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आभार
मालवा की हृदयस्थली सांस्कृतिक नगरी उज्जयिनी के लिए वर्ष १९८५ सौभाग्यशाली रहा । कारण इस वर्ष यहाँ काश्मीर-प्रचारिका अध्यात्म-योग साधिका, प्रवचन शिरोमणि परम विदुषी महासती श्री उमरावकंवरजी म. सा. 'अर्चना' का ठाणा दस से चातुर्मास था। अापका यह यशस्वी चातुर्मास जिस ठाट-बाट से प्रारम्भ हुअा, उसी धूमधाम से इसका समापन भी हुप्रा । लगभग पूरे चातुर्मास की अवधि में कुछ न कुछ कार्यक्रम होते ही रहे । मैं यद्यपि उज्जैन से बाहर कर्त्तव्यस्थ हैं किंतु फिर भी महावीर भवन, नमकमण्डी, उज्जैन इस अवधि में बरावर अापके दर्शनार्थ एवं कार्यक्रमों में जाता रहा। इस अवधि में साहित्यिक दृष्टि से भी बहुत उपयोगी कार्य हुए।
अभी चातुर्मास समाप्त नहीं हुआ था। लगभग दस बारह दिन शेष थे। पूजनीया महानतीजी की एक पुस्तक मेरे हाथ में थी। मैं उसका अध्ययन करना चाहता था। प्रारम्भिक कृष्ठ पलटे और एकाएक अापकी दीक्षातिथि पर दृष्टि स्थिर हो गई। अनायास गणना करने नगा और पाया कि संवत् २०४४ में आपके साधनामय जीवन के पचास वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। अगला वर्ष अर्थात् वि. सं. २०४५ आपकी दीक्षा-स्वर्णजयन्ती वर्ष है, इस जानकारी ने मन में एक नई स्फूर्ति उत्पन्न कर दी। इस अवसर पर अवश्य ही कुछ न कुछ विशिष्ट प्रायोजन होना चाहिये, जिससे स्थायी स्मृति बनी रहे। उनके बहुमानार्थ एक विशिष्ट अभिनन्दनग्रन्थ का भी प्रकाशन कर उनकी सेवामें समर्पित किया जा सकता है । वे कोरम-कोर कोई साधारण नारी नहीं हैं । वे साधना के उच्चतम शिखर पर विराजित, ज्ञानगरिमा से मंडित एक ऐसी योगसाधिका हैं जिनके चरणों का पावन स्पर्श पाकर धरती का कण-कण पुलकित है और जिनकी साधना की सौरभ दिग-दिगन्त को अपनी सुगन्ध से महका रही है। यदि ऐसे महिमानय व्यक्तित्व का वंदन-अभिनंदन करने से हम चूक गए तो इससे बढ़कर कृतघ्नता हमारे लिये और क्या होगी। यह अभिनन्दन किसी नारी का नहीं है, यह अभिनन्दन है मातृशक्ति का, जिसने अपने साधनामय जीवन के पचास वर्ष पूरे कर लिये हैं और इन पचास वर्षों में उन्होंने जो पाया है, वह अपने भक्तों में बिना किसी भेदभाव के नि:संकोत्र मतत बांटती चली या
ऐसे विचारों के पाते ही मैं अपनी बात के लिये महावीर भवन, नमकमंडी, उज्जैन के लिये चल देता हूँ । वहाँ जाकर देखा तो ऐसा लगा कि अाज किसी से बात करने का अवसर नहीं मिलने वाला है, क्योंकि आज दर्शनार्थियों की भीड़ अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक ही थी।
पूजनीया महासतीजी की सेवामें वन्दना करने के पश्चात् मैं वहीं अवसर की तलाश में बैठा रहा। इसी बीच वहीं विराजित पार्या श्री सुप्रभाकुमारीजी म. सा. 'सुधा' ने कोई एक पुस्तक अवलोकनार्थ मेरी पोर बढ़ा दी। मैं कुछ देर उस पुस्तक को देखता रहा। इसी बीच दर्शनार्थियों की भीड़ कम हुई और मुझे कुछ अवसर मिला। मैंने प्रार्या श्री सुप्रभाकुमारीजी
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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