Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Suryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 317
________________ ३०४ अध्ययन ३६ मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमा य मणुया, गम्भवकंतिया तहा ॥१९३॥ गम्भवतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया । कम्म-अकम्मभूमा य, अंतरद्दीवया - तहा ॥१९४॥ पण्णरस तीसइविहा, भेया अट्टवीसई । संखा उ कमसो तेसि, इइ एसा वियाहिया ॥१९५॥ सम्मुच्छिमाण एसेव, भेओ होइ आहिओ । लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे वि वियाहिया ॥१९६॥ संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साइया, सपज्जवसिया वि य ॥१९७॥ पलिओवमाइं तिन्नि उ, उक्कोसेण विआहिया । आउट्टिई मणुयाणं अन्तोमुहुत्तं जहणिया ॥१९८॥ मनुजा द्विविधभेदास्तु, तान्मे कीर्तयतः शृणु; समूच्छिमाश्च मनुजा, गर्भव्युत्क्रान्तिकास्तथा ॥१९३॥ गर्भव्युत्क्रान्तिका ये तु, त्रिविधास्ते व्याख्याताः; अकर्मकार्मभूमाश्चान्तरद्वीपजास्तथा ॥१९४॥ पञ्चदशत्रिंशद्विधा, भेदाश्वष्टाविंशतिः; सङ्ख्यास्तु क्रमशस्तेषामित्येषा व्याख्याता ॥१९५।। समूच्छिमानामेषेव, भेदो भवत्याख्यातः; लोकस्यैकदेशे ते, सर्वपि व्याख्याताः ॥१९६।। सन्तति प्राप्याऽनादिका, अपर्यवसिता अपि च; स्थिति प्रतीत्य सादिकाः, सपर्यवसिता अपि च ॥१९७॥ पल्योपमानि त्रीणि त्वोत्कृष्टेन व्याख्याताः; आयुस्थितिमर्नुजानामन्महू जघन्यकम् ॥१९८॥

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