________________ शब्दार्थ जम्बू स्वामी के प्रश्न के उत्तर में आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा—एवं खलु जम्बू ! इस प्रकार है जम्बू !, तेणं कालेणं तेणं समएणं—उस काल उस समय जबकि भगवान् महावीर विद्यमान थे, वाणियगामे नामं नयरे होत्था—वाणिज्यग्राम नाम का नगर था, वण्णओ नगर के वर्णन अन्य नगरों के समान जान लेना चाहिए, तस्स णं वाणियगामस्स नयरस्स बहिया—उस वाणिज्य ग्राम नगर के बाहर, उत्तर पुरथिमे दिसि भाए—उत्तरपूर्व दिशा ईशानकोण में, दूइपलासए नाम चेइए होत्थादूतीपलाश नामक चैत्य था। तत्थ णं वहां, वाणियगामे नयरे—वाणिज्यग्राम नगर में, जियसत्तू नामं राया होत्था—जितशत्रु राजा था। वण्णओ राजा का वर्णन कूणिक की तरह है, तत्थ णं वहां, वाणियगामे नयरे वाणिज्यग्राम नामक नगर में, आणंदे नामं गाहावई परिवसइ–आनन्द नामक गाथापति रहता था। अड्डे जाव अपरिभूए—वह धनाढ्य यावत् अपरिभूत था। . भावार्थ सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया हे जम्बू ! उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था, अन्य नगरों के समान उसका वर्णन जान लेना चाहिए। उस वाणिज्यग्राम नगरं के बाहर उत्तरपूर्व अर्थात् ईशान कोण में दूतीपलाश नामक चैत्य था। वाणिज्यग्राम नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था। वह भी वर्णनीय था। उस नगर में आनन्द नामक गाथापति रहता था। वह धनाढ्य यावत् अपरिभूत था। टीका—इस सूत्र में वाणिज्यग्राम नगर का वर्णन किया गया है। सुधर्मा स्वामी कहते हैं, हे जम्बू ! उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नाम का एक नगर था और उसके बाहर ईशान कोण में दूतीपलाश नाम का चैत्य था। वहां जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसी नगर में आनन्द नामक . गाथापति रहता था, वह धनी और सब प्रकार से समर्थ था। इस सूत्र में 'वण्णओ' शब्द दो बार आया है। पहली बार वाणिज्य ग्राम के लिए और दूसरी बार जितशत्रु राजा के लिए। इसका यह आशय है कि नगर और राजा का वर्णन औपपातिक सूत्र के समान समझ लेना चाहिए। नगर का नाम वाणिज्य ग्राम है। प्रतीत होता है कि वह वाणिज्य अर्थात् व्यापार का केन्द्र रहा होगा। जिस प्रकार चम्पा नगरी का विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र में किया गया है, उसी प्रकार इस नगर का वर्णन भी जान लेना चाहिए। उसके ईशान कोण में दूतीपलाश नाम का चैत्य था। उसका वर्णन पूर्णभद्र चैत्य के समान जानना चाहिए। जिस प्रकार औपपातिक सूत्र में कौणिक राजा का वर्णन किया गया है, उसी के समान जितशत्रु राजा का भी वर्णन जान लेना चाहिए | उसी नगर में आनन्द नामक गाथापति रहता था। गाथापति का अर्थ है—“गीयते-स्तूयते लोकैर्धनधान्यादि समृद्धि युक्ततयेति यद्वा गाथ्यते श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 76 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन ,