Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Suryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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उत्तराध्ययन सूत्र. Inanananananananar
पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा, तेसि भेए सुणेह मे ॥६९॥ दुविहा उ पुढवीजीवा, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपजत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥७०॥ वायरा जे उ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया । सण्हा खरा य बोद्धब्बा, सण्हा सत्तविहा तहि ॥७१॥ किण्हा णीला य रुहिरा य, हालिद्दा सुकिला तहा । पंडु पणगमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा ॥७२॥ पुढवी य सकरा वालुया य, उवले सिला य लोणूसे । अय-तउय-तम्ब-सीसग-रुप्प-सुवण्णे य वइरे य ॥७३॥ हरियाले हिंङ्गलुए, मणोसिला सासगंजण-पवाले । अब्भपडल-ऽभवालय, वायरकाए मणिविहाणा ॥७४॥
पृथ्व्यजीवाश्थ, तथैव च वनस्पतिः; इत्येते स्थावरात्रिविधास्तेषां भेदान् श्रृणुत में ॥६९।। द्विविधास्तु पृथ्वीजीवाः, सूक्ष्मा बादरास्तथाः; पर्याप्ता अपर्याप्ता, एवमेते द्विधाः पुनः ॥७०।। बादरा ये तु पर्याप्ता, द्विविधास्ते व्याख्याताः; श्लक्ष्णाः खराश्च बोद्धव्या, श्लक्ष्णास्सप्तविधास्तत्र ॥७१॥ कृष्णा नीलाश्च रुधिराश्च, हारिद्राः शुक्लास्तथा; पाण्डवः पनकमृत्तिका, खरा पत्रिंशद्विधा ॥७२॥ पृथ्वी च शर्करा वालुका चोपलः शिला लवणमुपः; अयस्तासूत्रपुकसीसकरुप्यसुवर्णानि च वज्रं च ॥७३॥ हरितालो हिंगुलको, मनःशिला सासकोञ्जनं प्रवालं; अभ्रपटलमभ्रवालुका, बादरकाये मणिविधानानि ॥७४।।

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