Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Suryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 322
________________ उत्तराध्ययन सूत्र. poranarunanumanmanoranmun साहिया सागरा सत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिदम्मि जहण्णेणं, साहिया दुण्णि सागरा ॥२२३॥ दस चेव सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे । बंभलोए जहण्णेणं, सत्त ऊ सागरोवमा ॥२२४॥ चउद्दस उ सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । लंतगम्मि जहण्णेणं, दस उ सागरोवमा ॥२२५॥ सत्तरस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहण्णेणं, चउद्दस सागरोवमा ॥२२६॥ अट्ठारस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहण्णेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥२२७॥ सागरा अऊणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहण्गेणं, अट्ठारस सागरोवमा ॥२२८॥ सागराणि साधिकानि सप्तोत्कृष्टेन स्थितिर्भवेत् ; माहेन्द्रे जघन्येन, साधिके हे सागरे ॥२२३॥ दश चैव सागराण्युत्कृष्टेन व्याख्याता; ब्रह्मलोके जघन्येन, सप्त तु सागरोपमानि ॥२२४।। चतुर्दश तु सागराण्युत्कृप्टेन व्याख्याता; लान्तके जघन्येन, दश तु सागरोपमानि ॥२२५।। सप्तदश सागराण्युत्कप्टेन व्याख्याता; महाशुक्रे जघन्येन, चतुर्दश सागरोपमानि ॥२२६।। अष्टादश सागराण्युत्कष्टेन व्याख्याता; सहस्रारे जघन्येन, सप्तदश सागरोपमानि ॥२२७॥ सागराण्येकोनविंशतिस्तूत्कृष्टेन स्थितिभवेत् ; आनते जघन्येनाष्टादश सागरोपमानि ॥२२८॥

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