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अर्चनार्चन | २०
ज्यों-ज्यों यह भावना श्रद्धालु जनों तक पहुंची, प्रायः सभी की ओर से बड़े सुन्दर, उत्साहप्रद विचार प्राप्त होते गये ।
परिणामतः अभिनन्दनग्रन्थ-प्रणयन का निश्चय किया गया। श्रीमान् डॉ. छगनलालजी शास्त्री तथा डॉ. तेजसिंहजी गौड़ के सहयोग से अभिनन्दन-ग्रन्थ की रूपरेखा तैयार की गई । उमे संतों, साध्वियों, विद्वानों, साहित्यकारों, लेखकों, कवियों, चिन्तकों, समाजसेवियों, कार्यकर्तायों तथा श्रद्धालु उपासकों को भेजा गया। मुझे यह लिखते अत्यन्त प्रसन्नता होती है, सभी ने ग्रन्थप्रणयन, प्रकाशन की योजना को समीचीन माना तथा अपनी-अपनी ओर से यथासमय लेख, कविता, संस्मरण, शुभकामना-संदेश प्रादि सामग्री प्रेषित की। उसी का यह परिणाम है, अभिनन्दन-ग्रन्थ प्राज तैयार है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में पांच खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में प्राशीर्वचन, श्रद्धार्चन, शुभाभिशंसन एवं अभिनन्दन से सम्बद्ध सामग्री है।
द्वितीय खण्ड में महासतीजी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व विविध सन्दर्भो में व्याख्यात हुआ है।
तृतीय खण्ड में महासतीजी की साहित्य-साधना एवं प्रवचन सम्बन्धी सामग्री है। चतुर्थ खण्ड में जैनसंस्कृति के विविध आयाम-दर्शन, साहित्य आदि विवेचित हुए हैं। पंचम खण्ड में योग, जो महासतीजी का प्रिय विषय है, के सम्बन्ध में मननीय सामग्री है।
मुझे यह प्रकट करते हार्दिक प्रसन्नता होती है कि लेखनी के धनी विद्वान संतों, सतियों, लेखकों, कवियों तथा साहित्यकारों ने बड़ी रुचि के साथ ग्रन्थ के लिए अपनी रचनाएं प्रेषित की। जैसी कि कल्पना थी, जिज्ञासुनों, साधकों तथा तत्त्वानुशीलकों के उपयोग की दृष्टि से ग्रन्थ बहुत उपादेय बन सका है, जिससे प्राशा है, वे सब लाभान्वित होंगे।
धर्म-संघ के महान अधिनायक परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यसम्राट श्री आनन्दऋषिजी म० सा० ने ग्रन्थ के लिए अपना शुभाशीर्वचन प्रदान कर हमें उत्साहित किया, उनके इस अपरिसीम अनुग्रह के लिए हम शत-शत श्रद्धाभिनत हैं। किन शब्दों में प्राभार व्यक्त करें।
अनुयोगप्रवर्तक पण्डितरत्न मुनिश्री कन्हैयालालजी म. सा. "कमल", साहित्य-वाचस्पति श्री देवेन्द्रमुनिजी म. सा०, डॉ० शिवमुनिजी म० सा० एम० ए०, पी-एच० डी०, कविवर मुनिश्री विनयकुमारजी म० सा० "भीम' तथा परम तपस्विनी महासतीजी श्री उम्मेदकंवरजो म० सा० का ग्रन्थ के सन्दर्भ में जो सत्परामर्श प्राप्त रहा, उससे हमें बड़ा दिशा-दर्शन मिलता रहा, जो कार्य की प्रगति में बड़ा प्रेरक सिद्ध हुमा ।
सम्पादकमंडल के सम्मानास्पद सदस्य ज्ञानमहोदधि पं० शोभाचन्द्रजी भारिल्ल शास्त्री, न्यायतीर्थ; संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं तथा भारतीय दर्शनों के राष्ट्रविश्रत मनीषी प्राच्याविद्याचार्य डॉ० छगनलालजी शास्त्री एम० ए० (त्रय), पी-एच० डी०, काव्यतीर्थ, विद्यामहोदधि ; प्रबन्धसंपादक श्रीयुक्त डॉ. तेजसिंहजी गौड़ एम० ए०, पी-एच० डी०; सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ० हरीन्द्रभूषणजी जैन एम० ए०, पी-एच० डी० आदि का इस ग्रन्थ के प्रणयन एवं सम्पादन में जो महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, वह सर्वथा स्तुत्य है। डॉ० छगन
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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