Book Title: Uvvatbhashya
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Page 388
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir देवयन्तः देवान्कामयमाना: यजमानाः त्वाभवन्तम् ईमहे / . याचामहेआगच्छति / अवन्तमागच्छन्तम् उपप्रयन्तु उपसंगम्यागच्छन्तु / ममतःसुदानव: कल्याणदानाः / त्वञ्च हेइन्द्र प्रायःप्रकर्षणशीघ्रोभव / सचा / सहसमनाय // 56 // प्रननम् / न नमितिपादपूरणः / प्रवदतिप्रोच्चारयति ब्रह्मणस्पतिः मन्त्रम्उक्थ्यम् उकथ्यमितिशस्त्रमुच्यते / तत्रमन्नमन्मंत्रःउक्थ्यः / पतोलोकमौयुस्तत्त्रजागृतोऽअस्वप्नजीसत्रुसदौचदेवी॥५५॥ उति / ष्ठुब्रहमणस्प्पतेदेवयन्तस्त्वेमहे // उपप्प्रय॑न्तुमुरुतः सुदानबुड्डू न्द्रप्णाशूभवासा // 56 // प्रनूनम् // प्रनूनम्ब्रहमणस्पतिर्मन्च हत्त्युकथ्यम् // यस्मिन्निन्ट्रोवरुणोमित्वोऽअर्बुमादेवाऽओकासि चक्कुिरे // 57 // ब्रहमणस्प्पते // ब्रहमणस्पतत्त्वमस्ययुन्तामुक्त शिवम् कथंभूतोसौमंत्रः / यस्मिन्मत्र इन्द्रश्च वरुणश्च अर्यमाच अन्येदेवाश्च ओ कांसि / ओ कइति- 665 निवासनाम / निवासानि चक्रिरेकृतवन्तः // 57 // ब्रह्मणस्पते हेब्रह्मणस्पते। त्वम् असाजगतः / For Private And Personal

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