Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Suryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 306
________________ उत्तराध्ययन सूत्र. २९. पल्लोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा । जलगा जालगा चेव, चन्दणा य तहेव य ॥१२९॥ इइ बेइंदिया एए, गहा एवमायओ। लोगेगदेसे ते सव्वे, ण सव्वस्थ वियाहिया ॥१३०॥ संतई पप्पऽणाईया, अपञ्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, मपज्जवसिया वि य ॥१३१॥ वासाइं वारसेव उ, उक्कोसेण वियाहिया । बेइंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहणिया ॥१३२॥ संखिजकालमुक्कोस, अंतोमुहत्तं जहणिया । बेइंदियकायठिई, तं कार्य तु अमुंचओ ॥१३३॥ अगंतकालमुक्कोस, अंतोमुहत्तं जहण्णय । बेइंदियजीवाणं, तरेअं वियाहियं ॥१३४॥ पल्लका अणुपल्लाश्चव, तथैव च वराटकाः; जलूका जालकाश्चैव, चन्दनाश्च तथैव च ।।१२९।। इति द्वीन्द्रिया एते, अनेकधैवमादयः; लोकैकदेशे ते सर्वे, न सर्वत्र व्याख्याताः ॥१३०॥ सन्तति प्राप्याऽनादिका, अपर्यवसिता अपि च; स्थिति प्रतीत्य सादिकाः, सपर्यवसिता अपि च ॥१३१॥ वर्षाणि द्वादशैवत्वोत्कृष्टा व्याख्याताः; द्वीन्द्रियायुस्थितिरन्तर्मुहूर्त जघन्यकम् ॥१३२॥ संख्येयकालमुत्कृष्टाऽन्तर्मुहूर्त जघन्यकम् ; द्वीन्द्रियकायस्थितिः, तं कायं त्वमुञ्चतः ॥१३३।। अनन्तकालमुत्कृष्टमन्तर्मुहूर्त जघन्यक; द्वीन्द्रियजीवानामन्तरमेतद्वयाख्यातम् ॥१३४||

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