________________ उपसंहार सम्यक्त्व से लेकर संलेखना तक जिन व्रतों का प्रतिपादन किया गया है वे एक आदर्श गृहस्थ की चर्या को प्रकट करते हैं। उपासकदशाङ्ग सूत्र के प्रथम अध्ययन में इन सबका वर्णन है। इस अध्ययन का कथा-नायक आनन्द है, जो आदर्श जैन श्रावक माना जाता है। शेष श्रावकों के लिए भी इन्हीं व्रतों का विधान किया गया है। जैन धर्म आश्रम व्यवस्था को नहीं मानता, उसकी दृष्टि में यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति वृद्ध होने पर ही त्याग की ओर प्रवृत्त हो। फिर भी श्रावकों के जीवन में उस व्यवस्था की झांकी मिलती है। बारह व्रत गृहस्थ आश्रम को प्रकट करते हैं, प्रतिमाएं वानप्रस्थ आश्रम को और मुनि धर्म संन्यास को। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 65 / प्रस्तावना