________________ इस व्रत के अतिचारों में प्रथम आठ को दो दो की जोड़ी में इकट्ठा कर दिया गया है और नवें को अलग लिया गया है, इस प्रकार नीचे लिखे पांच अतिचार बताए गए हैं___ 1: क्षेत्रवस्तु परिमाणातिक्रम 2. हिरण्यसुवर्ण परिमाणातिक्रम 3. द्विपदचतुष्पद परिमाणातिक्रम 4. धन-धान्य परिमाणातिक्रम 5. कुप्य परिमाणातिक्रम / दिशा-परिमाण व्रत पांचवें व्रत में सम्पत्ति की मर्यादा स्थिर की गई है। छठे दिशा-परिमाण व्रत में प्रवृत्तियों का क्षेत्र सीमित किया जाता है। श्रावक यह निश्चय करता है कि ऊपर, नीचे एवं चारों दिशाओं में निश्चित सीमा से आगे बढ़कर मैं कोई स्वार्थमूलक प्रवृत्ति नहीं करूंगा। साधु के लिए क्षेत्र की मर्यादा का विधान नहीं है, क्योंकि उसकी प्रवृत्ति हिंसात्मक या स्वार्थमूलक नहीं होती। वह किसी को कष्ट नहीं पहुंचाता प्रत्युत् धर्म-प्रचारार्थ ही घूमता है। विहार अर्थात् धर्म प्रचार के लिए घूमते रहना उसकी साधना का आवश्यक अंग है, किन्तु श्रावक की प्रवृत्तियां हिंसात्मक भी होती हैं अतः उनकी मर्यादा स्थिर करना आवश्यक है। विभिन्न राज्यों में होने वाले संघर्षों को सामने रखकर विचार किया जाए तो इस व्रत का महत्व ध्यान में आ जाता है और यह प्रतीत होने लगता है कि वर्तमान युग में भी इसका कितना महत्व है। यदि विभिन्न राज्य अपनी-अपनी राजनीतिक एवं आर्थिक सीमाएं निश्चित कर लें तो बहुत से संघर्ष रुक जाएं। श्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रों में परस्पर व्यवहार के लिए पंचशील के रूप में जो आचार-संहिता बनाई है उसमें इस सिद्धान्त को प्रमुख स्थान दिया है कि कोई राज्य दूसरे के राज्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस व्रत के पांच अतिचार निम्नलिखित हैं१. ऊर्ध्वदिशा में मर्यादा का अतिक्रमण | .2. अधोदिशा में मर्यादा का अतिक्रमण / ___3. तिरछीदिशा—अर्थात् पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में मर्यादा का अतिक्रमण / 4. क्षेत्रवृद्धि—अर्थात् असावधानी या भूल में मर्यादा के क्षेत्र को बढ़ा लेना। 5. स्मृति अन्तर्धान—मर्यादा का स्मरण न रखना। उपभोगपरिभोग परिमाण व्रत.. सातवें व्रत में वैयक्तिक आवश्यकताओं पर नियंत्रण किया गया है। उपभोग का अर्थ है, भोजन-पानी आदि वस्तुएं जो एक बार ही काम में आती हैं। परिभोग का अर्थ है, वस्त्र, पात्र, शय्या आदि वस्तुएं जो अनेक बार काम में लाई जा सकती हैं। उपभोग और परिभोग शब्दों का उपरोक्त अर्थ भगवतीसूत्र शतक 7 उद्देशाक 2 में तथा हरिभद्रीयावश्यक अध्ययन 6 सूत्र 7 में किया गया है। | . श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 56 / प्रस्तावना