________________ छाया तदनन्तरं च खलु स्थूलकस्य प्राणातिपातविरमणस्य श्रमणोपासकेन पञ्चातिचारा पेयाला ज्ञातव्या न समाचरितव्याः, तद्यथा—बन्धः, वधः, छविच्छेदः, अतिभारः, भक्तपानव्यवछेदः।। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं—इसके अनन्तर, थूलगस्स—स्थूल पाणाइवायवेरमणस्सप्राणातिपातविरमण व्रत के, पंच-पांच, पेयाला प्रधान, अइयारा—अतिचार, समणोवासएणंश्रमणोपासक को, जाणियव्वा—जानने चाहिएँ, न समायरियव्वा परन्तु आचरण न करने चाहिएँ। तं जहा वे इस प्रकार हैं—बंधे—बंध, वहे—वध, छविच्छेए छविच्छेद अर्थात् अंग-विच्छेद, अइभारे—अतिभार, भत्तपाणवोच्छेए—और भक्तपानव्यवच्छेद / भावार्थ तदनन्तर स्थूल प्राणातिपातविरमण व्रत के पांच मुख्य अतिचार जानने चाहिएं, परन्तु उनका आचरण न करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं—१. बन्ध–पशु आदि को कठोर बंधन से बांधना। 2. वध घातक प्रहार करना। 3. छविच्छेद—अंग काट देना। 4. अतिभार—सामर्थ्य से अधिक भार लादना। 5. भक्तपान-व्यवच्छेद–भोजन और पानी को रोकना या समय पर न देना। . . टीका प्रस्तुत सूत्र में अहिंसा व्रत के पाँच अतिचार बताए गए हैं। इसके पहले सम्यक्त्व व्रत के अतिचार बताए गए थे। उसका सम्बन्ध श्रद्धा से है किन्तु अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच व्रतों का शील अथवा आचार के साथ सम्बन्ध है। थूलगस्स—(स्थूलकस्य) श्रावक को जीवन में अनेक प्रवृत्तियां करनी पड़ती हैं, अतः वह पूर्ण अहिंसा का पालन नहीं कर सकता। परिणामस्वरूप स्थूल हिंसा का परित्याग करता है। जैन धर्म में त्रस और स्थावर के रूप में जीवों को दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पतियों के जीव स्थावर कहे जाते हैं। वे अपनी इच्छानुसार चलने-फिरने में असमर्थ हैं। इसके विपरीत चलने-फिरने वाले जीव त्रस कहे गए हैं। श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का परित्याग करता है, स्थावरों की मर्यादा / त्रस जीवों में भी जो अपराधी हैं या हानि पहुँचाने वाले हैं उनकी हिंसा का परित्याग नहीं होता। इसी प्रकार यहाँ हिंसा का अर्थ है किसी को मारने या हानि पहुँचाने की बुद्धि से मारना / यदि कोई कार्य भलाई के लिए किया जाता है, किन्तु उसमें किसी की हिंसा हो जाती है या हानि पहुंचती है तो श्रावक को उसका त्याग नहीं है। उदाहरण के रूप में डॉक्टर चिकित्सा के लिए रोगी का ऑपरेशन करता है और उसमें रोगी को हानि पहुँच जाती है तो डॉक्टर का व्रत भंग नहीं होता। व्रत भंग तभी होता है जब डॉक्टर रोगी को हानि पहुँचाने की भावना से ऐसा करे / उपरोक्त छूटे होने के कारण श्रावक के व्रत को स्थूल कहा गया है। साधु के व्रत में ये छूटें भी नहीं होती। ___सर्वप्रथम स्थूल प्राणातिपात व्रत है, इस व्रत के अतिचारों में मुख्यतया पशु को सामने रखा गया है। उन दिनों दास प्रथा विद्यमान होने के कारण कभी-कभी मनुष्यों के साथ भी पशु के समान बरताव किया जाता था। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 110 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन .