________________
अर्चनार्चन / २१
लालजी शास्त्री ग्रन्थ के कार्य को आगे बढ़ाने हेतु दो बार मद्रास जैसे दूरवर्ती स्थान से खाचरौद आये, यथेष्ट समय दिया ।
1
उपयुक्त व अन्य विद्वानों ने भी इस कार्य को गति प्रदान करने में उदारतापूर्वक अपना समय एवं श्रम प्रदान किया। मैं इन सबका हृदय से प्राभार व्यक्त करती हूँ। इन सभी विद्वानों का पूजनीया गुरुणीजी म० के प्रति हार्दिक श्रद्धाभाव समादर एवं प्रात्मीयत्व है। महासतीजी के तत्वावधान में गतिशील सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं साहित्यिक कार्यों में इनका सदैव सहयोग प्राप्त रहता है। यह लिखते मुझे बड़ा हर्ष होता है कि ये विद्वान एक प्रकार से महासतीजी म० के आध्यात्मिक परिवार के अनन्य सदस्य हैं।
ग्रन्थ के प्रकाशन में प्रमुख समाजसेवी सौम्यचेता, उदारमना श्रीमान् जेठमलजी सा० चोरड़िया, उदारचेता श्रावकवर्य श्रीमान् घीसूलालजी सा० बम्ब, श्रीमान् पारसमलजी सा० बाफना, श्रीमान् कंवरलालजी सा० बेताला आदि ने जो उत्साह दिखाया, सुव्यवस्था की, वह सत्साहित्य सर्जन एवं प्रसार के महनीय कार्य में उनकी अनन्य अभिरुचि का द्योतक है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के रूप में जो कुछ उपस्थापित किया जा सका है, इसमें मेरा कुछ भी कृतित्व नहीं है। जो कुछ मैं हूँ, वह सब परम पूज्या गुरुणी म० सा० की कृपा, शुभदृष्टि एवं अनुग्रह का फल है । उनकी कृपा मेरे लिए तथा मेरी सभी सहवर्तनी साध्वी बहिनों के लिए एक अमर निधि है । हमें सदैव वह प्राप्त रहे, यही हमारी प्रन्तर्भावना एवं सदभिकांक्षा है ।
प्रस्तुत कार्य में मेरी सहवर्तनी साध्वी बहिनों का भी कम सहभागित्व नहीं रहा। उन्होंने मुझे बड़ा बल प्रदान किया। उनके प्रति आभार व्यक्त कर मैं उनकी गरिमा को कम करना नहीं चाहती, क्योंकि परम समादरणीया, श्रद्धास्पदा गुरुणी म० सा० के साथ मेरा जो तादात्म्य है, वह उनका भी है। जो मेरी स्थिति है, वही उनकी है । अतः मुझमें तथा उनमें मैं कोई द्वैध नहीं मानती। वैसी स्थिति में आभार केवल उपचार बन जाता है ।
7
मेरा विश्वास है, महान् श्रात्मा के गुणोत्कीर्तन, व्यक्तित्व-विश्लेषण, साहित्यिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक यौगिक चिन्तन आदि के सन्दर्भ में अत्यन्त विचारपरक उद्बोधप्रद सामग्री से प्रापूर्ण प्रस्तुत ग्रन्थ उपासकों, साधकों, जिज्ञासुत्रों, अध्ययनाथियों एवं शोधार्थियों के लिए उनके अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार निःसन्देह उपयोगी सिद्ध होगा। आशा है, ये सब इससे लाभान्वित होंगे।
आर्या सुप्रभा एम. ए.
खाचरोद (मध्य प्रदेश ) वंशाख शुक्ला नरसिंह चतुर्दशी आचार्य जयमल पुण्य तिथि
बुद्धजयन्ती
विक्रमाब्द २०४४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
0
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
www.jainelibrary.org