Book Title: Vikrambhup Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Acharya in Kailasager
Gymde
विक्रम चरित्रं
सान्वय भाषांतर
॥
८
॥
॥
८
॥
GANESKROARSESENTS
व्यक्तदृश्यस्फुरद्धर्म इवास्ये दशनांशुभिः । ऊचेऽथ केवली ज्ञानकवलीकृतसंशयः ॥ २४ ॥
भन्वयः-अथ दशन अंशुभिः आस्ये व्यक्त रश्य स्फुरत् धर्मः इव, ज्ञान कवलीकृत संशयः केवली ऊचे. ॥ २४ ॥ अर्थः-त्यारे दांतोना किरणोबडे मुखमा प्रगट देखाता स्फुरायमान नाणे साक्षात् धर्मज होप नही एवा, तथा ज्ञानवडे नष्ट करेक के संदेह जेमणे, एवा ते केवली भगवान् बोल्या के, ॥ २४ ॥
पुरेऽपरविदेहो:रत्ने रत्नस्थलाभिधे । पद्माख्यश्छद्मनां सद्म कुराजन्यः पुराजनि ॥२५॥ ___ अन्वयः-पुरा अपर विदेह उर्वी रत्ने रत्न स्थल अभिधे पुरे छानां सम पम आरूपः कुराजन्यः अजनि. ॥ २५ ॥ अर्थः-पूर्वे अपर विदेहनी भूमिपर रत्नसरखा रत्नस्थल नामना नगरमां कपटना स्थानसरखो पद्मनामे (एक) दुष्ट राजा हतो. स मृगव्यरसव्यग्रो भूतलं वन्यमन्यदा । ययौ सुयशसं साधु कयोत्सर्गे ददर्श च ॥ २६ ॥ ___ अन्वयः-मृगच्य रस व्यग्रः सः अन्यदा वन्य भूतलं ययौ, च कायोत्सर्गे सुयशसं साधु ददर्श. ॥ २६ ॥ अर्थः-शिकारना रसमा मासक्त थयेनो ते राजा एक दिवसे बनभूमिमां गयो, अने (त्या) तेणे कायोत्सर्गध्यानमा रहेका सुयशनामना मुनिने जोया. ॥ २६ ॥ स धर्मज्ञानयो री धर्मज्ञानसमाश्रये । साधोरुरसि निःशङ्कः कङ्कपत्रं निखातवान् ॥ २७ ॥ अन्वयः-धर्म ज्ञानयोः बेरी सा, धर्म ज्ञान समाश्रये साधोः उरसि निःशंका कंकपत्रं निखातवान, ॥ २७॥
LO PRIGIOSASSAU GURUHI
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50