Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री॥ र तत्वबोधक कल्याण शेलकर श्री चतुर्विध संघने भणवा याग्य जाणकर आ पुस्तक प्रसिद्ध करावी. प्रसिद्ध कर्ता श्री तपगच्छना गुलाबश्रीजी महाराजना शिष्य हेमश्रीजी तेमना शिष्य कल्याणश्रीजीना सदोपदेशथी आपुस्तक श्री चतुर्विध संघने अमुल्य भेट __करवा माटे इन्दौरनो श्राविकाए श्री लक्ष्मी-विलास स्टिम प्रेस इंदोरमा छपावी. विक्रम संवत १९७२ भादव सुदी ५ सोमवार. प्रथमवार १००० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणीका. नंबर... १. ओगणत्रीस द्वार २. गुणठाणा ऊपर पच्चीस द्वार नाम. .... ३ लघु संग्रहणी ४. बांसटमार्गणा ए ५६३ भेद जीवना 0000 .... .... 0.00 .... ८ शेष कूटनी गिनती ९ चोरासीलाख जीवायोनीना प्राण, पर्याप्ती, इन्द्रो. नंबर पानं. १ ३४ ६५ ७२ ८७ 1000 4839 9000 .... ५ बांसट मार्गणा ऊपर त्रेपनभाव ६ पांचसोपन जीवना भेद द्वीपक्षेत्र आसरी ७ जीवना चउदा भेद ऊपर गुणठाणा, योग, उपयोग, लेश्या, बंध, उदय, उदीरण, सत्ता 1906 .... ... .... ... 0000 .... ९५ ६६ ९७ व्ययकर्ता. सुन्दरबाई, फुलीबाइ, सोनीबाई, भुरीबाई, मिश्रीबाई मिस्टेस, केसरबाई, गेंदीबाई, मोताबाई. एमनी मददथी आ पुस्तक छपावी. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथ ओगणत्रीस द्वार लिख्यते ।। -+9@c+प्रथम नामदार । बीजूं लेश्या द्वार । त्री शरीर द्वार । चोथु अवगाहना द्वार । पांच मुं संघयण दार।छटु संज्ञादार। सातमु संस्थान द्वार। आठमुं कषाय द्वार । नवमुं इंद्रिय द्वार । दसमुं समुद्घात द्वार। इगियारमुं दृष्टि द्वार । बार, दर्शन द्वार। तेरमुं ज्ञान द्वार। चउदमुं योग द्वार । पनरमुं उपयोग द्वार । सोलमुं उपजवानी संख्यानुं द्वार। सतरमुं चववानुं द्वार । अगर{ आउखानुं द्वार। उगणीसमुं पर्याप्ति द्वार । वीसमुं आहार दार । एकवीसमुं गतागीत द्वार। बावी. समुं वेद दार त्रेवीसमुं भवन दार । चौवीसमुं प्राण द्वार । पचवीस, संपदा दार। छवीसमुं Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म द्वार । सत्तावीसमुं जीव जोनी द्वार । अठावीसमुं कुलकोटी दार । ओगणत्रीसमुं अल्प बहुत द्वार ॥ ॥ हवे प्रथम नाम द्वार कहे छे ॥ प्रथम दार ॥१॥ हवे साते नरके थइ एक डंडक । ते नरकनां नाम । घमा १ वंसा २ शेला ३ अं. जण ४ रिटश ५ मघा ६ माघवती ७ ॥ ॥ हवे भवनपतीनां दस दंडकनां नाम ॥ असुर कुमार १ नाग कुमार २ सुवर्ण कुमार ३ विद्योत कुमार ४ आमि कुमार ५ दीप कुमार ६ उदधि कुमार ७ दिसी कमार ८ वायु कुमार ९ स्तनित कुमार १० पांच दंडक थावरनां ॥ ११ पृथ्वी१२ पानी १३ अनि १४ वायु१५ वनस्पती१६ बेइंद्रि १७ तेइंद्री१८ चौरिन्द्रि १९त्रीयंच पंचेन्द्रि २० मनुष्य २१ व्यंतर २२ यौतिषी २३ वैमानिक २४ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ हवे बीजूं लेश्या द्वार कहे छे ॥ लेश्या ६ नां नाम । कृष्णलेश्या १ नीललेश्या २ कापोतलेश्या ३ तेजोलेश्या ४ पद्मलेश्या ५ शुक्ललेश्या ६ । नारकी तेउ, वाउ, बेइंद्रि, तेइंद्रि, चौरिन्द्रि | ए ६ दंडके प्रथम ३ लेश्या । त्रीयंचपंचे न्द्रियने । मनुष्यने ६ लेश्या । १० भवनपती व्यंतर, पृथ्वी, पानी, वनस्पती । ए चउ दंडके। प्रथम ४ लेश्या । यौतिषी । तथा सौधर्मी ईशान देवलोकें । एक तेजो लेश्या । त्रीजें चोथे । पांच मे देव लोके । पदम लेश्या । छटा देव लोके थी उपरांत । सघले शुक्ल लेश्या ॥२॥ ॥ हवे त्रीजू शरीर द्वार ॥ शरीर ५ नां नाम कहे छ । उदारीक शरीर १ वैक्रीय शरीर २ आहारक शरीर ३ तेजस शरीर ४ कार्मण शरीर ५ नारकी । दश भवनपती व्यंतर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) योतिषी । वैमानीक । ए चउ दंडके त्रण्य शरीर । वैक्रीय तेजस ! कार्मण, पृथ्वी, पानी, अमि, वनस्पती, बेइंद्री, तेइंद्री, चउरिंद्री, । ए सात दंडके वण्य शरीर । उदारीक, तेजस कार्मण, वायु काय, तीर्यच पंचेंद्री, ए बे दंडके । आहारक विनाचार शरीर । मनुष्यने पांच शरीर ॥ ३ ॥ ॥ चोथु अवगाहना द्वार कहे छे॥ हवे समुच्चे नारकीनी । अव गाहना । अघन्य, आंगुलनो असंख्यातमो भाग । उत्क्रष्टी पांचसे धनुषनी । प्रथम नरके, जघन्य तीन हाथ, उत्कृटी पुणा आठ धनुषने ६ आंगुल । बीजी नरके जघन्य पुणा आठ धनुषने ६ आंगुल । उत्कृष्टी सादा पन्नर धनुषने बारा आंगुल । त्रीजी नरके जघन्य सादा पनर धनुष ने बारा आंगुल । उत्कृष्टी सवा एकत्रीस धनुषनी। चौथी नरके जघन्य सवा एकत्रीस धनुष । उत्कृष्ट सादी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) बासठ धनुष । पांचमी नरके । जघन्य सादी बांसठ धनुषनी । उत्कृष्टी सावा सौ धनुषनी। छठी नरके । जघन्य सवा सौ धनुष । उत्कृष्टी अदीसे धनुष । सातमी नरके । जघन्य अदीसे धनुष । उत्कृष्टी पांचसे धनुषनी । दश भवनपती व्यंतर । योतीषी । ए बारा डंडके जघन्य आंगु. लनो । असंख्यातमो भाग। उत्कृष्टी सात हाथ नी। वैमानीकमां जघन्य आंगुल नो असंख्यात मो भाग । उत्कृष्टी पहिले बीजे देव लोके । सात हाथनी । बीजे चोथे देवलोके ६ हाथनी । पांच में छठे देवलोके पांच हाथनी। सातमें आठमें देवलोके चारहाथनी। नवमें दशमें अग्यारमें बारमें देवलोके। तीन हाथनी देही । नवप्रवेयकें बे हाथनी देही । पांच अनुतर विमाने । एक हाथनी देही। ए तेर डंडके देवताना । उत्तर वैक्रीय करे तो लाख जो जननी देही । पृथ्वी, पानी, अमि, वायु, ए चार दंडके जघन्य । तथा उत्कृष्टी अवगाहना । आं. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुलनो असंख्यातमो भाग । प्रत्येक वनस्पती कायनी । अवगाहना जघन्य आंगुलनो असंख्यातमो भाग। उत्कृष्टी अवगाहना हजार योजन से कांइंक अधिक। बेइंद्रांनी बारा योजननी । तेइंद्री. नी तीन कोसनी । चउरिंद्रीनी चार कोसनी । तीर्यच पंचेंद्रीनी हजार योजननी । उत्तर वैक्रीय करतो नवसो योजन। मनुष्य पंचेंद्रीनी तीन गउनी । उत्तर वैक्रीयकरतो लाखयोजननी हेदी ॥४॥ ॥ पांचमो संघयण द्वार कहे छ । ते संघयणनां ६ नाम । बज्ररीषभनाराच संघ. यण । १ रीषभना राच संघयण । २ नाराच संघ. यण । ३ अर्धना राचसंघयण । ४ कीलकी सं. घयण । ५ छेवठु संघयण । ६ नारकी, दस भवनपती । व्यंतर, योतीषी, वैमानीक, पांच थावर । ए ओगणीश डंडके । असंघयणी, वेइंद्री, तेइंद्री, चउरींद्री, त्रीणडंडके, एक छेवठु संघयण । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) मनुष्य पंचेद्री । तीर्यच पंचेंद्री। ने ६संघयण ॥५॥ ॥ छठू संज्ञाद्वार कहे छ । चार संज्ञाना नाम लिख्यते । आहार संज्ञा १, भयसंज्ञा २, मैथुनसंज्ञा ३, परिग्रहसंज्ञा ४, ए चार संज्ञा चौवीस डंडके पामे ॥ ६॥ .. - ॥ सातमुं संस्थान द्वार कहे छे ॥ ते संस्थान ६ ना नाम कहे छ। समचौरस संस्थान १, निग्रोध संस्थान २, सादी संस्थान३, वामन संस्थान ४, कुवज संस्थान ५, हुंडक संस्थान ६, ॥ नारकी ॥ पांच थावर त्रण्य विकलेंद्रीय ए नव दंडके । हुंडक संस्थान, दश भूवनपती, व्यंतर योतीषी, वैमानीक, ए तेरडंडके एक समचौरस संस्थान । तीर्यच पंचेंद्री ने । मनुष्यने ६ संस्थान । समुर्छिम मनुष्यने हुंडक संस्थान ॥७॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) ॥ आठमुं कषायद्वार कहे छे ॥ कषायना चार नाम क्रोध १, मान २, माया ३, लोभ ४, एचार कषाय चोवीस दंडके पामें ॥ ८ ॥ ॥ नवमं इंद्रीय द्वार कहे छे ॥ इंद्रीना पांच नाम | फरसेंद्री १, रसेंद्री २, बा गेंद्री ३, चक्षुद्री ४, श्रोतेंद्र ५ । नारकी दस भवन पती, व्यंतर, योतीषी, वैमानिक, तीयंचपंचेंद्री, मनुष्य पंचेंद्री, एसोल डंडकें पांच इंद्री । पांच थावरने | एक फरसइंद्री, बेइंद्रीयन, फरसइंद्री रसेंद्री, तेद्रीने, फरसेंद्री, रसेंद्री, बाणेंद्री, ए तीन होय । चोउरिंद्री ने । फरसेंद्री, रसेंद्री, घ्राणेंद्री, चक्षुइंद्री, ए ४ इंद्री होय ॥ ९ ॥ ॥ दसमुं समुद्यत द्वार कहे छे || समुद्घात सातनानाम | वैदनीय समुद्घातः, कंपाय समुद्रात २ मरणांतिक समुद्घात ३, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैक्रीय समुद्घात ४, तेजस समुद्घात ५, आहा. रक समुद्घात ६, केवली समुद्घात ७॥ नारकीने। वायुने चार समुद्घात । वेदनी १, कषायर, मरणांतिक ३, वैक्रीय ४, ए चार होय । दसभवनपती । व्यंतर, योतीषी, वैमानिक, तीर्यच पंचेंद्री । ए चउ दंडके पांच समुद्घात । वेदनी १, कपाय २, मरणांतिक ३, वैक्रीय ४, तेजस ५, वृथ्वी, पाणी, अमी, वनस्पती, त्रण्य विकलेंद्री। ये सात दंडके । त्रण्य समुद्घात । वेदनी १, कषाय २, मरणांतिक ३। मनुष्यने सात समुद्घात ॥१०॥ ॥ इग्यारभु दृष्टी द्वार कहे छ । दृष्टि ३ना नाम । समकित दृष्टि, मिश्रदृष्टि २, मिथ्यात्वदृष्टि ३ ॥ नारकी ॥ दश भवनपती, व्यंतर, योतीषी, वैमानीक, तीर्यच पंचेंद्री। मनुष्य ए सोला दंडकें । त्रग्यदृष्टि । पांच थावरने । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) एक मिथ्यादृष्टि । त्रण्य विकलेंद्रीने । समकित । मिथ्यात एबे दृष्टि ॥ ११ ॥ -- ॥ बार, दर्शन द्वार कहे छे ॥ दर्शन ४ नां नाम कहे छ । चक्षु दर्शन १, अचक्षु दर्शन२,अवधि दर्शन३, केवल दर्शन ४॥ नारकी ४ । दस भवनपति । व्यन्तर, योतिषी, वैमानिक । तीर्यच पंचेन्द्रि । ए पन्नर दंडके । त्रण्य दर्शन । चक्षु १ अचक्षु २ अवधि दर्शन ३ पांच थावर । बेइंद्रि ने तेइंद्री। एक अचक्षु दर्शन। चौरेन्द्रि । चक्षुनें । अचक्षु बेदर्शन । मनुष्यनें चार दर्शन १२ ॥ ॥ तेरमो ज्ञान द्वार कहे छ । पांच ज्ञान, तीन आज्ञाननां नाम कहेछ । मतिज्ञान १ श्रुतज्ञान २ अवधिज्ञान ३ मनपर्यवज्ञान ४ केवलज्ञान ५ मतिअज्ञान ६ श्रुत अज्ञान Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) ७ विभंग अज्ञान ८ । नारकी दस भवनपति । व्यन्तर | योतिषी । वैमानिक । तीर्यच पंचेंद्रि । ए पन्नर दंडके | aणज्ञान । त्रण अज्ञान । ए ६ पामे | पांच थावरनें मति अज्ञान । श्रुत अज्ञान, एबे पामे, aण विकलेन्द्रिने । बे ज्ञान । तथा बे अज्ञान ए चार पायें | मनुष्यनें पांच ज्ञान । तीन अज्ञान १३ ॥ ॥ चउदमोयोग द्वार कहें छे ॥ sa योग पन्ननां नाम कहेछे । मननां ४ योग । सत्यमनयोगः असत्यमनयोग २ सत्यमृषामनयोग ३ असत्य मृषा मनयोग ४ | वचनना चार योग कहे छे । सत्य वचनयोग, असत्य वचन योग, सत्य मृषा वचन योग, असत्य मृपा वचनयोग कायाना सात योग कहे छे । उदारिक काया योग, उदारिक मिश्र काया योग, वैक्रिय काया योग, वैकिय मिश्र काया योग, आहारक काया योग, Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) आहारक मिश्र काया योग, कार्मण काया योग, नारकी, दस भुवनपती,व्यंतर, योतिषी, वैमानिक, ए चउद दंडके ग्यार योग होय ॥ मनना चार, वचनना चार, कायाना तीन । वैक्रिय कायायोग, वैक्रिय मिश्र काया योग, कार्मण काया योग ॥ पृथ्वी, पाणी, अमी, वनस्पती ने तीन योग । उदारिक, उदारिक मिश्र काया योग, कार्मणकाया योग, वायु ने पांचयोग, उदारिक, उदारिक मिश्र, वैक्रिय, वैक्रिय मिश्र, कार्मण, विकलेंद्रीय ने चार योग। उदारिक, उदारिक मिश्र, कार्मण ये तीन योग तथा असत्य मृषा वचन योग ये चार योग होय ॥ तीर्यच पंचेंद्रीने तेर योग होय, मननाचार, वचनना चार, कायाना पांच, उदारिक, उदारिक मिश्र, वैक्रिय, वैक्रिय मिन, कार्मण, म. नुष्य ने पन्नर योग होय ॥ ॥ पन्नरमुं उपयोग द्वार कहे छे ॥ उपयोग बार ना नाम। पांच ज्ञान । मती ज्ञान, Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) श्रुत ज्ञान, अवधी ज्ञान, मन पर्यव ज्ञान, केवल• ज्ञान । तीन अज्ञान । मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, विभंग अज्ञान ! अने चार दर्शन । चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधी दर्शन; केवल दर्शन ए बार उपयोगछ। नारकी, दसभुवनपती व्यंतर, योतिषी वैमानिक, तिर्यंच पंचेंद्री, ए पनर दंडके। नव उपयोग । तीनज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन ए नव उपयोग होय। पांच थावर ने तीन उपयोग। मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, अचक्षु दर्शन ए तीन होय । बेइंद्री, तेइंद्री ने तीन तथा पांच उपयोग होय । बेज्ञान, बे अज्ञान, एक अचक्षु दर्शन । चौरिंद्रियने छ उपयोग । बे ज्ञान, वे अज्ञान, बे दर्शन मनुष्य ने बार उपयोग पामे ॥ ॥ सोलमुं सत्तर, उपजवा चक्वानी संख्या द्वार ॥ - नारकी, दस भुवनपती, व्यंतर, योतिषी, वैमा. 'निक, तीर्यच पंद्री, त्रय विकलेंद्री ए अठार Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४). दंडके एक समय जीव एक, बे, तीन आदि लेई संख्याता तथा असंख्याता उपजे, ने संख्याता असंख्याता चवे । पांच थावर । एक समे जीव असंख्याता चवे, असंख्याता उपजे । साधारण ने अनंता उपजे ने अनंता चवे । एक समय मनुष्य ना जीव एक, बे आदि लेईने संख्याता उपजे ने संख्याता चवे ॥ ॥ अठारमुं आउखा द्वार कहे छ । समुचे नारकीर्नु आउखो जघन्य दस हजार वर्षनुं । उत्कृष्टो आउखो तेत्रीस सागरोपमनुं । हवे प्रथम नरके जघन्य दस हजार वर्षतुं । उत्कृष्टो एक सागरोपम नुं । बीजी नरके जघन्य एक सागरोपम नुं । उत्कृष्टो तीन सागरोपम मुं। त्रीजी नरके जघन्य तीन सागरोपम न। उत्कृष्टो सात सागरोपम नुं । चोथी नरके जघन्य सात सागरो. पम नुं । उत्कृष्टो दस सागरोपम नु । पांचमी Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) नरके जघन्य दस सागरोपम नुं । उत्कृष्ठो सतर सागरोपम नुं । छटी नरके जघन्य सतर सागरोपम नं । उत्कृष्टो बावीस सागरोपम न । सातमी नरके जघन्य बावीस सागरोपम नुं । उत्कृष्टो तेत्रीस सा. गरोपमनु ॥ हवे भवनपतीनी दस जाती तेहना बीस इंद्र तेहना नाम ॥ चमरेंद्र, बलेंद्र, धरणेद, भूता नीइंद्र, वेणुदेव, वेणुदाली, हरिकंत, हरिसिह, अमि सिह,अमिमाणव, पूरण, बिसिद्ध, जलंतक,जलप्रभ, अमितगति, मृगवाहन, वेलंब, प्रभंजन, घोस, महाघोस, ते बीस मध्ये चमरेंद्रनी जाती नुं जघन्य आउखो दस हजार वर्षनें । उत्कृष्टो एक सागरोपम नुं । चमरेंद्रनी देवीनुं जघन्य दस हजार वर्षतुं । उत्कृष्टो साडात्रण पल्योपम नुं । बलेंद्रन जघन्य दस हजार वर्षनुं । उत्कृष्टो एक सागरोपम झाझे । बलइंनी देवीनुं जघन्य दस हजारवर्ष नुं । उत्कृष्टो साडाचार पल्योपम नुं । हवे दक्षिण . पासाना धरणेंद्र आदि लेई ने नव इंद्र नुं जगन्य Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६) अउखो दस हजार वर्षतुं । उत्कृष्टो दोढ पल्योपम नुं । त नव इंद्रनी देवीनुं जघन्य आउखो दस हजार वर्षतुं । उत्कृष्टो आउखो अडधा पल्योपमनु। तथा उत्तरना पासाना भुतानी इंद्र आदि लेईने नव इंद्र नुं जघन्य दस हजार वर्षनुं । उत्कृष्टो बे पल्योपम देशऊणो । ने उत्तरना पासाना नव इंद्र नी देवी नुं जघन्य दस हजार वर्षतुं । उत्कृष्टो एक पल्योपम देश उणो । पृथ्वाकाय नुं जघन्य अंतर मुहूर्त नुं । उत्कृष्टो बावीस हजार वर्ष नुं । तथा बादर पृथ्वीना ६ भेद कहे छे ॥ सन्ना गोपीचंदना दिक तेनुं उत्कृष्टो एकहजारवर्षतुं बीजी सुधानामें पृथ्वी ते नदीनी भेखला दिक प्रमुख तेनुं आउखु बार हजार वर्ष नुं । त्रीजी बालुका नामें पृथ्वी ते सचित वेलु प्रमुख ते नुं उत्कृष्टो चउद हजार वर्ष नुं । चोथी मणसिल नामें पृथ्वी ते सुरमादिक ते नुं उत्कृष्टो सोल हजार वर्ष नुं । पांचमी शरकरा नामें पृथ्वी ते सुवर्णा दिक ते नुं उत्कृष्टो अठार Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हजार वर्षतुं । छटी खर नाम पृथ्वी ते रत्नादिक ते नुं । उत्कृष्टो बावीस हजार वर्ष नुं । पाणी नुं उत्कृष्टो सात हजार वर्ष हैं। अमि नुं उत्कृष्टो त्रण्य दिवस नुं । वायुकायनो उत्कृष्टो तीन हजार वर्ष नुं । वनस्पती नुं उत्कृष्टो दस हजार वर्ष हैं। बेइंद्री नुं बार वर्ष नुं । तेइंद्री नुं उत्कृष्टो ओगणपचास दिवस नुं । चौरिंद्री नुं उत्कृष्टो छे मासचें। पांच थावर नुं त्रण्य विकलेंद्री ए आठ दंडके सर्व जीव नुं जघन्य अंतर मुहुर्त नुं जाणवो। हवे तीर्यच पंचेंद्रीना दस भेद लिख्यते ॥ ते मध्ये जलचर गर्भज नुं जघन्य अंतर मुहुर्तनुं । उत्कृष्टो एक पूर्वकोडी वर्षनुं । जलचर समुर्छिम नुं उत्कृष्टो आउखो पूर्वकोडी वर्षतुं । थलचरगर्भज नुं उत्कृष्टो त्रण्य पल्योपम नुं । समुर्छिम थलचर नुं चोरासी हजार वर्षतुं । गर्भज खेचरनुं उत्कृष्टो आउखो पल्योपमर्नु असंख्यातमोभाग । समुर्छिम खेचरनुं उत्कृष्टो बहोत्तर हजारवषनु ।गर्भज उरपरिसपर्नु उत्त Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) ष्टो एक पूर्वकोडी वर्षनुं । समुर्छिम उर परिसर्पनुंउत्कृष्टो त्रेपन हजार वर्षनुं । गर्भज भुजपरिसर्पनुं उत्कृष्टो एक पूर्व कोडी वर्षं । समुर्छिम भुजपरि सर्प नुं उत्कृष्टो बेतालीस हजार वर्ष नुं । ए सर्वे उत्कृष्ट आउखो जाणवो || दस भेद तीर्यचना कह्या ते सर्वनुं जघन्य आउखो अंतरमुहुर्तनुं छे । गर्भज मनुष्य नुं उत्कृष्टो आउखो तीन पल्योपमनुं । जघन्य अंतर मुहुर्त नुं । व्यंतर नुं जघन्य दसहजार वर्षं उत्कृष्टो एक पल्योपन नुं । व्यंतरनी देवी नुं जघन्य दसहजार वर्षनुं उत्कृष्टो अर्धा पल्योपमनुं । योतिषना पांच भेद कहे छे ॥ चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह नक्षेत्र, तारा । ते मध्ये चंद्रमानुं जघन्य आउखो पाव पल्योपमनुं । उत्कृष्टो एक पल्योपम ने एक लाख वर्षनुं । चंद्रमानी देवीनं उत्कृष्टो अर्धपल्योपम अने पचास हजार वर्षनुं । सूरज नुं उत्कृष्टो एक पल्योपम अने हजार वर्षनुं । सूर्यनी देवी नुं उत्कृष्टो अर्ध पल्योपम अने पांचसो वर्ष नुं । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९ ) ग्रह नुं उत्कृष्टो एक पल्योपम नुं । ग्रहनी देवीनुं उत्कृष्ट अधी पल्योपम नुं । नक्षत्र नुं उत्कृष्टो अर्धा पल्योपम नुं । नक्षत्रनी देवी नुं उत्कृष्टो पाव पल्योपम झाझे । एत्राठे भागे जीवनुं जघन्य आउखो पाव पल्योपमनुं । तारा नुं उत्कृष्टथे पाव पल्योपमनुं । जघन्य एकपल्योपमनो आठमो भाग तारानी देवीनं उत्कृष्टो एक पल्योपमानो आउमो भाग झाझे जघन्य एकपल्योपमनो आठमोभाग ॥ हवे वैमानिक देव नुं आखो कछे || सौधर्म देवलोके जघन्य एक पल्योपम नुं । उत्कृष्टो वे सा गरोपमनुं । ईशान देवलोके जघन्य एक पल्योपम झाझरुं । उत्कृष्ट सागरोपम झाझेरुं । त्रीजे स नतकुमार देवलोके जघन्य बेसागरोपमनुं । उत्कृष्टो सात सागरोपमनुं । चोथा महेंद्र देवलोके जघन्य सगरोपम झाझेरुं । उत्कृष्टथे सात सागरोपम झाझेरुं । पांच में ब्रह्म देवलोके जघन्य सात सागरोपमनुं । उत्कृष्टो दस सागरोपमनुं । छड्डे लांतक 1 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) देवलोके जघन्य दस सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो चउद सागरोपमनुं । सातमे शुक्र देवलोके जघन्य चउद सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो सत्तर सागरोपम नुं । आठ में देवलोके जघन्य सत्तर सागरोपम नुं । उत्कृष्टो अठार सागरोपम नुं । नवमे अनंत देवलोके जघन्य अठार सागरोपम नुं । उत्कृष्टो ओगणीस सा. गरोपम नु । दसमे प्रणत देवलोके जघन्य ओगणीस सागरोपम नुं । उत्कृष्टो बीस सागरोपमर्नु । ग्यारमे अरण्य देवलोके जघन्य बीस सागरोपमनुं उत्कृष्टो इकबसि सागरोपमनु । बारमे अच्युत देव लोके जघन्य इकवीस सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो बावीस सागरोपमनुं ॥प्रथम नवग्रेवेके जघन्य बावीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो तेवीससागरोपम नुं । बीजे ग्रेवेके जघन्य तेवीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो चोवी. स सागरोपमन । तीजे नवग्रेवेके जघन्य चोवीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो पचीस सागरोपमनुं । चोथे वववेके जघन्य पचास सागरोपम नुं । उत्कृष्टो Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) छबीस सागरोपमनुं। पांचमें ग्रेवेके जछन्य छबीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो सत्तावीस सागरोपमर्नु । छठेग्रेवेके जघन्य सत्तावीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो अठ्ठावीस सागरोपमनुं । सातमे ग्रेवेके जघन्य अठ्ठावीस सागरोपमनुं । उत्कुष्टो ओगणतीस सागरोपमर्नु । आठमें ग्रेवेके जघन्य ओगणतीस सागरोपमनुं । उत्कृष्टो तीस सागरोपमर्नु । नवमें ग्रेवेके जघन्य तीससागरापमनुं। उत्कृष्टो एकतीस सागरोपमर्नु। विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजीत ए चार विमाने जघन्य एकतीस सागरोपमर्नु । उत्कृष्टो तेत्रीस सागरोपमनुं । सर्वार्थ सिद्धी जघ. न्य तथा उत्कृष्टो आउखो तेवीस सागरोपम पूरो॥ ॥ हवे ओगणीसमें पर्याप्ती द्वार कहे छे ॥ पर्याप्ती छ ना नाम कहे छ । अहार पर्याप्ती, शरीर पर्याप्ती, इंद्रि पर्याप्ती, सासोस्वास पर्याप्ती, भाषा पर्याप्ती, मनः पर्याप्ती ॥ नारकी, दस भुवन Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) पती, व्यंतर, वैमानिक, तीर्यच पंचेंद्री, मनुष्य ए सोल दंडके छे पर्याप्ती | पांच थावरने चार पर्याप्ती अहार, शरीर, इंद्री, सासोवास ॥ बेइंद्री, इंद्री, चोरिंद्री, असन्नी पंचेंद्री ने मन विना पांच पर्याप्ती होय ॥ ॥ बीस अहारक द्वार कहे छे ! अहारना ऋण नाम || ओझा अहार, रोम अहार, कवल अहार । नारकी, दस भुवनपती, व्यंतर, योतीषी, वैमानिक, पांच थावर ए ओगणीसदंडके अहार, ओझा, ने रोम ए बे तिर्यंच पंचेंद्री अने मनुष्य aण विककेंद्री ए पांच दंडके त्रण अहार पामें ॥ || इकीसमुं गता गती द्वार कहे छे || नारकी थी चवीने तिर्यंच पंचेंद्री अने मनुष्य माही जाय अने ए वे मांही आवे | दसभुवनपती Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) व्यंतर, योतिषी, वैमानिक, पहिला बीजा देवलोके गता गति कहेछ । पृथ्वी, पाणी, वनस्पती, तियंच पंचेंद्री अने मनुष्य एपांच गति। मनुष्यअने तिर्यचपंचेंद्री एवे दंडके आगति, त्रीजादेवलोकथीमाडी आठमां देवलोक सुधी तीर्यच पंचेंद्री अने मनुष्य ए बे दंडकनी गति, एहीज बे दंडकनी आगति. नवमां देवलोकथी मांडी सर्वार्थ सिद्धी सुधी, मनुष्य ने अगति अने मनुष्य ने गति मनु. ष्य ने चोवीसनी गति, तेऊ, वाऊ विना बावीस नी आगति, तीर्यच पंचेंद्रीने चोवीसनी गति अने चोवीसनी आगति, त्रण विकलेंद्री, पांच थावर, तिर्यच पंचेंद्री, मनुष्य ए दस दंडकनी आगीत, एहीज दसनी गति, पृथ्वी, पाणी, वनस्पती ए त्रणने एहीज दसनी गति, नारकी विना तेवीस नी आगति, तेऊ, वाऊ ने तेर देवता। नारकी, मनुष्य विना ९नी गति । अने तेर देवता नारकी विना १० आगति छे ॥ इति २१ दार संपूर्ण ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) ॥ हवे बावीसमें वेद द्वार कहे छे॥ वेद तीनना नाम ॥ पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसक वेद । नारकी, पांच थावर, त्रण विकलेंद्री ए नव दंडके एक नपुंसक वेद । तिर्यच पंचेंद्री, मनुष्यने त्रण वेद । देवताने तेर दंडके स्त्री ने पुरुष एबे वेद पामें ॥ ॥ हवे त्रेवीसमुं भवन द्वार कहे छे॥ पहिली नरके सि लाख नरका वासा, वीजी नरके पच्चीस लाख नरका वासा, त्रीजी नरके पन्नरलाख नरका वासा, चोथी नरके दसलाख नरका वासा, पांचमी नरके त्रणलाख नरका वासा, छठी नरके एक लाख मां पांचउणा नरका वासा, सातमी नरके पांच नरका वासा सर्व थईने चोरासी लाख नरका वासा जाणवा । तथा दक्षिण ना पासा ना दस इंद्रना भुवन कहे छ । चमरेंद्र ने चोंत्रीस लाख भुवन, धरणेंद्रने Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) चुमालीस लाख भुवन, वेणुदेवने अडत्रीस लाख भुवन, हरिकंत ने चालीस लाख भुवन, अमिसिंह ने चालीस लाख भुवन, पूर्णने चालीस लाख भुवन, जलकंतने चालीस लाख भुवन,अमितगति ने चालीस लाख भुवन, बलबिक ने पचास लाख मुवन, घोसने चालीस लाख भुवन, दक्षिण पासा ना दस इंद्रना चार कोडी ने छ लाख भुवन जाणवा ॥ हवे उत्तरना दस इंद्रना भुवन कहेछ । चलेंद्रने त्रीस लाख भुवन, भुतानेंद्र ने चालीस लाख भुवन, वेणु दाली ने चोत्रीस लाख भुवन, हरिसिंह ने छत्रीस लाख भुवन, अमि मानवने छत्रीस लाख भुवन, विषीष्ट ने छत्रीस लाख भु. वन, जल प्रभ ने छत्रीस लाख भुवन, मृगावाहण ने छत्रीस लाख भुवन, पर भंजण ने छियालीस लाख भुवन, महा घोष ने छत्रीस लाख भुवन छ। तेथी उत्तर दिसी ना दस इंद्रना भुवन छे ते प्रत्येक चार लाख ओछा जाणवा, सर्व थई ने Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) भुवनपतिना भुवन सात कोडी ने बहोतर लाख भुवन | हवे भुवन पतिना भुवन कहे छे । एक लाख अस्सी हजारयोजन रत्नप्रभा पृथ्वीनो पिंडछे। ते मध्ये एक हजार योजन उपर मुकिये, हजार योजन हेठा मुकिये, बीचमा एकलाख अढोतर हजार योजन नी पोहोलाण छे । ते मांहे संख्याता असंख्याता योजन ना भुवन पतिना भुवन छे । सुक्षम पांच, थावर तीन, विगलेंद्री, तिर्यंच पंचेंद्री लोकने देशे देशे छे । मनुष्य, बादर, अभिकाय अदी द्वीपमां छे । व्यंतर देवता रत्नप्रभा पृथ्वी नो उपलो एक हजार योजन ते मध्ये एक सौ योजन उपर मुकिये अने सौ योजन नीचे मुकिये बीचमें आठसौ योजन मांहीं असंख्याता नगरछे । व्यंतरना नगर भरत क्षेत्र जेवडाछे । मध्ये महाविदेह जेवडा छे, उत्कृष्टा जंबूदीप जेवडा छे, योतिषी ना विमान असंख्याता छे, संभुतला पृथ्वी थी मांडीने सात सौ ने नेव योजन तारा छे, ते उपर Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) दस योजन मूर्य छे, ते उपर असी योजन चन्द्रमा छे, ते उपर चार योजन नक्षत्र छे, ते उपर चार योजन बुद्ध छे, ते उपर त्रण योजन शुक्र छे, ते उपर त्रण योजन गुरू छे, ते उपर त्रण योजन मं. गल छे, ते उपर त्रण योजन शनीश्वर छ । हवे वैमानिक ना विमाननी संख्या कहे छ । सौधर्म देवलोके बत्रीस लाख विमान छे, ईशान देवलोके अठ्ठावीस लाख विमानछे, सनतकुमार देवलोके बारलाख विमान छे, महेंद्र देवलोके आठ लाख विमान छे, ब्रह्म देवलोके चारलाख विमानछे, लांतक देवलोके पचास हजार विमान छे, शुक्र देवलोके चालीस हजार विमान छे, सहस्रा देव. लोके छ हजार विमानछे, आनत प्राणत देवलोके चारसी विमान छे, अरण्य अच्युतने तीनसौ. वि. मान छे, नव अवेक मांही प्रथम त्रींके एकसौ ग्यारा विमानछे, बीजे त्रीके एक सौ सात विमान छे बीजे वीकें सौ विमान ते उपर अनुत्तर विमान Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २८) पांच विमान छे, तेउपर वारयोजन सिद्धसिलाछे। ॥ हवे चोवीसमें प्राण द्वार कहे छे ॥ हवे.दस प्राणना नाम कहे छ । पांच इंद्री, त्रण बल, सासोस्वास, अउखु ए दस प्राण छ । नारकी तेर देवता, मनुष्य, तीर्यच पंचेंद्री ए सोल दंडके दस प्राण, पांच थावर, ने फरस इंद्री काय बल, सासोस्वास, आउखू, बेइंद्री ने ६ प्राण । फरसइंद्री, रसइंद्री, वचन बल, काय बल, सासोस्वास, आ, उखु । तेइंद्रीने सातप्राण नाक सहित करिये छ । चौरिंद्री ने आठ प्राण आंख सहित करिये ॥ ॥ हवे पचवीसमुं संपदा द्वार कहे छ । संपदा तेवीस ना नाम । चक्र रत्न, छत्र रत्न, दंड रत्न, खडग रत्न, कांगणी रत्न, चर्म रत्न, मणी रत्न, ए सात एकेंद्री रत्न छ । गाथापति, सेनापति, पुरोहित, वार्षिक, अश्व रत्न, गजरत्न Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) स्त्री रत्न, ए सात पंचेंद्री । तिर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, केवली, साधु, श्रावक, सम्यकत्व दृष्टी, मंडलिक राजा ए नव निधान प्रथम नरक नो नीकल्यो जीव सात एकेंद्री रत्न विना सोल संपदा पामें । बीजी नरकनोनीकल्यो जीव जीव सात एकेंद्री रत्न चक्रवर्ती विना पनर संपदा त्रीजी नरकनो निकल्यो जीव सात एकेंद्री चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, विना तेर संपदा पामें । चोथी नरकनो निकल्यो जीव तिथंकर विना बार संपदा पामे । पांचमी नरकनो नीकल्यो जीव केवली विना ग्यार संपदा पामें। छठी नरकनो नीकल्यो जीव दस संपदा पामें साधु विना सातमी नरकनो नीकल्यो जीव लण संपदापामें। अश्व, गज, समकित ये तीन ॥ दस भुवनपति, व्यंतर, योतिषी ए बार दंडकनो निकल्यो जीव तिर्थकर वासुदेव विना एकवीसं संपदा पामें । पृथ्वी, पाणी, वनस्पती, तियेच पंचेंद्री, मनुष्य Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) ए पाच दंडकनो निकल्योजीव तिर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव विना ओगणीस संपदा पामें । तेउ, वाउ, नो निकल्यो जीव सात रत्न एकेंद्री अस्व, गज, सहित नव संपदा पामें । त्रण विकलेंद्री नो निकल्यो जीव तिर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, केवली विना अठार संपदा पामें । वैमानिक मां प्रथम देवलोक अने बीजा देवलोक नो नीकल्यो जीव तेवीस संपदा पामें वीजा देव लोकथी मांडी आठमां देवलोक सुधी नो निकल्यो जीव सात एकेंद्री रत्न विना सोल संपदा पामें। नवमां देवलोकथी मांडी नव ग्रैवेके सुधीनो नि. कल्यो जीव सात एकेंद्री, अश्व, गज विना चउद संपदा पामें । पांच अनुत्तर विमान नो निकल्यो जीव वासुदेव विना आठ निधान पामें ॥ ॥हये छब्बीसमुं धर्म द्वार कहे छ । तीयच पंचेंद्री, मनुष्य ने करणी रूपी धर्म छे बावीस दंडके करणी रूपी धर्म नथी॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) ॥ सत्तावासमुं योनी द्वार कहे छे ॥ . . सात लाख पृथ्वी काय, सात लाख अप्पकाय सात लाख तेउकाय, सात लाख वाउकाय, दस लाख प्रत्येक वनस्पती काय, चौदलाख साधारण वनस्पती काय, बे लाख बेइंद्री, बे लाख तेइंद्री, बे लाख चौरिंद्री नारकीनी चार लाख योनी, चार लाख तिर्यंच पंचेंद्री नी, चार लाख देवता नी, चौद लाख मनुष्य नी ए चौरासी लाख जीवा योनी थई । ॥ हवे अठ्ठावीसमें कुल कोटि द्वार कहे छे॥ . नारकीनी पचीस लाख कुल कोटी, देवतानी छबीसलाख कुल कोटी, पृथ्वीनी बार लाख कुल कोठी, पाणी नी सात लाख कुल कोटी, अमिनी तीन लाख कुल कोटी, वाउ नी सातलाख कुल कोटी, वनस्पतीनी अठावीस लाख कुल कोटी, Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) बेइंद्री नी सात लाख कुल कोटी, तेइंद्रानी आठ लाख कुल कोटी, चोइंद्री नी नव कुल कोटी, मनुष्यनी बार लाख कुल कोटी, तिथंच पंचेंद्री ना पांच भेद || जलचर नी साडीबार लाख कुल कोटी, थलचर नी दस लाख कुल कोटी, खेचर नी बारलाख कुल कोटी, उरपरिसर्पनी दस लाख कुल कोटी, भुजपरिसर्प नी नव लाख कुल कोटी सर्व एक क्रोड अने साठी सत्ताणु लाख कुल कोटी जाणवी ॥ ॥ हवे ओगणत्रीसमुं अल्प बहुल द्वार कहे छे || सर्वथी गर्भज मनुष्य थोडा, तेथी बादर अभि ना जीव असंख्याता गुणा, तेथी वैमानिक ना जीव असंख्याता गुणा, तेथी नारकी ना जीव असंख्यता गुणा, अधिक । तेथी व्यंतर ना जीव असंख्याता गुणा, तेथी योतिषना जीव असंख्या ता गुणा । तेथी चौरिंद्री ना जीव असंख्याता Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) गुणा, तेथी पंचेंद्री ना जीव विशेषाधिक, तेथी बेइंद्री विशेषाधिक, तेथी तेइंद्री ना जीव विशेषाधिक, तेथी पृथ्वी कायना जीव असंख्याता गुणा तेथी वाउ कायना जीव असंख्याता गुणा, तेथी अप्पकाय ना जीव असंख्याता गुणा, तेथी वनस्पती कायना जीव अनंत गुणा अधिक होय ॥ ॥ इति ओगणत्रीस द्वार संपूर्ण ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) ॥अथ मिथ्यात्व गुणठाणानी स्थिती कहेछ । - अभवि आसरी अनादि अनंत, भवि आसरी सादी सांत । पढवी आसरी सादी सांत । मिथ्यागुणठाणानो लक्षण कहेछे ॥ जेम कोई माणसे धतूरानुं बीज खाधू होय तेम ते सफेद वस्तू ने पीली वस्तू देखे तेमते मिथ्यात्व गुणठाणा वालो छे ते सुदेवने कुदेव माने सुगुरू ने कुगुरू माने अने जे हिंसा धर्म छे तेने अहिंसा माने तेम बधुं विपरीत माने त्यारे कोई तरक करे छे के तेनामां एक गुण नथी त्यारे तेने मिथ्यात्व भूमि स्थल कहिये तो सामों माणस कहे के सर्व जीवों ने अक्षरनों अनंतमों भाग उघाडो छे ने सर्व आठ रुचक प्रदेश छे तेमा भविने निर्मल होय अभविने झांखाहोय माटे तेने मिथ्यात्व गुणठाणो Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) कहिये त्यारे सामो तर्क करे छे के कोई दिवस मोक्षे जसे तोके हां भवि हसे तो कोईकवार समकित पामी मोक्ष हेतूनी क्रिया करी मोक्षे जसे माटे तेने मिथ्यात्व गुणाणुं कहिये। हवे सास्वा. दन गुणठाणानुं लक्षण कहेछे ॥ जघन्य उत्कृष्टी छ आवलीनी स्थिती हवे सास्वादन गुणठाणुं मिथ्यात्वथी अनंत गुणो विशुद्धि ने मिश्रथी अनंतगुणो हीन तेमांथी नपुंसक वेदने मिथ्यात्व मोहनी बे प्रकृति गई तेथी करीने विशुद्ध थयुं जेम कोई माणसे खीर खाधीहोय अने पछी वमी नाखे पण तेनुं स्वाद जाय नहीं । हवे मिश्र गुणठाणानी स्थिती कहे छ॥ जघन्य एक समय उत्कृष्टि अंतर मुहूतनी होय सास्वादनथी अनंत गुणो विशुद्ध ने अविरतीथी अनंत गुणो हीन तेमाथी अनंतानु बंधी चौकडीने स्त्री वेद ए पांच प्रकृती गई तेथी विशुद्धथयो, हवे मिश्र गुणाणां नुं लक्षण कहेछ । समकितने मिथ्यात्व बे मलीने Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) मिश्रथाय मिश्र गुणाणा वालाने जैनधर्म ऊपर राग नथी देशपण नथी कदी आवेतो अंतर मुहूर्त सुधी रहे ॥ ४ ॥ हवे चोथु अविरती गुणठाणानी स्थिती कहे छे ॥ जघन्य अंतर मुहुर्तनी ने उत्कृष्टी तेत्रीस सागरोपमनी ने मिश्र थी अनंत गुणों विशुद्ध ने देश विरतीथी हीण तेमां थी अनंतानु बंधी चौकडी ने त्रण मोहनी ते सात प्रकृति जाय ने अविरती गुणठाणे वरततां त्रण प्रकारे जीव छे एक जीव जाणे छे आदरतो नथी ने पालतो नथी, ते श्रेणिक राजानी पेठे जाणवो. एकजीव जाणे छे आदरे छे ने पालतो नर्थी ते पडता आसरी जाणवो, एक जीव जाणे छे आदरतो नथी ने पाले छे ते अनुत्तर वैमान ना देवता जाणवा ॥ ५॥ हवे पांचमां देशविरती गुणठाणानी स्थिती कहे छ ॥ जघन्य अ. तर मुहूर्तने उत्कृष्टी देश उणी पूर्व कोडी वर्षनी हवे अविरती गुणगणाथी अनंत गुणो विशुद्धने Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) परमत्तथी हीन तेमांथी बीजा कषायनी चोकडी गई तेथी विशुद्ध थयो, हवे तेहनो लक्षण कहे छे देशविरती गुणठाणे वर्ततो जीव नोकारसीथी मांडी ने बार व्रत उचरे पण देश करी उणो तेमांथी सर्व विरती गुण उणो छे ॥ ६ ॥ हवे छट प्रमत्त गुणगणानी स्थिती कहेछे ॥ जघन्य अंतर मुहूर्त उत्कृष्टी देशे उणी पूर्व कोडी वर्षनी देशविरतीथी अनंत गुणो विशुद्ध ने अप्रमत्तथी हीण तेमांथी त्रिजा कषायनी चौकडी गई तेथी करीने विशुद्ध थयो । हवे तेहनो लक्षण कहेछे ॥ प्रमत्त गुणठाणा वालो पांच प्रमादें करीने सहित छे तेथी तेना अध्यवसाय पण मलीन छे तेनुं चारित्र पण मलीनछे ॥ ७ ॥ हवे अप्रमत्त गुणठाणानी स्थिती कहेछे ॥ जघन्य अंतरमुहर्तनी ने उत्कृष्टी देशे उणी पूर्व कोडी वर्षनी हवे अप्रमत्तथी अनंत गुणो विशद्ध ने अपूर्वथी अनंत गुणो हीण ने तमांथी सोगने अरतिगई, हवे तेना लक्षण कहेछ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) के अप्रमत्त गुणठाणा वालो पांच प्रमादे करी रहित होय तेथी तेना चारित्र पण निर्मल होय ते तेना अध्यवसाय पण निर्मल होय ॥ ८ ॥ हवे अपूर्व गुणठाणानी स्थिती कहे छे || जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंतर मुहूर्तनी, हवे अप्रमत्तथी अनंत गुणो विशुद्ध ने अनिवृत्ती बादर गुणगणाथी अनंत गुण हीन तेमांथी भय शोग हास्य रति गई थी विशुद्ध थयो । हवे तेनो लक्षण कहे छे अपूर्व गुणठाणे वर्ततो जीव वण करण करे छे यथा प्रवृति करण अपूर्व करण अनिवृति करण समय समय पल्योपमनो असंख्यातमो भाग खपावतो खपावतो पांच वाना करे स्थिति घातरस, घात गुण, संक्रमणगुण, श्रेणी, अपूर्व बंध ए पांच वाना तेज करतो करतो अंतर मुहूर्त ते यथाप्रवृति करण करे समय समय पांच वाना खपावतो अंतर मुहूर्त यथा प्रवृति करण थी अनंत गुण विशुद्ध अपूर्व करण करे समये समये पांच वाना Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) खपातो अंतर मुहूर्त अपूर्व करणथी अनंतगुण विशुद्ध अनिवृति करणकरे त्यां आयु कर्म वर्जीने सात साते कर्मनी स्थिती खपावी ने एक कोडा कोडी लावीने मले त्यारे ग्रंथी भेद थाय ग्रंथी भेद ते शु अनादी कालनी राग द्वेषनी गांठ भेदी नांखी हवे अपूर्व गुण ठाणु नाम पडयो के कोई दिवस पाम्यो नथी ते नवं शुं पाम्यो तो समकित ॥९॥ हवे अनिवृति बादर गुण ठाणानी स्थिती कहे छे. जघन्य एक समय उत्कृष्टी अन्तर मुहूर्तनी हवे ते अपूर्व करण थी अनंत गुण विशुद्ध अने सुक्षम संपराय थी हीण ते माथी संजलना लोभ बिना त्रिक ने पुरुष बेद गयो हवे तेनो लक्षण कहे छे श्रेणिपर चढतां सर्व जीवना अद्यव साय सरखा होय छे जरा पण फार फेर नथी करीने अनिवृति थयो ॥ १० ॥ हवे दसमां सुक्षम संपराय गुण ठाणानी स्थिती कहे छे जवन्य एक समय उत्कृष्ट अन्तर मुहूर्तनी हवे अनिवृति बादर गुण ठाणा Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) थी अनंत गुण विशुद्ध ने उपशान्त मोहनी थी हीण तेमाथी संजलनो लोभ घणो जाडो हतो ते सुक्षम मात्र रह्यो ॥ ११ ॥ हवे उपशान्त मोहनी गुण ठाणानी स्थिती कहे छे जघन्य एक समय नी उत्कृष्टी एक मुहूर्त ते सुक्षम गुण ठाणा थी अनंत गुणु विशुद्ध ने क्षीण मोहनी थी हीण तेमां थी मोहनी कर्मनी प्रकृति उपस मावी राखी छे केवी रीते के कादव वाला पाणी माहें कादव वेशी गयो छे पण जो कोइक माणस अन्दर पगमूके तो बधो कादव उपर आवी जाय तेवी रीते उप समावी राखी छे ॥ १२ ॥ हवे क्षीण मोहनी गुण ठाणानी स्थिती कहे छ जघन्य एक समय ने उत्कृष्टी अन्तर मुहर्तनी उपशान्त मोहनी गुण ठाणा थी अनन्तगुण विशुद्ध ते सजोगी थी हीण तेमाह थी मोहनी कर्म खपान्यो हवे तेनो लक्षण कहे छे जारे मोहनी कर्मनो क्षय थयो त्यारे यथा ख्यात चारित्रनी प्राप्ति थई जेम कोई माणस समुद्रमा Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवान पडयो तेने तरतां २ थाक लाग्यो त्यारे दीप ऊपर बेसीने विसामो खाय छे ने एम विचारे छे आ थोडं पाणी छे तेने हमणा तरी जईश तेम आ संसार समुद्रने विशे तरतां २ थाक लाग्यो त्यारे यथाख्यात चारित्र रूपी दीप मल्यो त्यां बेसीने विसामो खाय छे ने एम विचारे छे के म्हारे हवे थोडी संसार छे ते हमण तरी जईश ॥ १३ ॥ हवे सजोगी गुणठाणानी स्थिती कहेछ जघन्य अंतर मुहुर्त उत्कृष्ट देशे उणी पूर्व कोड़ी वरष नी हवे तेनो लक्षण कहे छे तिहां चारे घा. तिया कर्मनो क्षय कन्यो मन वचन कायाना जोग मोकला छे हाले छे चाले छे देशना आपे ॥ १४ ॥ हवे अजोगी गुणठाणानी स्थिती कहे छे पांच लघु अक्षरनी अ इ उ ऋ ल अघाती कर्मनो क्षय कन्यो मन वचन कायाना योग रूंधे सेलेशी करण करे ॥ संपूर्ण ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) ॥ गुणठाणा द्वार लिख्यते ॥ ते १४ गुणठाणा उपर चालसै ते गुणठाणा १४ समवायांगजी सूत्र मांही कह्या छ। २५ दारना नाम कहे छे। नाम द्वार , लक्षण द्वार २, स्थिती द्वार ३, क्रिया द्वार४, सत्ता द्वार ५, बंध द्वार ६, उदे द्वार ७, उदारणा द्वार ८, निर्झरा द्वार , भाव द्वार १०, कारण द्वार ११, परीसा द्वार १२, आत्मा द्वार १३, जीवना भेद दार १४, गुणगणा द्वार १५, योग द्वार १६, उपयोग द्वार १७, लेश्या द्वार १८, हेतु द्वार १९, मार्गणा द्वार २०, ध्यान द्वार २१, जीवा योनी द्वार २२, दंडक द्वार २३, सनंत निरंतु दार २४, अल्पाबहुल द्वार २५ ॥ हवे नामहार कहेछे ॥ पहिलो मिथ्यात्व गुणगणो, बीजो सास्वादन गुणाणो, त्रीजो सास्वादन गुणठाणो, चोथो अवृत्ती Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३) समकितदृष्टि गुणठाणो, पांचमो देशवृत्ती गुणगणो, छटो प्रमत्त गुणठाणो, सातमो अप्रमत्त गुणठाणो, आठमो अपूर्व गुणठाणो, नवमो अनिवृत्ती बादर गुणठाणो, दसमो सुक्षम संपराय गुणठाणो, इग्यारमा उपशांत मोह गुणठाणो, बारमो खीणमोह गुणठाणो तेरमो संयोगी गुणाणो, चवदमो अयोगीगुणगणा. ॥ हवे लक्षण दूर लिख्यते ॥ ___ पहिलो मिथ्यात्व गुणठाणानो लक्षण कहे छ । श्री वीतराग निवार्ण अधिक ओछी प्ररूपे विपरीत सरदे जिन धर्म ऊपर दुष्ट परिणाम राखे कुदेव, कुगृरू कुधर्म कुशास्त्र ४ बोल ऊपर आस्ता राखे तेहने मिथ्यात्व गुणठाणो कहिये छे । त्यारे श्रीगो. तमश्वामी हात जोडी मानमेडिी विनय नमस्कार करी श्री भगवंतने पूछता हवा स्वामीनाथ एहने शुं गुण नीपन्यो त्यारे श्री भगवंत देवजी बोल्या अहो गोतम गुण ए निपन्यो जीव रूपी दंडी Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) " कर्म रूपी लाकडी चारगतीने चोवीसी दंडके भमे पण शातानो ठिकाणो नथी। हवे २ सास्वादन गुणठाणानो लक्षण कहे छे । तेहनो दृष्टांत कहे छे जेम कोईक मनुष्य खीर खांडनो भोजन जीम्यो हतो ते समान तो समकित पाछो वमन कीधो त्यारे कोई पुरुष पूछो तुं काई जीम्यो त्यारे कह्यो खीरनो स्वाद रह्यो ते समान सुस्वादन समकित । बीजो दृष्टांत घंटानो नाद पहिलेतो गहिर गंभीर शब्द निकले ते समान तो समकित पाछो रणकारो रहिगयो ते समान सास्वादन गुणठाणो । त्रीजो दृष्टांत जीव रूपी आंत्रो अने परिणामरूपी • डाल समकित रूपी फल, परिणाम रूपी डालीथी समकित रूपी फल टुटो ते मिध्यात्व रूपी धरती • ता आव्यो तेहने सास्वादन गुणठाणो कहिये त्यारे श्री गोतमश्वामी पूछता हवा स्वामीनाथ एहने शुं गुण निपन्यो त्यारे श्री भगवंतजी बोल्या अहो गोतम गुण. ए निपन्यो कृष्णपक्षनो शुक्ल पक्ष थयो ~ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) अर्ध