Book Title: Upasakdashang Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 342
________________ शब्दार्थ-तए णं सा रेवई गाहावइणी तदनन्तर वह रेवती गाथापत्नी, मंस-लोलुया—मांस में लोलुप, मंसेसु मुच्छिया—मांस में मूर्छित, गिद्धा—मांस में गृद्ध होती हुई, गढिया मांस में ग्रथित अर्थात् अंग-अंग में मांस भक्षण के अनुराग वाली, अज्झोववन्ना-मांस में ही अत्यन्त आसक्त होती हुई, बहुविहेहिं मंसेहि य-नाना प्रकार के मांसों में और, सोल्लेहि य—मांस के शूलकों में और, तलिएहि य तले हुए मांस आदि में और, भज्जिएहि य-भूने हुए मांस में और, सुरं च महुं च मेरगं च–सुरा (गुड आटे से बनी हुई शराब) मधुक, महुआ से बनी शराब तथा मेरग, मज्जं च—'आसव' नामक अपरिपक्व मद्य, सीधुं च तथा सीधु नामक शराब, पसन्नं च–सुगंधयुक्त शराब आदि को, आसाएमाणी 4 विहरइ—आस्वादन करती हुई विचरने लगी। ___ भावार्थ-रेवती गाथापत्नी मांस तथा मदिरा में आसक्त रहने लगी। शूलक, तले हुए, भुने हुए तथा अन्य प्रकार के मांसों के साथ सुरा, सीधु, मेरक, मधु, मद्य तथा अन्य प्रकार की मदिराओं का सेवन करने लगी। राजगृह में अमारि की घोषणामूलम् तए णं रायगिहे नयरे अन्नया कयाइ अमाघाए घुढे यावि होत्था // 241 // छाया ततः खलु राजगृहे नगरे अन्यदा कदाचित् अमाघातः (अमारिः) घुष्टश्चाप्यासीत् / शब्दार्थ-तए णं रायगिहे नयरें तदनन्तर राजगृह नगर में, अन्नया कयाइ—एक दिन, अमाघाए घुढे यावि होत्था—अमारि अर्थात् किसी जीव को न मारने की घोषणा हुई। भावार्थ एक दिन राजगृह नगर में अमारि अर्थात् हिंसा न करने की घोषणा हुई। __रेवती द्वारा खाने के लिए पीहर से बछड़े मंगवानामूलम् तए णं सा रेवई गाहावइणी मंस-लोलुया मंसेसु मुच्छिया 4 कोलघरिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी—“तुब्भे, देवाणुप्पिया! मम कोल-घरिएहिंतो वएहितो कल्लाकल्लिं दुवे दुवे गोणपोयए उद्दवेह, उद्दवित्ता ममं उवणेह" || 242 // छाया ततः खलु सा रेवती गाथापली मांसलोलुपा मांसेषु मूर्छिता 4 कौलगृहिकान् पुरुषान् शब्दापयति शब्दापयित्वा एवमवादीत्–“यूयं देवानुप्रियाः! मम कौलगृहिकेभ्यो व्रजेभ्यः कल्याकल्यिं द्वौ-द्वौ गोपोतकावुपद्रवत, उपद्रुत्य ममोपनयत / " शब्दार्थ तए णं सा रेवई गाहावइणी—इस पर उस रेवती गाथापत्नी ने, मंसलोलुया—मांस लोलुप, मंसेसु मुच्छिया तथा मांस में मूर्छित होकर, कोलघरिए पुरिसे सद्दावेइ-अपने पितृ-गृह के पुरुषों को बुलाया, सद्दावित्ता बुलाकर, एवं वयासी—इस प्रकार कहा, तुब्भे देवाणुप्पिया! हे | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 337 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन

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