Book Title: Uvavaiya Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 12
________________ नगरी वर्णन ६. 'ईख...' इस सूत्रांश से जनता के प्रमोद का कारण बताया गया है। क्योंकि इस प्रकार की वस्तुओं के अभाव में जन-प्रमोद हो ही नहीं सकता।। ___ आयारवंत-चेइय-जुवइ-विविह-सण्णिविट्ठ-बहुला उक्कोडिय-गाय-गंठि-भेयभड-तक्कर-खंडरक्ख-रहिया खेमा णिरुवहवा। भावार्थ - आकारवान्-सुन्दर शिल्प कलामय चैत्यों-स्मारक मन्दिरों का और युवतियों के विविध सन्निवेशों का बाहुल्य था। औत्कटिकों-रिश्वतखोरों, ग्रन्थिभेदकों-गिरहकटों, भटों-उठाईगीरोंउचक्कों तस्करों-चोर डाकुओं और खण्डरक्षों-शुल्कपालों, दाणियों के उपद्रव से रहित, क्षेम से युक्त और शासकों के अत्याचार से रहित वह नगरी थी। विवेचन - ७ आकारवान् चैत्य....''चैत्य' शब्द का प्रयोग शास्त्रों में अनेक अर्थों में हुआ है। जैसे कि-कहीं ज्ञान अर्थ में, कहीं जिनेश्वर देवों को जिन वृक्षों के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उन वृक्षों के विशेषण रूप में, कहीं चौतरे सहित वृक्ष के अर्थ में, कहीं पूर्व पुरुषों के स्मारक चिह्न के अर्थ में, कहीं इष्ट देवता की प्रतिमा के अर्थ में, कहीं उद्यान के अर्थ के और कहीं चिता पर बने हुए चरणचिह्नों और छतरियों के अर्थ में। यहाँ पर टीकाकार ने इस शब्द का अर्थ 'देवतायतन' (देवकुल) किया है और पाठान्तरों की व्याख्या में 'अर्हच्चैत्य' 'जनानां व्रतिनां च' अर्थात् वहाँ साधारण मनुष्य और व्रतधारी पुरुषों के समूह रहा करते थे। वस्तुतः यहाँ यह शब्द वीर या विशिष्ट पुरुषों के स्मारक-मन्दिरों के अर्थ में प्रयुक्त हुआ हो, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि 'युवतियों के सन्निवेश' के साथ इस पद का उल्लेख है। अतः वे ऐसे स्थान होने चाहिए कि जो पूर्व पुरुषों की स्मृति में बने हुए होने पर भी, जहाँ विविध सांसारिक प्रवृत्तियाँ चलती हों, कला आदि का प्रदर्शन होता रहता हो और जीवन के कड़वेमीठे प्रसंग उपस्थित होते रहते हों, जिनका जन-संस्कार के बनाव-बिगाड़ में बड़ा हाथ रहता है। - 'युवतियों के सन्निवेश' का अर्थ, टीकाकार ने 'पण्य तरुणियों के पाटक' किया है। 'जुवइ' और "सण्णिविट्ठ' शब्द 'वेश्याओं के मोहल्ले' - यह अर्थ करने से पूर्व कुछ विचारणा के लिए प्रेरित करते सम्पारणी' शब्द का अर्थ यह भी हो सकता है कि - 'जन-साधारण के सहवास में आने वाली ऐसी स्त्रियाँ, जो कण्ठ, रूप और कला का प्रदर्शन करती हों, इन विषयों से सम्बन्धित शिक्षण देकर, अपनी आजीविका चलाती हों, यौन सम्बन्धी शिक्षण भी देती हों और राज्यनीति में भी दखल रखती हाँ, या राज-शासन में कोई कार्य साधने में जिनका उपयोग होता हो।' उनमें कई वर्ग होने की सम्भावना है। उनमें कुछ ऐसी भी हो सकती हैं, जो आजीवन पुरुष देह का भोगेच्छा से स्पर्श भी न करती हों। कुछ तरुणियों को गृहवास में प्रविष्ट होने की समाज से स्वीकृति और राजाज्ञा भी प्राप्त होती थी। कइयों के जीवन में राजाज्ञा से कितने ही पुरुषों का आगमन होता था और कई विलासिनियाँ भी होंगी। उन्हें राज्य संरक्षण प्राप्त था। ऐसा अर्थ करने में प्राचीन चरित्रों, इतिहास और लोक कथाओं का आधार है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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