________________ मूलम् तयाणंतरं च णं पाणिय-विहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेणं अंतलिक्खोदएणं; अवसेसं पाणियविहिं पच्चक्खामि // 41 // छाया—तदनन्तरं च खलु पानीयविधिपरिमाणं करोति / नान्यत्रैकस्मादन्तरिक्षोदकात्, अवशेष पानीयविधिं प्रत्याख्यामि। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, पाणिय विहिपरिमाणं पीने के पानी का परिमाण, करेइ–किया, एगेणं—एक, अंतलिक्खोदएणं—बादलों के पानी के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, पाणियविहिं—जलों का, पच्चक्खामि प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ इसके बाद पानीयविधि का अर्थात् पीने के पानी का परिमाण किया और एकमात्र वर्षा के पानी के अतिरिक्त अन्य सब जलों का प्रत्याख्यान किया / (21) ताम्बूलविधि मूलम् तयाणंतरं च णं मुहवास-विहि-परिमाणं करेइ। नन्नत्थ पंचसोगंधिएणं तंबोलेणं, अवसेसं मुहवास-विहिं पच्चक्खामि // 42 // छाया तदनन्तरं च खलु मुखवासविधि परिमाणं करोति। नान्यत्र पञ्चसौगन्धिकात्ताम्बूलादवशेषं मुखवासविधिं प्रत्याख्यामि। ___ शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, मुहवास-विहि-परिमाणं—मुखवास विधि का परिमाण, करेइ–किया, पंचसोगंधिएणं तंबोलेणं—पांच सुगन्धित वस्तुओं से युक्त ताम्बूल के नन्नत्य—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, मुहवासविहिं—मुखवासविधि अर्थात् मुख को सुगन्धित करने वाले द्रव्यों का पच्चक्खामि—प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ इसके पश्चात् मुखवास विधि का परिमाण किया और पांच सुगन्धित पदार्थों से युक्त ताम्बूल के सिवाय मुख को सुगन्धित करने वाले अन्य पदार्थों का परित्याग किया। टीका-पंचसोगंधिएणं—पांच सुगन्धित द्रव्य निम्नलिखित हैं—कंकोल, (कालीमिर्च), एला, लवंग, जातिफल, कर्पूर। आठवाँ-अनर्थदण्डविरमण व्रत मूलम् तयाणंतरं च णं चउव्विहं अणट्ठादंडं पच्चक्खामि। तं जहा–अवज्झाणायरियं, पमायायरियं, हिंसप्पयाणं, पाव-कम्मोवएस // 43 // छाया—तदनन्तरं च खलु चतुर्विधमनर्थदण्डं प्रत्याख्यामि, तद्यथा—अपध्यानाचरितं, प्रमादाचरितं, हिंस्रप्रदानं, पापकर्मोपदेशम् / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं—इसके अनन्तर, चउव्विहं—चार प्रकार के, अणट्ठादंडं—अनर्थदण्ड . श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 105 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन