Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
[ ४० ]
n
इसलिये यदि धातकीखंड से की गणना प्रारम्भ की जाये तो इष्ट ' वें द्वीप या समुद्र की खंडवालाकाओं की वरित वृद्धि का प्रमाण प्रतोकरूप से
Dn' १०००००
{{
यहाँ Do' जो है वह ' वें द्वीप या समुद्र का विष्कम्भ है । यह प्रमारण उस समान्तरी गुणोतर श्रेणी ( Arithmetico-geometric series ) का ' व पद है, जिसके उत्तरोत्तर पद पिछले पदों के चौगुने से क्रमशः २४४२०-१ अधिक होते हैं। यह आधुनिक arithmetico geometric series से
है !
Dn' स्वतः एक गुणोत्तर संकलन का निरूपण करता है जो प्रारम्भ होकर उत्तरोत्तर १६, ३२, ६४, १२८ आदि हैं। वृद्धि के प्रमाण को ' व पद, मानकर बनने वाली श्रेणी मध्ययन योग्य है । इस पदका साधन करने पर
२
) - १ } x ८ होता है ।
{
{ Do'+ १०once ) ( Do'- १०००० ) fronone } s
}
उक्त प्रमाण =
गाथा ५/२६४
के लिए ग्रंथकार ने निम्नलिखित सूत्र दिया है
यहाँ n' वें द्वीप या समुद्र से अधस्तन द्वीप समुद्रों को सम्मिलित खंडशलाकाओं
[
Do'
- १००००० ] x [ De - १००००० ] ÷ १२५००००००००
२
८ प्रमाण प्राप्त होता है ।
यहाँ ' की गणना घातकीखंड द्वीपसे आरम्भ करना चाहिए। यह प्रमाण दूसरी तरह से भी प्राप्त किया जा सकता है ।
गाथा ५/२६५
Ksti
R
३ ( Das ) 'आयेगा ।
-
२
"
अतिरिक्त प्रमाण ७४४
Da'÷२०००००
यहाँ ९ Dn (Du—१०००००) = ३ [ (Dab)'- ( Daz )' }
-
गाथा ५.२६६
गाथा ५ / २६८
द्वीप या समुद्र से अधस्तन द्वीप समुद्रों के डिफल को लाने के लिए गाथा को प्रतीक रूपेण निम्नप्रकार प्रस्तुत किया जा सकेगा - अधस्तन द्वीप समुद्रों का सम्मिलित पिडफल ★ [ Da - १००००० ] [ ९ ( Dh - १००००० ) - ९००००० ] + ३ दूसरी विधि से इसका प्रमाण
गाया ५ / २७१
·
श्रधस्तन समस्त समुद्रों के क्षेत्रफल निकालने के लिए गाथा दी गई है। चूंकि द्वीप ऊनी (अयुग्म ) संख्या पर पड़ते हैं इसलिए हम इष्ट उपरिम द्वीप को (२०- १) मानते हैं। इस प्रकार, ग्रषस्तन समस्त समुद्रों का क्षेत्रफल