Book Title: Upasakdashang Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 351
________________ छाया-ततः खलु सा रेवती गाथापली महाशतकेन श्रमणोपासकेनैवमुक्ता सत्येवमवादीत—“रुष्टः खलु मम महाशतकः श्रमणोपासकः, हीनः खलु मम महाशतकः श्रमणोपासकः, अपध्याताखल्वहं महाशतकेन श्रमणोपासकेन, न ज्ञायते खल्वहं केनापि कुमारेण मारयिष्ये" इति कृत्वा भीता, त्रस्ता, नष्टा उद्विग्ना सजातभया शनैः शनैः प्रत्यवष्वष्कति प्रत्यवष्वष्कक्य येनैव स्वकं गृहं तेनैवोपागच्छति, उपागत्य, अवहत यावद्-ध्यायति / शब्दार्थ तए णं सा रेवई गहावइणी तदनन्तर वह रेवती गाथापली, महासयएणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणी महाशतक श्रमणोपासक के द्वारा इस प्रकार कही जाने पर, एवं वयासी बोली–रुद्रेणं ममं महासयए समणोवासए मुझ पर महाशतक श्रमणोपासक रुष्ट हो गया है, हीणे णं ममं महासयए समणीवास—महाशतक मेरे प्रति हीन अर्थात् दुर्भावना वाला हो गया है, अवज्झाया णं अहं महासयएणं समणोवासएणं–महाशतक मेरा बुरा चाहता है, न नज्जइ णं अहं मैं नहीं जानती, केणवि कुमारेणं मारिज्जिस्सामि कि मैं किस मौत से मारी जाऊंगी (ऐसा विचार करके), भीया- भयभीत हुई, तत्था त्रसित होकर, तसिया डर गई, उव्विग्गाः उद्विग्न हो उठी, संजाय भया—भय के कारण, सणियं 2 पच्चोसक्कइ-शनैः . 2 वापिस लौटी, पच्चोसक्कित्ता–लौटकर वहां से निकलकर, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ–जहाँ अपना घर था, वहाँ पर आई, उवागच्छिता—आकर, ओहय जाव ज्झियाइ–उदास होकर चिंता में डूब गई। भावार्थ रेवती गाथापली महाशतक द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर सोचने लगी—“महाशतक मेरे से रुष्ट हो गया है, मेरे प्रति बुरे विचार ला रहा है। न मालूम मैं किस मौत से मारी जाऊंगी। यह विचार कर डर के कारण वहां से चली गई और अपने घर जा पहुंची। . रेवती का मरकर नरक में उत्पन्न होनामूलम् तए णं सा रेवई गाहावइणी अंतो सत्त-रत्तस्स अलसएणं, वाहिणा अभिभूया अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीइ-वास-सहस्स-ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ना // 257 // छाया–ततः खलु सा रेवती गाथापली अन्तः सप्तरात्रस्यालसकेन व्याधिनाऽभिभूताऽऽर्तदुःखार्त्तवशार्ता कालमासे कालं कृत्वाऽस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां लोलुपाच्युते नरके चतुरशीतिवर्षसहस्रस्थितिकेषु नैरयिकेषु नैरयिकतयोपपन्ना। शब्दार्थ तए णं सा रेवई गाहावइणी—तदनन्तर वह रेवती गाथापली, अंतो सत्तरत्तस्स—सात रात्री के अन्दर ही, अलसएणं वाहिणा-अलसक व्याधि से, अभिभूया—पीड़ित होकर, अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा–चिन्तित, दुखी तथा विवश होकर, कालमासे कालं किच्चा–काल मास में काल श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 346 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन

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