Book Title: Uvavaiya Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 10
________________ 'णमो जिणाणं जियभयाणं' उववाइय सुत्त (औपपातिक सूत्र) नगरी वर्णन १- तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था। रिद्ध-स्थिमियसमिता, पमुइय-जण-जाणवया (पमुइय-जणुजाण-जणवया) आइण्ण-जणमणुस्सा हल-सयसहस्स-संकिट्ठ-विकिट्ठ-लट्ठ-पण्णत्त-सेउसीमा कुक्कुड-संडेय-गामपठरा उच्छु-जव-सालि-कलिया (सालिमालिणीया) गो-महिस-गवेलग-प्पभूया। कठिन शब्दार्थ - होत्था - थी, रिद्ध - ऋद्धा-ऊँचे-ऊंचे भवनों से सुशोभित, थिमिए - स्तिमिता-स्वदेश के राजा व परदेश के राजा के भय से रहित, समिद्धा - समृद्धा-धन और धान्यादि से युक्त, पमुहब- प्रमुदिता-आनन्द युक्त, जण - जन-नागरिक जन, जाणवया- जानपदा-देश निवासी, आइण्ण - आकीर्ण-व्याप्त-भरा हुआ, हल सय सहस्स - सैकड़ों हजारों अथवा लाखों इल, संकि- संकृष्टय-अच्छी तरह से जोती हुई, विकिट्ठ- विकृष्टा-बार-बार जोतने से कंकर पत्थर रहित होने से बीज बोने के योग्य, लट्ठ - लष्टा-मनोज्ञ, पण्णत्त-सेउसीमा - प्रज्ञप्त सेतुसीमा-प्रत्येक किरके खेत की सीमा बंधी हुई थी, कुक्कुड-संडेय-गामपउरा- जिसमें मुर्गे और सांडों का समूह बहुत था, उप-जव-सालि-कलिया - इक्षु (गन्ना), जव और शाली (चावल) के ढेर से सुस्त, गो-महिस-गवेलग-प्पभूया- गोमहिषगवेलक-प्रभूता-बैल, भैसा, गवेलक (मेढ़ा अथवा गौ शाद गाय और बैल तथा ऐलक मेढ़ा) की प्रचुरता। - उस काल और उस समय में 'चम्पा' नाम की नगरी थी। वह ऋद्ध-ऋद्धिशाली अर्थात् बड़े-बड़े भवनों वाली स्तिमित-स्वचक्र और परचक्र के भय से रहित अतएव स्थिर और समृद्धपारिबाचीविका के साधनों की सुलभता, प्रचुरता और व्यापकता के कारण धनधान्यादि से युक्त पाहायरी-निवासी और देशवासी प्रसन्न रहते थे, अतः वह नगरी जन-मनुष्यों से भरपूर थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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