Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Suryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 308
________________ उतराध्ययन सूत्र एगूणपण्णऽहोरत्ता, उक्कोसेण तेइन्दियआउटिई, अंतोमुहुत्तं संखिजकालमुक्कोर्स, अंतोमुहृत्तं तेइन्दियकायटिई, तं कार्यं तु अनंतकालमुक्कसं, अंतोमुहृत्तं तेइन्दियजीवाण अंतरेअं वियाहिया । जहणियं ॥ १४१ ॥ जहणगं । अमुचओ ॥ १४२॥ जहण्णयं । वियाहि ॥ १४३॥ एएसं वण्णओ चेव, गंधओ रस - फास । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्सो ॥१४४॥ चाउरिदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेर्सि भेए सुणेह मे ॥ १४५॥ अंधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयङ्गे य. टिकणे कुंकणे तहा ॥ १४६॥ २९६ एकोनपञ्चाशदहोरात्रान्यायुत्कृष्टेन व्याख्याताः; त्रीन्द्रियायुस्थितिरन्तमुहूर्तं जघन्यकम् ||१४१|| सङ्खयेयकालमुत्कृष्टाऽन्तर्मुहूर्तं जघन्यकम् ; त्रीन्द्रियकाय स्थितिस्तं कार्यं त्वमुञ्चतः ||१४२|| अनन्तकालमुत्कुष्टमन्तर्मुहूर्तं जघन्यकं त्रीन्द्रियजीवानामन्तरमेतद्वयाख्यातम् || १४३॥ एतेषां ||१४४ || चतुरिंद्रियास्तु ये जीवा, द्विविधास्ते प्रकीर्तिताः पर्याप्ता अपर्याप्तास्तेषां भेदान्श्रुगुत मे. ॥१४५|| अन्धिकाः पौत्तिकाश्चैव मक्षिका मशकास्तथा; भ्रमरः कीटपतङ्गश्च, ठिकणः कुंकणस्तथा ॥ १४६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330