Book Title: Uvvatbhashya
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Page 378
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir प्रायः। तेनभगप्रदत्तेन धनेनवयंभगवन्त.धनवन्तः स्यामभवेम / एकंवाक्यम् / हितोयेना वर्चेनहितोयम् एकवाक्यतायाप्रसंभवात् / तंत्वा / उपरितद्शवणात् यदोबत्तिः / यंत्वाम् / हेभग 1 सर्वइत् सर्वएवजोहयोति अाह्वयतिकामसिद्धये। सन:अस्माकम् हेभगपुरएताअगयायौ सर्वकाकार्येषुभवह // 38 // समध्वराय / समनमन्तप्रवीभवन्ति याउषस: अध्वराययज्ञाय / अग्निहोवादिकर्मणे कवमिव / दधिक्रावेव / यथादधिक्रावाअश्वः शुचयेपदाय / शुचिपदम् अग्न्यारएताभवेह // 38 // समंध्वराय // समंवरायोषसोनमन्तद। विकावेवशुचयेपुदायं // अर्वाचीनबसुविटुम्भगन्नोरथमिवारश्ाब्वा, जिनुऽआवहन्तु // 38 // अप्रावतीग्र्गोमती // अप्रश्ावतोग्र्गोम धानार्थकर्त्तव्यमितिसन्नमते / एवंताउषसः / अर्वाचीनम् / अनन्यगतमनस्कम् / वसुविदंच / - वसुधन विन्दतौतिवसुवित् तंवसुबिदम् / भगम् श्रादित्यम् नःअम्मान प्रति / रथमिव / अश्वाः बाजिन: वेजनवन्तः अन्न वन्तावा / आवहन्तु भागमयन्तु // 38 // अखावतोः / उपोदेव- 660 त्यात्रिष्टुप् / अश्ववत्यःगोमत्यःन:अस्माकम् / उषासःवौरवत्यःसदम् सदाकालम् उच्छन्तु / उच्छौ For Private And Personal

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