Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak Author(s): Hemshreeji Publisher: Hemshreeji View full book textPage 8
________________ गुलनो असंख्यातमो भाग । प्रत्येक वनस्पती कायनी । अवगाहना जघन्य आंगुलनो असंख्यातमो भाग। उत्कृष्टी अवगाहना हजार योजन से कांइंक अधिक। बेइंद्रांनी बारा योजननी । तेइंद्री. नी तीन कोसनी । चउरिंद्रीनी चार कोसनी । तीर्यच पंचेंद्रीनी हजार योजननी । उत्तर वैक्रीय करतो नवसो योजन। मनुष्य पंचेंद्रीनी तीन गउनी । उत्तर वैक्रीयकरतो लाखयोजननी हेदी ॥४॥ ॥ पांचमो संघयण द्वार कहे छ । ते संघयणनां ६ नाम । बज्ररीषभनाराच संघ. यण । १ रीषभना राच संघयण । २ नाराच संघ. यण । ३ अर्धना राचसंघयण । ४ कीलकी सं. घयण । ५ छेवठु संघयण । ६ नारकी, दस भवनपती । व्यंतर, योतीषी, वैमानीक, पांच थावर । ए ओगणीश डंडके । असंघयणी, वेइंद्री, तेइंद्री, चउरींद्री, त्रीणडंडके, एक छेवठु संघयण ।Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 100