________________ भावार्थ भगवान् गौतम ने महाशतक श्रमणोपासक से कहा-“देवानुप्रिय! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का यह कथन है कि संलेखनाधारी श्रावक को ऐसा कहना नहीं कल्पता। तुमने अपनी पत्नी रेवती को ऐसा कहा है। अतः इस दोष की आलोचना करो यावत् यथा-योग्य प्रायश्चित्त अङ्गीकार करो। महाशतक द्वारा भूल स्वीकार करना और प्रायश्चित लेनामूलम् तए णं से महासयए समणोवासए भगवओ गोयमस्स ‘तह' त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव अहारिहं च पायच्छित्तं पडिवज्जइ // 265 // छाया ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासको भगवतो गौतमस्य 'तथेति' एतमर्थं विनयेन प्रतिश्रृणोति, प्रतिश्रुत्य तत् स्थानमालोचयति, यावद् यथार्हं च प्रायश्चित्तं प्रतिपद्यते / / शब्दार्थ तए णं से महासयए समणोवासए तदनन्तर उस महाशतक श्रमणोपासक ने, भगवओ गोयमस्स भगवान् गौतम की, एयमटुं इस बात को, तहत्ति तथेति (ठीक है) कह कर, विणएणं पडिसुणेइ–विनय पूर्वक स्वीकार किया, पुडिसुणेत्ता स्वीकार करके, तस्स ठाणस्स आलोएइ–उस बात की आलोचना की, जाव—यावत्, अहारिहं च यथा-योग्य, पायच्छित्तं पडिवज्जइ—प्रायश्चित्त अङ्गीकार किया। ___ भावार्थ महाशतक ने भगवान् गौतम की इस बात को विनय पूर्वक 'तथेति' कहकर स्वीकार किया और अपने दोष के लिए आलोचना, प्रायश्चित किया। गौतम स्वामी का वापिस आनामूलम् तए णं से भगवं गोयमे महासयगस्स समणोवासयस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मझं-मज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ // 266 // छाया ततः खलु स भगवान् गौतमो महाशतकस्य श्रमणोपासकस्यान्तिकात्प्रतिनिष्कामति प्रतिनिष्क्रम्य राजगृहं नगरं मध्यं-मध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य येनैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तेनैवोपागच्छति, उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं वंदते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्कृत्य संयमेन तपसाऽऽत्मानं भावयन् विहरति / शब्दार्थ तए णं से भगवं गोयमे—उसके पश्चात् भगवान् गौतम, महासयगस्स श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 354 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन