Book Title: Uvvatbhashya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir 1. दारयतुअग्ने(जसा दीप्त्याविदारयतु / सूर्यस्थवर्चसा भाजिष्णुतयाविदारयतु / विमुञ्चत्यनडुहः / विमुचान्तामुनिया: विमुच्यन्तांशरीरात् उमियाः / अनड्वाहः // 3 // अश्वत्येवः इतिव्याख्यातम् // 4 // 35 (1) शरीराणिनिवपति / सवितात / गायत्री / सवितातेतव शरीराणिअस्थीनि / मातुः पृथिव्याः ग्ने जसासूय॑स्युव-सा // विभुच्च्यन्तामुस्रियाः // 3 // अप्रश्व त्थेवः॥ अश्वत्थेवोनिषद॑नम्पुर्णेवोचतिष्कृता // गोभाजुऽत्कि लासथ्यत्सुनवथुपूरुषम् // 4 // सुबितातु // शरौंराणिमातुरुपस्थ / ऽआपतु // तस्मै पृथिविशम्भव // 5 // प्रजापतौत्त्वा // देवयाम उपस्थेउमगे भावपतस्थापयत्। तौअस्थिरूपाययजमानाय सविवाउप्ताय / हेप्टथिबि शम्भवमुखरूपाभव // 5 // प्रजापतीत्वा / यजुः कण्डिकाः / प्रजापतीत्वाम् देवतायाम् उपोदके शिवम् उपसमीपे उदकंयस्यसतथोक्तः / लोकेस्थाने निदधामि / असावितिनामग्रहणम अनुदात्तत्वा (1) का. सवितात इति शरीराणि निवपति मध्ये इति / 21, 4, 8 / तस्य पुरुषमात्रस्य क्षेत्रस्य मधी शरीराणि मृत स्वास्थीनि राशीकरोतिएतच्च सूर्योदयकालकर्तव्यम् / / 667 For Private And Personal

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