Book Title: Vidyopasna
Author(s):
Publisher: Himmatram Yagnik
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ऐहू श्रीषं पीतायै सं श्वेतायै
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हूं अरुणायै
क्षं असितायै
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अं निवृत्यै आं प्रतिष्ठायै
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इति ईश्वरास्य चतस्रः कलाः
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३९
।। ऐं ह्रीं श्रीं ॐ दीपिकायै
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ऋ रेचिका ॠ माचिकायै ल परायै ह सूक्ष्माये ए सूक्ष्मामृतायें ऐ ज्ञानाय ओं ज्ञानामृतायै औं आप्यायिन्यै अं व्यापिन्यै अः व्योम्न्यै
३ तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः । दिवीव चक्षुराततम् ॥४॥
३ तद्विप्रा सो विपन्यवो जागृवांसः समिन्धते । विष्णोर्यत्परमं पदम् ||५|| ३ विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रुपाणि पिंशतु । आसिंचतु प्रजापतिर्वाता गर्भ दधातु मे । गर्भ घेहि सिनीवालि गर्भ धेहि सरस्वति । गर्भतेऽअश्विनौ देवावाधत्तां पुष्करस्रजौ || ६ ||
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इं विद्यायै
ई शान्त्यौ
डं इन्धिकायै
इति सदाशिवस्य षोडशकलाः आहत्य अष्टाशीतिः ।
३ हंसः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोताव्वदिपदतिथिर्दुरोणसत । नृषदूरसदृतसद्वयोम सदब्जागोजाऽॠतजाऽअद्रिजाऽऋतं बृहत् ॥ १॥ ३ प्रतद्विष्णुस्तवते वीर्येण मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः । stroy त्रिषु विक्रमणेष्वधिक्षियन्ति भुवनानि विश्वा ||२|| ३ त्र्यंम्बक यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्द्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धना मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् || ३ ||
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