Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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क्र० सं०
१
२
३
४
५.
६
५
जीवा = / ४ [ ( व्यासार्धं ) इसीका सरल रूप होगा
७
यदि ऊपर की गई गणना में वर्गमूल केवल पूर्ण अंकों तक ही ग्रहण किया जाय तो जोवा का मान ( दशमलव वाला भाग छोड़ देने पर )
= २७) २०५५४ = १४४७१
योजन होता है ।
भरत क्षेत्र की उत्तरी जीवा का यही प्रमाण तिलोयपणती, चतुथं महाधिकार की गाथा १६४ ( देखिये खण्ड २, पृष्ठ ५६ ) में दिया गया है। इसी प्रकार सूत्र (१) को लगाकर हम जम्बूद्वीप के दक्षिणार्ध में स्थित विभागों से बने धनुषाकार क्षेत्रों को जीवाएँ निकाल सकते हैं और यदि प्रत्येक बार हर में १९ अलग करके अंश (न्यूमेरेटर ) का वर्गमूल केवल पूर्णांकों तक निकालें तो हमें निम्नलिखित सालिका प्राप्त हो जायगी
.... ( १ )
जीवा - ४ इषु (व्यास - इषु) इसका प्रयोग करके भरत क्षेत्र की जीवा का प्रमाण
[ ४७ ]
• ( व्यासार्थ - इषु) ]
10000
=√४× १०° × (१०००००
—
= ~ ( ७५६ × १००००, ००००) /१६
SN
(२७४९५४) ३+२९७८८४/१६
= (२७४९५४.५४) / १९ लगभग 1
विभाग
भरत क्षेत्र
हिमवान् पर्वत
हैमवत क्षेत्र
महाहिमवान् प०
हरि क्षेत्र
निषेध पर्वत
दक्षिण विदेह क्षे०
-
तालिका १ ( जीवाएं)
विस्तार ( शलाका)
२
४
१०००० पर
५
१६
३२
६४/२
इषु ( शलाका)
१५.
३१
६३
६५
उत्तरी जीवा ( योजन)
१४४७१ +
२४९३२+हे
३७६७४ + १४
५३६३१ +
७३९०१ +
९४१५६ + ई
१००००० + ०