Book Title: Uttaradhyayanani
Author(s): Suryodaysagarsuri, Narendrasagarsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 311
________________ २९८ अध्ययन ३६ ne संतई पप्पऽणाईया, अपजऽवसिया वि य । टिइ पडुच्च साईया, मपज्जवसिया वि य ॥१५९॥ सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहण्णेणं, दसवाससहस्सिया ॥१६०॥ तिण्णेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए जहण्णेणं, एगं तु सागरावमं ॥१६१॥ सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए जहण्णेणं, तिण्णेव उ सागरोवमा ॥१६२॥ दस सागरोवमा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहष्णेणं, सत्तेव उ सागरोवमा ॥१६३॥ सत्तरस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । पंचमाए जहण्णेणं, दस चेव उ सागरोवमा ॥१६४॥ सन्तति प्राप्याऽनादिका, अपर्यवसिता अपि च; स्थितिं प्रतीत्य सादिकाः, सपर्यवसिता अपि च ॥१५९।। सागगेपममेकं तृत्कृष्टेन व्याख्याता; प्रथमायां जघन्येन, दशवर्षसहस्रिका ॥१६०॥ त्रीण्येव सागराण्यायुरुत्कष्टेन व्याख्याता; द्वितीयायां जघन्येनेकं तु सागरोपमम् ॥१६१।। सप्तैव सागराण्यायुरुत्कृष्टेन व्याख्याता; तृतीयायां जघन्येन, त्रिण्येव तु सागरोपमानि ।।१६।। दश सागरोपमाण्यायुरुत्कृप्टेन व्याख्याता; चतुर्थ्यां जघन्येन, सप्तेव तु सागरोपमानि ॥१६३।। सप्तदश सागगण्यायुरुत्कष्टेन व्याख्याता; पञ्चम्यां जघन्येन, दश चैव तु सागरोपमानि ॥१६॥

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