Book Title: Vikrambhup Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 26
________________ S Maham An Kende Acharyan ka mandi RI विक्रम चरित्रं ॥ २४ ॥ भाषांतर २२५१२२ |॥२४॥ अन्वयः-इति आकर्ष यक्षः धा, अर्गवः अधर्ण अचले वीची इव, विक्रम का संग्रहात उत्पाव्य आस्फालयत् ॥७॥ अर्थः-ते सांभळीने यक्षे क्रोधथी, महासागर नजीकना खडकपर जेम मोजांओने पछाडे, तेम ते विक्रमकुमारने पग पकडी उपाडीने पछाड्यो. ॥ ७८ ॥ मूर्छामुच्छिय यक्षस्तं क्रुधान्धः पुनरभ्यधात् । रे रे ददासि नाद्यापि किं मद्देयमदेयवत् ॥ ७९ ॥ अन्वयः-वक्षः मूछी उच्छिय ऋधा अंधः पुनः तं अभ्यधाव रेरे! अदेयवत् अय अपि मददेव किं न ददासि ? ॥ ७९ ॥ अर्थः-पछी यक्षे तेनी मूर्छा दूर करी क्रोधांध थइ फरीने तेने का के, अरे! जाणे देवु न होय ! तेम हजु पण शुं तारे मारूं करज आपq नथी? ॥ ७९ ॥ कृपां करोषि जीवेषु स्वजीवे न करोषि किम् । मध्यतां गतेऽमुष्मिन्धर्माविष्कारकारणे ॥ ८॥ ___ अन्वयः-जीवेषु कृषां करोषि, धर्म आविष्कार कारणे, मद् वध्यतां गते अमुष्मिन् स्व जीवे (कृपां) किं न करोपि? ॥८॥ अर्थ:-तुं वीजा) जोचोनी तो दया करे छे, अने धर्म प्रगट करवाना कारणभूत, तथा माराथी हणाता, एवा आ पोताना जीवपर (तुं) केम दया करतो नथी ।। ८० ॥ 8 धर्माधारः कुमारोऽथ गिरं जग्राह साहसी । स्वैकजीवकृते जीवशतं को हन्ति धर्मवित् ॥ ८१॥ ACARECACANCHAR PRAKA८.२३५- For Private And Personal Use Only

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