Book Title: Vikrambhup Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 20
________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi विक्रम चरित्र सायन्व भाषांतर ॥१८॥ ॥१८॥ CREASONICROREART अन्वयः-(हे) जगत् गुरो ! (हे) स्वामिन् ! (हे) निरीह ! तत् अनवलंबितं कर आलंयं यच्छ ? मां इतः आकर्ष ? इह || करुणां कुरु ? ॥ ५९॥ अर्थः-हे जगत् स्वामी ! हे प्रभु ! हे निःस्पृह ! माटे हवे तुरत आपना हाथनो टेको आपो ? अने आ कादवमांथी मने खेंचो ? तथा मारापर कृपा करो? ॥ ५९॥ सम्यक्त्वैकगुणप्रोतद्वादशवतभूषणम् । श्राद्धधर्ममथो हस्तमिव व्यस्तारयद्विभुः ॥६॥ अन्वयः-अथो विशुः इस इन, सम्यक्त्व एक गुण पोत द्वादश व्रत भूषणं आध धर्म व्यस्तारयत्. ।। ६० ॥ अर्थः-पछी ते केवली भगवाने (पोताना) हाधनी पेठे सम्यक्त्वरूपी एक गुणथी (दोरीथी) परोवेला (गुंथेला) एवा बार व्रतोरूपी आभूषणवाळा श्रावकधर्मने विस्तार्यो, ।। ६०॥ रोमहर्षाङ्कुराकीणों हर्षाश्रुकणमिश्रदृक् । जग्राह श्रावकं धर्म विक्रमोऽथ यथाविधि ॥ १ ॥ ___ अन्वयः-अथ रोम हर्ष अंकुर आकीर्णः, हर्ष अश्रु कण मिश्र हा विक्रमः यथाविधि श्रावक धर्म जग्राह. ॥ ६१ ॥ अर्थः-पछी हर्षथी रोमांचित थयेला, तथा हर्षाश्रुना बिंदुओथी भरेली आंखोवाळा ते विक्रम कुमारे विधिपूर्वक श्रावक धर्मने अंगीकार कर्यो. ॥ ६१ ॥ CHHAKADKAASAKARA For Private And Personal Use Only

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