________________ जो स्त्री घर के काम-काज में लगी रहती है, सबका स्नेह बढ़ाने वाली तथा चतुर होती है एवं परछाईं की तरह-पति की अनुगामिनी होती है, उसे शास्त्रों में अनुरक्ता कहा गया है। अविरक्ता की व्याख्या इस प्रकार है पडिऊले वि य भत्तरि किंचिवि रुट्ठा ण जा हवइ / जा उ मिउ भासिणी य णिच्चं सा अविरत्तत्ति णिद्दिट्ठा / / ' पति के प्रतिकूल होने पर भी जो स्त्री तनिक रोष नहीं करती, सदा मधुर वाणी बोलती है, वह अविरक्ता कही जाती है। इस कथन द्वारा सूत्रकर्ता ने पतिव्रता स्त्री के दो पदों में समस्त लक्षण बता दिये हैं। शिवानन्दा भार्या इन्द्रिय और मन को प्रसन्न करने वाले मनुष्य सम्बन्धी पाँच प्रकार के कामभोगों का उपभोग कर रही थी। कामभोग—शब्द, रूप आदि जिन विषयों का आनन्द एक साथ अनेक व्यक्ति ले सकते हैं, वे काम कहे जाते हैं तथा भोजन, पान, शय्या आदि को भोग कहते हैं, जहाँ भोग्य वस्तु भिन्न-भिन्न रहती हैं। ___ कोल्लाक सन्निवेश का वर्णनमूलम् तस्स णं वाणियगामस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं कोल्लाए नामं सन्निवेसे होत्था / रिद्ध-स्थिमिय जाव पासादीए; दरिसणिज्जे, अभिरूवे, पडिरूवे // 7 // छाया तस्मात् खलु वाणिज्य ग्रामाद् बहिरुत्तर पौरस्त्ये दिग्विभागेऽत्र खलु कोल्लाको नाम सन्निवेश आसीत् / ऋद्धः स्तिमितो यावत् प्रासादीयः, दर्शनीयः, अभिरूपः, प्रतिरूपः। शब्दार्थ तस्स णं—उस, वाणियगामस्स–वाणिज्यग्राम के, बहिया–बाहर, उत्तरपुरस्थिमेउत्तर पूर्व, दिसी भाए दिशा में, एत्थ णं यहाँ, कोल्लाए नामं सन्निवेसे—कोल्लाक नामक सन्निवेश, होत्था था। वह, रिद्ध-स्थिमिय-जाव पासादीए—ऋद्ध अर्थात् सम्पन्न, स्तिमित अर्थात् सुरक्षित यावत्, पासादीए प्रासादों से सुशोभित, दरिसणिज्जे दर्शनीय था। अभिरूवे—अभिरूप अर्थात् सुन्दर और पडिरूवे प्रतिरूप अर्थात् जैसा होना चाहिए वैसा था। भावार्थ वाणिज्यग्राम के बाहर ईशान कोण में कोल्लाक नामक सन्निवेश अर्थात् उपनगर था। वह, ऋद्ध-धन-धान्य आदि से सम्पन्न, स्तिमित–तस्कर आदि के उपद्रवों से रहित, प्रासादीयमनोहर, दर्शनीय देखने योग्य, अभिरूप—शोभापूर्ण तथा प्रतिरूप—अलौकिक छवि वाला था / 'प्रतिकूलेऽपिच भर्तरि, किञ्चिदपि रुष्टा न या भवति | . ___या तु मृदुभाषिणी च नित्यं सा अविरक्तेति निर्दिष्टा // | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 1 | आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन