Book Title: Uvvatbhashya
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Page 410
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir भ्यजपति / युनतेमन इतिव्याख्यातम् / / 2 / / मृत्यिण्डान्परिगृह्णाति / देवौद्यावापृथिवी हेदेव्यो द्यावापथिव्यौ / मखस्ययजम्य वांयुवाम् उपादाय / दञ्चीदकं वादायेत्यर्थः / अाशिरः राधासम् राधसाध संसिद्धौ / संसाधयेयम् देवयजने देवाअस्मिन्निज्यन्ते इति देवयजनम्। पथिव्याः मखायय ज्ञायत्वा परि गृह्णामि / ततोपिविशेषापेक्षायामाह / मखस्यशोष्ण त्वांपरिगृह्णामोति // 3 // धियोबिप्लाविष्प्रंस्यवहुतीबिपपिच्चतः // विहोचादधेब्वयुनावि देकऽइन्न्मुहीदेवस्य॑सवितु परिष्टुति // 2 // देवौद्यावापृथिवी // मुखस्य॑वामुयशिरोराड्यासन्देवयजनेपृथिव्याः // मुखायत्त्वामुखस्य त्त्वाशीष्गणे // 3 // देव्योचम्बा // देव्योब्वम्म्रग्रोभुतस्वप्रथम जामखस्य॑वोद्यशिरोराड्यासन्देवयजनेपृथिव्याः // मुखायत्त्वामुख शिवम् अथवल्मोक वांटकाति। देयोवन्यः / हेदेव्यः वम्यः / उपजिविकाः सौमकाइतिपर्यायाः / र या यूयंभूतस्य प्रथमजाः / पृथिवीभूतानां प्रथमजातत्संबन्धाइयोपि प्रथमजा उच्यन्ते / मख-2 For Private And Personal

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