Book Title: Upasakdashang Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 386
________________ ने काट डाला जिससे वह टेढा हो गया। इसी कारण बालक का नाम कूणिक पड़ गया। जब वह बड़ा हो गया श्रेणिक ने अपने ग्यारह पुत्रों को बुलाया और राज्य को उनमें बांट देने के लिए कहा। कूणिक सारे राज्य. पर अकेला अधिकार करना चाहता था। उसने षड्यंत्र करके पिता को कैद में डाल दिया और स्वयं गद्दी पर बैठ गया। श्रेणिक को भूखा तथा प्यासा रखा जाने लगा और प्रतिदिन 100 कोड़े लगाए जाने लगे। चेलना को भी उससे मिलने की अनुमति नहीं मिली। कुछ दिनों बाद उसने किसी प्रकार अनुमति प्राप्त की और वह अपने बालों में ऐसी वस्तुएं छिपाकर ले गई जिससे पति की प्राण रक्षा हो सके। - एक दिन कूणिक कुछ शान्त होकर माता से बातें कर रहा था। चेलना ने बताया कि किस प्रकार वह बाहर फेंक दिया गया था और किस प्रकार पिता के कहने पर उसे वापिस लाया गया। उसका अंगूठा सूज गया था और पीक भरने के कारण असह्य वेदना हो रही थी। उसी समय पिता ने अंगूठे को मुंह में ले लिया तथा पीक और गन्दे खून को चूस लिया। कूणिक को यह सुनकर बड़ा पश्चात्ताप हुआ और वह तत्काल पिता को मुक्त करने के लिए कारागार में पहुंचा। श्रेणिक ने समझा कूणिक जेल से निकालकर मुझे अन्य यातनाएं देगा। अतः उसने तालपुट विष खाकर आत्महत्या कर ली। * जियसत्तू (सं.–जितशत्रु)—प्रस्तुत.सूत्र में राजगृह का राजा श्रेणिक था और शेष 7 नगरों के नाम हैं 1. वाणिज्य ग्राम, 2. चम्पा, 3. वाराणसी, 4. आलभिका, 5. कम्पिलपुर, 6. पोलासपुर, 7. श्रावस्ती। __ तत्कालीन इतिहास ग्रन्थों में जितशत्रु नामक किसी राजा का नाम नहीं मिलता। श्रेणिक के पुत्र का नाम अजातशत्रु था जो पिता को कैद करके गद्दी पर बैठा था। जैन साहित्य में उसका वर्णन कूणिक के नाम से आया है। उसने आस-पास के जनपदों को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था। किन्तु वह जितशत्रु नहीं हो सकता। क्योंकि भगवान महावीर अपने 22 वें वर्षावास के लिए जब राजगृह पहुंचे तो वहां श्रेणिक राजा था और 16 वें वर्षावास में उन्होंने वाणिज्यग्राम पहुंचकर आनन्द को प्रतिबोध दिया। उस समय वहां जितशत्रु का निर्देश आया है। इसी प्रकार आलंभिका नगरी में वे १८वें वर्षावास में पहुंचे। श्रेणिक के जीवन काल में वहां अजातशत्रु नहीं हो सकता। अतः यही मानना उचित है कि जितशत्रु केवल विशेषण है, वह व्यक्तिवाचक नाम नहीं। पुण्णभद्द चेइअ (पूर्णभद्र चैत्य)—चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य का निर्देश आया है। निरयावलिका सूत्र। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 381 / परिशिष्ट

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