Book Title: Upasakdashang Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 347
________________ महाशतक द्वारा प्रतिमा ग्रहणमूलम् तए णं से महासयए समणोवासए पढमं उवासग-पडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ / पढमं अहा-सुत्तं जाव एक्कारसऽवि // 250 // तए णं से महासयए समणोवासए तेणं उरालेणं जाव किसे धमणिसंतए जाए॥ 251 // छाया ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासकः प्रथमामुपासकप्रतिमामुपसंपद्य विहरति, प्रथमां यथासूत्रं यावदेकादशापि। ततः खलु स महाशतकः श्रमणोपासकस्तेनोदारेण यावत्कृशो धमनिसन्ततो जातः / शब्दार्थ तए णं से महासयए समणोवासए तदनन्तर वह महाशतक श्रमणोपासक, पढमं उवासगपडिमं प्रथम उपासक-प्रतिमा को ग्रहण करके, विहरइ–विचरने लगा, पढमं अहा-सुत्तं जाव एक्कारसऽवि—प्रथम से लेकर यावत् 11 श्रावक प्रतिमाओं को शास्त्रानुसार अङ्गीकार किया। तए णं से महासयए समणोवासए तदनन्तर वह महाशतक श्रमणोपासक, तेणं उरालेणं उस उग्र तपश्चरण के द्वारा, जाव यावत्, किसे कृश होकर, धमणि संतए जाए—उसकी नस-नस दिखाई देने लगी। भावार्थ तदनन्तर श्रमणोपासक महाशतक ने क्रमशः पहली से लेकर ग्यारहवीं तक श्रावक की प्रतिमाएं स्वीकार की और शास्त्रोक्त रीति से आराधना की। उस उग्र तपश्चर्या के कारण उसका शरीर अत्यन्त कृश हो गया और उसकी नस-नस दिखाई देने लगी। ___ मूलम् तए णं तस्स महासययस्स समणोवासयस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्म-जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए ४–“एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं" जहा आणंदो तहेव अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणाए झूसियसरीरे भत्त-पाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ // 252 // छाया ततः खलु तस्य महाशतकस्य श्रमणोपासकस्यान्यदाकदाचित्पूर्वरात्रापरत्रकाले धर्म-जागरिकां जाग्रतोऽयमाध्यात्मिकः ४–“एवं खलु अहमनेनोदारेण" यथाऽऽनन्दस्तथैवापश्चिममारणान्तिकसंलेखनया जोषितशरीरो भक्तपानप्रत्याख्यातः कालमनवकांक्षन् विहरति / शब्दार्थ तए णं तस्स महासययस्स समणोवासयस तदनन्तर उस महाशतक श्रमणोपासक को, अन्नया कयाइ–एक दिन, पुव्वरत्तावरत्तकाले—अर्धरात्री के समय, धम्म-जागरियं जागरमाणस्स—धर्म जागरणा करते हुए, अयं अज्झथिए ४—यह विचार उत्पन्न हुआ, एवं खलु अहं इस प्रकार मैं, इमेणं उरालेणं—इस उग्रतपश्चर्या के कारण अति कृश हो गया हूं यावत्, जहा आणंदो-जिस प्रकार श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 342 / महाशतक उपासक, अष्टम अध्ययन

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