Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Suryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 276
________________ उत्तराध्ययन सूत्र २६३ मुहुत्तद्धं तु जहण्णा, तिण्गुदही पलियमसंखभागमभहिया। उकोसा होइ टिई, णायव्वा काउलेसाए ॥३६॥ मुहत्तद्धं तु जहण्णा, दोण्णुदही पलियमसंखभ गमभहिया। उक्कोसा होइ ठिई, णायव्वा तेउलेलाए ॥३७॥ मुहत्तद्धं तु जहण्णा, दस उदही होइ मुहत्तमभहिआ। उक्कोसा होइ ठिई, णायव्वा पम्हलेसाए ॥३०॥ मुहत्तद्धं तु जहण्णा, तेत्तीसं सागरा मुहत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, णायब्धा सुक्कलेसाए ॥३९॥ एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई उ वणिया होइ । चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वोच्छामि ॥४०॥ दस वाससहस्साई, काउए टिई जहणिया होइ । तिण्णुदही पलिओवम-असङ्खभागं च उक्कोसा ॥४१॥ मुहू०, त्रय उदधयः पल्योपमाऽसङ्ख्येयभागाभ्यधिका; उ०, कापोतलेश्यायाः ॥३६॥ मुहू०, द्वावुदधी पल्योपमा सङ्खयेयभागाभ्यधिके, उ०, तेजोलेश्यायाः ॥३७॥ मुहू०, दशोदधयो भवति मुहूर्तमभ्यधिका; उ० पद्मलेश्यायाः ॥३८॥ मुहू०, त्रयस्त्रिंशत्सागरा मुहूर्ताधिका; उ० शुक्ललेश्यायाः ॥३९॥ एषा खलु लेश्यानामोधेन स्थितिस्तु वर्णिता भवति; चतसृष्वपि गतिवितो, लेश्यानां स्थितिस्तु वक्ष्यामि ॥४०॥ दशवर्षसहस्राणि, कापोताया स्थिति - घन्यका भवति; त्रय उदधयः पल्योपमाऽसङ्खयेयभागवोत्कृष्टा ॥४१॥

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