ मारु हृदय तारा जिनसेवाना महोत्सवने जाणी शकशे. ॥ ७॥ भर्तः स्मर्तव्य एवाहमुत्कटे संकटे क्वचित् । अयमेव हि भृत्यानां स्वामिन्यवासरः परः ॥८॥ अन्वयः-हे) भर्तः कचित् उत्कटे सफटे अहं स्मर्तव्यः एव हि भृत्यानां स्वा मेनि अयं एव परः अबसरः ॥ ८॥ अर्थ:-हे स्वामी! कोइक विकट संकट बखते मने याद करवाज, केमके नोकरोनो स्वामिना संबंधमां तेज उत्कृष्टो अवDII सर होय छे. ।।८।। For Private And Personal Use Only

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