Book Title: Uvvatbhashya
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Page 420
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir त्वष्ट्रमन्तस्त्वा। यजुः / यतश्च त्वाष्टसंयुक्ताः / त्वष्टाहि चेतसांविकर्ता / त्वामेवसपेम / सपति: स्पृशतिकर्मा / मैथुनार्थमुपस्पृशाम: / अतःपुत्रान् पशून्मयिधेहि स्थापय / प्रजांचभूयोभूयः अस्मासु धेहिस्थापय / किंच / अरिष्टाअनुपहिंसिताअहम् / सहपत्यासहभाभूयासम् / आशौः // 20 // रौहिणोजुहोति। अहःकेतुनाप्रजया कर्मणावा / सहितम् जुषताम् परिगृह्णातु / कथंभूमाहिस्सो // त्वष्ट्रुमन्तस्त्वासपेमपुत्रान्न्पुशून्न्मयिधेहिप्पुजामुरम्मा / सुंधेवरिष्टाहासहपत्त्याभूयासम् // 20 // अहः केतुना // जुष तासुज्योतिर्योतिषास्वाहा // रात्रिः केतुाजषता सज्ज्यो / तिर्योतिषास्वाहा // 21 // [11] इतिवाजसनेयसंहितायांदीग्र्घपाठेसप्तत्रिशोऽध्यायः // 37 // तम् / यदह: सुज्योति: / ज्योतिषांशोभनज्योतिष्कम् केनज्योतिषास्वकीयेनैव / स्वाहासुहुतं चैतद्दविभवतु / रात्रिकेतुना / अधस्तनेनव्याख्यातम् // 21 // इति उचटकृती मन्त्रभाषा सप्तविंशोध्यायः // 30 // म For Private And Personal

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