Book Title: Uvvatbhashya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org पृथिय स्वाहेत्यादिस्पष्टम् // 1 // 2 // 3 // मनस:कामम् / पूर्णाहुतिहोमः / अनुष्टुप् थीदेवत्या / यजमानाशीः / मनसःकामं कामप्राप्तिः / प्राकृतिम् आकबनम् / आत्मनोधर्मो मनसः संयोगेसति जायते / वाचःसत्यम् / यष्टव्य मयेत्यादि / अशीय / प्राप्नुयाम्। अनयापूर्णाहुत्या / किंच / पसनांस्वाहा श्रोत्रायुस्वाहाश्श्रोत्वायुस्वाहा // 3 // मनसु कामम्॥ मन सुकाममाकूतिंबाची सत्यमशीय // पुशूना रूपमन्नस्यरसीवश : श्रो श्रेयताम्मयुिवाहा // 4 // प्रजापतिः सम्भुियर्माणः सुम्ना ट् सम्भृतोवैश्वद्धव ससुन्नीघुर्माः प्रवृक्त स्तेजुऽउद्यतऽआश्वि न पर्यस्यानीयमनिपौष्ण्णोबिष्यन्दमानमारुतः कुर्थन् // मत्तः रूपम् पशूपकारः / अन्नसारसः / यशश्च / थौच्च श्रयताम् आश्रयन्तु / मथि / मामितिविभक्निव्यत्ययोवा | यन्महाबीरभेदनेनापचितंतत्सर्वमुप चौयतामित्यर्थः // 4 प्रजापति: संमियमाण For Private And Personal

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