Book Title: Uvvatbhashya
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 403
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir दयसि हर्षयसि / हेवृषसक्तः / कयाचऊत्या केनवागमनेन स्तोटभ्य: दातु धनानि आभर आहरसि / लडथैलोट / तत्कथय / येनतथानुतिष्ठामः // 7 // इन्द्रोविश्वस्य हिपदाविराट / / योयंमहावीर इन्द्रादित्योवा कस्याधिष्ठात्रीदेवता। विश्वस्यजगत: राजतिदेदीप्यते ईष्ठ वा। तसाप्रसादात् / अस्माकम् अस्तुद्दिपदेशचतुष्पदे / विपदाञ्चतुष्पदांचेतिविभक्तिव्यत्ययः // 8 // शन्नोत्याभिप्प्रमन्दसेवृषन् // कयास्तोटब्भ्य आर्भर // 7 // इन्द्रोवि पूर्वस्य // राजति // शन्नोऽअस्तुद्दिपदेशञ्चतुष्प्पदे // 8 // शन्नौमि वशंचणाः शन्नोभवत्वर्यमा ॥शन्नऽइन्द्रो हुस्प्पतिः शन्नोब्बि गणुरुरुकुम: // 6 // शन्नोवातः॥ पवता शन्नस्तपतुसूटवः // मित्रः / द्वे अनुष्ट भौ / महावीरप्रसादात् आदौच / शंसुखरूप: नोस्माकंभवतु मित्रः / शंचनःवरुणःभवतु / शंचनःभवतुअर्यमाशंचनःइन्द्रःबृहस्पतिः / शंचनःविषणुःउरुक्रमःउमविस्तीर्णःकमोय सासउरुकुमः / शेषदर्शितयाब्याख्य यम् // 6 // शन्नः / शंसुखरूप: नोस्माकम् बातःअपरुषः अव्या For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454