पुद्गल भोगवानो रह्यो अर्धा रुपयानोदृष्टात जेम कोई पुरुष कोड़ रुपयानो देवादार हतो ते नवाणुं लाख नवाणुं हजार नवसे साड़ा नवाणुं दीधा अर्धा रुपयो रह्यो । हवे त्रीजा गुणठाणानो लक्षण कहे छे । त्रीजो मिश्र गुणठाणो तेहनो दृष्टांत जेहवो श्रीखंडनो स्वाद मीठा समान तो समकित अने खाटा समान तो मिथ्यात्व अथवा अनादि कालनो उलटो हतो तेहनो सुलटो थयो समकित सामो बेटो पण पग भरवा समर्थ नहीं तेहने मिश्रगुणठाणो कहिये त्यारे श्रीगोतमस्वामी पूछता हवा स्वामीनाथ एहने शुं गुण निपन्यो त्यारे स्वामीनाथ बोल्या गुण एह निपन्यो अनादि कालनो कृष्ण पक्ष हतो तेहनो शुक्ल पक्ष थ्यो अर्ध पुद्गल भोगवणा रह्या अधेलीनो दृष्टांत जा. णवो । हवे चोथा गुणठाणानो लक्षण कहे छ । तेहनी प्रकृति (७) अनुतानुबांध्यो क्रोध, मानर, माया ३, लोभ ४, मिथ्यात्व मोहनी ५, मिश्र Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) मोहनी ६, समकित मोहनी ७, तेहना भांगा नव पहिले भांगे आगली ४ प्रकृति खपावे ३ प्रकृति उपसमावे तेहने खयोउप समकित कहिये । बीजे. भांगे आगली ५ प्रकृति खपावे २ उपसमावे तेहने खयोपसम समकित कहिये । त्रीजे भांगे आगली ६ प्रकृति खपावे १ उपसमावे तेहने उपसमकित कहिये । चोथे भांगे आगली ४ प्रकृति खपावे २ उपसमावे श्वेदें तेहने खयोपसम वेदक समकित कहिये । पांचमें भांगे आगली ५ प्रकृति खपावे १ उपसमावे १ वेदें तेहने खयोपसम वेदक समकित कहिये । छठे भांगे आगली ६ प्रकृति उपसमावे १ वेर्दै तेहने उपसम वेदक समाकित कहिये। सातमें भांगे आगली ६ प्रकृति खपावे १ वेदें तेहने खाहक वेदक समकित कहिये । आठौभांगे प्रकृति ७ उपसमावे तेहने उपसम समकित कहिये नवमें भांगे ७ प्रकृति खपावे तेहने खायक समकित कहिये । त्यारे चोथे गुणठाणा आवे जिवादिक Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) नव पदार्थनो जाण हुवे। द्रव्यथका १, खेत्रथकीर, कालथकी ३, भावथकी ४, नोकारसी आदि देई वरसी तप सरदवो । त्यारे श्री गोतमस्वामी पूछता हुवा स्वामीनाथ एहनो शुं गुण नीपन्यो त्यारे श्रीभगवंत देवजी बोल्या अहो गोतम गुण ए नीपन्यो नरक गतिर्नु आऊखो १, तीर्यच गतिर्नु आउखो २, स्त्री वेद ३, नपुंसक वेद भवनपतिनो योतिषी व्यंतर आउखो ७, ए सात समकितमाही नवु न बांधे ॥४॥ हवे पांचमुं देशवृती गुणठाणा नो लक्षण कहे छे । पांचों देशवृती तेहनीप्रकृती ग्यारह साततो पहिले कही ते अने प्रत्यानुबंधी क्रोध १, मान २, माया ३, लोभ ४, एम ११ प्रकृती खयोपसम करे त्यारे पांचमुं गुणआवे जीवादिक नव द्रव्य थकी ४ नोकारसी आदि देई वरसी तप सरदवो शक्ति परिणामें करने त्यारे श्री. गोतमश्वामी पूछता शुं गुण निपन्यो युण ए निपन्यो जघन्य तो त्रीजे भवे मोक्ष जाय उत्कृष्टो Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) सात आठ भव करी मोक्ष जाय हवे । छठो गुणठाणानो लक्षण कहे छे तेहनी प्रकृती १५ इग्यारे पाछे कही ते, अप्रत्याख्यानी क्रोध 3, मान २, माया ३, लोभ ४, एम १५, प्रकृती खयोपसम करे त्यारे छठे गुणठाणे आवे जीवादिक नव पदार्थ नो जाण हुवो द्रव्य थकी जावजीव थकी नोका रसी आदि देई वरसी तप सरदवो शक्ति प्रमाणे करवो त्यारे श्री गोतमश्वामी कहता हुवा एनो गुण एह निपन्यो जघन्यतो एहीजभवे मोक्ष जाय उत्कृष्ट सात आठ भव करी मोक्षजाय | हवे सात मा गुणठणानो लक्षण कहे छे प्रकृती १५, पाछे कहीते खयोपसम एटलो विशेष मद विष कसाय निंदा विगहा ए पंच भणी परमाद जीव पडती संसारे ए पांच प्रमाद छांडे त्यारे सातमें गुणठाणे आवे जीवादिक नव पदार्थनो जाण नोकारसी देई वरसी तप करे त्यारे श्री गोतमश्वामी पूछता हवा उत्तर जघन्य एहीज भवे मोक्ष जाय अथवा Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) सात आठ भवकरी मोक्ष जासी, हवे आठमुं गुणठाणानुं लक्षण कहे छे अपूर्व करणने शुक्लध्यान आवे त्यारे आठमें गुणठाणे आवे तिहां श्रेणी बे एक उपसम श्रेणी बीजी क्षायक श्रेणी हवे उपसम श्रेणीना लक्षण कहेछे तेहनी प्रकृती २१, तेएम १५ पाछे कही ते हास्य १, रती २, अरति ३, भय ४, सोग ५, दुगंछा ६, एम २१ प्रकृति उपसमावे त्यारे नवमें गुणठाणा आवे । हवे दसमुं गुणठाणा नो लक्षण कहे छे तेहनी प्रकृति २७ तेएम २१ तो पाछे कही ते स्त्री वेद १, पुरुष वेद २, नपुंसक वेद ३, संजलनो क्रोध १, मान २, माया ३, एम २७ प्र. कृति उपसमावे त्यारे दसमें गुणठाणे आवे तिहां काल करे तो ४ अनुत्तरविमान माहीज जावे काल नहीं करे तो संजलनो लोभ हतो ते उपसमावीने इग्यारमें गुणठाणे आवे तिहां काल करे तो स्वार्थ सिद्धी जाय काल न करे तो पाछो लड़थड़े इग्या. रमानो दसमे तथा नवमें तथा चौथे तथा पहिले Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) गुणठाणे आवे त्यारे श्री गोतमश्वामी पुछता हवा ए पाछो पड्यो ते स्या थकी श्री भगवंतदेवजी बोल्या ए मोहनी कर्म संजलनो लोभ उपसमायो हतो ते पाछो प्रजल्यो अनिने दृष्टांते जेम अनि . मांहें इंधन भारया आव्या ते जलबट उठी तेम मोहनी कर्म उपसमाव्यो हतो ते पालो प्रजल्यो । क्षायक श्रेणीना लक्षण कहेछे वेहीज २१ प्रकृति खपावे तो नवमे गुणठाणे आवे वेहीज २७ प्रकृति खपावे तो दसमें गुणठाणे आवे इहां संजलनो लोभ हतो ते खपावीने इग्यारसुंगुणठाणों उलांगी ने बारमें गुणठाणे आवे तिहां घनघातिया कर्म ज्ञानावरणी १, दर्शनावरणी २, अंतराय ३, एतीन कर्म खपावीने तेरमें गुणठाणे आवे तिहां १० बोल नी प्राप्ती होवे दान लब्दी १, लाभ लब्दी २, भोग लब्दी ३, उपभोग लब्दी ४, वीर्य लब्दी ५, केवलज्ञान लब्दी ६, केवलदर्शन लब्दी ७, क्षायक समकित लब्दी ८, यथाख्यात चारित्र लब्दी ९, Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) शुक्लध्यान लब्दी १०, एम १० बोल सहित १४ गुणठाणे आवे इहां चारी अध्यात्मकर्म क्षय करीने निर्वाण जाय ॥ इति लक्षण द्वार संपूर्ण ॥ २१ ॥ हवे स्थिती द्वार लिख्यते । पहिला गुणठाणानी स्थिती तीन प्रकारनी अभवी आसरी अनादी अनंत भवी आसरी अनादी सान्त पड़वाई समदृष्टि जाणवो तेहनी स्थिती जघन्य अन्तर मुहुर्त उत्कृष्टो अर्ध पुद्गल देश उणी१, बीजा गुणठाणानी स्थिती जघन्य १ सम्योत्कृष्टि ६ आवलिकानी स्थिती त्रीजा गुणठाणानी स्थिती जघन्य उत्कृष्ट अन्तर मुहुर्तनी चोथा गुणठाणानी स्थिती जघन्य अन्तर मुहुर्त उत्कृष्टी ६६ सागर झाझेरी पांचमा छठा तेरमा गुणठाणानी स्थिती जघन्य अन्तर मु. हुर्त उत्कृष्टो १ कोडी पूर्व देश उणी सातमा गुण. ठाणासु मांडीने इग्यारमा गुणठाणा सुधी जघन्य एक सम्यो उत्कृष्टो अन्तर मुहुर्त बारमा गुणठाणा नी स्थिती जघन्य उत्कृष्टी अन्तरमुहुर्तनी चवदमा Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) गुणगणानी स्थिती पांच लघु अक्षरनी । अ, इ, उ, ऋ, लृ, । इति स्थिती द्वार संपूर्ण ॥ ३ ॥ हवे क्रियादार लिख्यते । मूल क्रिया ५ मिथ्या: त्वकी ? अपचणावरणी २ परिग्रीया ३ आरंभिया ४ मायावतिया ५ पहिले गुणठाणे क्रिया पांच लागे बीजे तीजे चोथे गुणठाणे क्रिया ४ लागे मिथ्यात्व न लागे पांच मे गुणठाणे क्रिया ३ लागे अपच्चखाण नी न लागे छठे गुणठाणे क्रिया २ लागे परिग्रह न लागे सातमा गुणठाणासु मांडीने दसमा गुणठाणा सुधी ? मायावतीया लागे इग्यारमे बारमे तेरमे गुणठाणे १ इरिया वहिया नी क्रिया लागे पहिले समे लागे बीजे समे वेदे चीजे समे निर्जरे चवद मे गुणठाणे क्रिया न लागे इति क्रियाद्वार सपूर्ण |४ हवे सत्ता द्वार लिख्यते । पहिला गुणठाणासु माडीने इग्यारमा गुणठाणा सुधी आठकर्म नीसत्ता बारमा गुणठाणा सात कर्म नी सत्ता मोहनी नथी तेरमे चवदमे गुणठाणे ४ अघातिया कर्मनी सत्ता Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३ ) वेदनी १, आयु २, नाम ३, गोत्र ४, इति स. सं. वे बंधार लिख्यते । पहिला गुणठाणासुमांडी नेत्री जोगुणठाणो वरजीने सातमा गुणठाणासुधी आठ कर्म बांधे तथा सात बांधे तो आयु न बांधे बीजे आठ नवमे गुणठाणे ७ कर्मबाधे आयु न बांधे दस गुणठाणे ६ कर्म बांधे मोहनी न बांधे इग्यार मे बारमे तेरमे गुणठाणे १ साता वेदनी नो बांधे चवदमे गुणठाणे अबंध । इति बंध द्वार संपूर्ण ॥ ६ ॥ हवे उदेद्वार लिख्यते । पहिला गुणठाणाथी मांडीने दसमा गुणठाणा सुधी आठ कर्म नो उदे इग्यारमे बारमे गुणठाणे सात कर्म नो उदे मोहनी नथी तेरमे चवदमे गुणठाणे चार अघात्या कर्मनो उदे । इति उदे द्वार संपूर्ण ॥ हवे उदीरणा द्वार लिख्यते । पहिला गुणठाणा थी मांडीने वीजे गुणठाणो वरजी छठा गुणठाणा सुधी आठ कर्म नी उदीरणा अथवा सात कर्म नी उदीरणा आयु वर्ज्यो त्री जे गुणठाणे आठ कर्म नी ✓ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) उदीरणा सातमे आठमे नवमे ६ कर्म नी उदीरणा आयु वेदनी वरज्यो दसम गुणठाणे ६ कर्मना उदीरे एहीज उदीरतो मोहनी वरज्यो इग्यारमे गुणठाणे ५ उदीरतो एहीज बारमे गुणठाणे ५ उदी. रतो एहीज अथवा २ उदीरतो नाम १ गोत्र २ तेरमे गुणठाणे २ उदीरतो नाम गोत्र २ उदीरे नहीं चवदमे गुणठाणे उदीरे नथी। इति उदीरणादार सं. .. हवे निर्जरा द्वार लिख्यते पहिला गुणठाणासु मांडीने दसमा गुणठाणा सुधी आठ कर्मनी निर्जरा इग्यारमे बारमे गुणठाणे ७ कर्मनी निर्जरा मोहनी वरज्यो तेरमे चवदमे गुणठाणे ४ - अघात्याकर्मनी निर्जरा । इति निर्जराद्वार संपूर्ण ॥ हवे भाव द्वार लिख्यते । मूल भाव उदे १ उपसम २ भव क्षयोपसम ३ क्षायक ४ परिणामिक५ हवे पहिले बीजे बीजे गुणठाणे भाव३ लाभे उदे? उपसन २ भवक्षयोपसम ३ खायक ४ परिणामिक ५ हवे पहिले बीजे वीजे गुणठाणे भाव ३ उदे १ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खयोपसम २ परीणामिक ३चोथागुणठाणासु माडी इग्यारमा गुणपणा सुधी भाव लाभेवारमेगुणठाणे भाव ४ लाभे उपसम वरज्यो तेरमे चवदमेगुणगण भाव ३ लाभे उदे भाव १ क्षायक २ परिणामिक सिद्ध मे भाव २ लाभे क्षायक १ परिणामिक २ इति भावदार संपूर्ण ॥ हवे कारण दार लिख्यते । कारण ५ मिथ्यात्व अवतर प्रमाद ३ कषाय ४ अशुभजोग ५ पहिले गुणठाणे कारण ५ लागे त्रीजे २ गुणठाणे बीजे? गुणठाणे चोथे गुणठाणे . लागे मिथ्यात्व नरयो पांचमे छठे गुणठाणे कारण ३ लागे अवरत टल्यो सातमां गुणाणासुं मांडी दसमा गुणठाणा सुधी कारण २ लागे परमाद टल्यो इग्यारमे बारमे तेरमे गुणठाणे कारण १ जोग लागे चवदमे गुणठाणे कारण नथी । इति कारण द्वार संपूर्ण हवे परिसा द्वार लिख्यते । सुधा परिसो १ पिवासार सीत३ उष्मट दंस५ अचेलपरीसाद ति Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) परसि ७ स्त्री चरिया९नीसिया १० सझा ११ अकोस १२ बंध १३ जायणा१४ अलाभ १५ रोग १६ तणफासा १७ मल १८ सत्कार १९ प्रगन्या २० आगन्या २१ दर्शन ॥ २२ ॥ चाखि कर्म थकी परीसा उपजे ज्ञानवरणी कर्म ॥ २ ॥ परीसा उपजे ॥ २० ॥ ११–१३–१५–१७–१९ ॥ २१ ॥ वेदनी कर्म थकी ॥ ११ ॥ परसा उपजे १२ - ३ - ४५ - ९ मोहनी कर्म थी ८ परीसा उपजे दर्शन मोहनीथी परीसा उपजे ॥ २२ ॥ मो चारित्र मोहनी थी ७ परीसा उपजे ॥ ६-७-८-१०-१२-१४९९ ।। एवं ७ ॥ अंतराय कर्म थी १५ परीसा उपजे एवं ४ कर्म थी २२ परीसा उपजे || पहिला गुणठाणासुं मांडीने नवमा गुणठाणा सुधी २२ परीसा उपजे ते मांही २० वेदे २ न वेदे सीत होवे तहां उष्ण नहीं उष्ण होवे तिहां सीत नहीं ||१|| चरिया होवे तिहीं निसिया नथी निसि होवे तिहां चरिया नथी ॥ २ ॥ दसमे इग्यारमे बारमे गुणठाणा १४ परीसा उपजे ॥ इहां > Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) मोहनी ८ टल्या ते माहे १२ वेदे २ न वेदे सीत होवे तिहां उष्ण नहीं ॥ १॥ चरिया तिहां सझाय नथी सझाय तिहां चरिया नथी॥२॥ तेस्मे चउदमे गुणगणे परीसा ११ उपजे ज्ञानावरणी २ अंतरायनो १ एवं ३ वरजा ११ माही ९ वेदे २ न वेदे इति परसा दार संपूर्ण । हवे आत्मा द्वार लिख्यते। आत्मा ॥८॥ द्रव्य आत्मा १ कषाय २ जोग ३ अयोग ४ ज्ञान ५ दर्शन ६ चारित्र ७ वीर्य आत्मा ८ पहिले बीजे गुणगणे आत्मा ६ लाभे ज्ञान १ चारित्र नथी २ बीजे गुणठाणे चौथे गुणठाणे ७ लाभे चारित्र नथी ५ गुणठाणासुं मांडीने दशमा गुणठाणा सुधी आत्मा ८ इग्यारमे बारमे तेरमे गुणठाणे आत्मा लाभे कषायनथी चउदमें गुणठाणे आत्मा ६ लामे जोग नथी सीद्धजी में आत्मा ४ लाभे अथवा ६ लाभे ॥ इति आत्मा द्वार संपूर्ण ॥ हवे जीवना भेद द्वार लिख्यते । जीवनाभेद१४ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) पहिला गुणठमणा मां लाभे एम जावत चवदमा गुणठाणा सुधी आप २ ना गुण आप २ माही लाभे । इति गुणठाणा द्वार संपूर्ण ॥ हवे जोगदार लिख्यते । जोग १५ । मनना ४ वचनना ४ कायना ७ एम १५ पहिले बीजे चोथे गुणठाणे जोग १३ लाभे । अहारक अहारक मिश्र २ ए २ टाल्या त्रीजे गुणठाणे १० जोग लाभे मनना ४ वचनना ४ कायाना २ उदारिक १ वेक्रिय १ एम १० पांच में गुणठाणे ॥ १२ ॥ जोग मनना ४ वचनना ४ कायना उदारिक वेकीय २ एम १० । छठे गुणठाणे जोग १४ लाभे १ कारण वरज्यो सातमें गुणठाणामें जोग ११ तीन मिश्र एम कार्मण ४ नथी। आठमा गुणठाणासु मांडी बारमा गुणठाणा सुघी मनना वचनना ४ काया ना १ एम ९ । तेरमें गुणठाणे जोग ७ मनना२ वचनना २ काथाना ३ एम ७॥ चवदमें गुणठाणे जोग नथी इति जोग द्वार संपूर्ण ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५९) हवे उपयोग द्वार लिख्यते । उपयोग ॥ १२ ॥ ज्ञानना ५ अज्ञानना ३ दर्शन ४ एम१२ । पहिले त्रीजे गुणाणे उपयोग ६ लाभे अज्ञान ३ दर्शन एम ६ । बीजे चोथे पांचमै छः गुणठाणासु मांडी १२ गुणठाणा सुधी उपयोग ७ ज्ञानना ४ दर्शनना ३ । तेरमे चवदमें गुणठाणे उपयोग २ केवलज्ञान? ने केवलदर्शन २ एम सिद्धजीमें पण२ इति सं०। हवे लेश्या दार लिख्यते । लेश्या ६ पहिला गुणठाणा सुमाडी छूटा गुणठाणा सुधी ६ लेश्या कृष्ण १ नील २ कापूत ३ तेज ४ पद्म ५ शुक्ल ६ लेश्या सातमें गुणठाणे लेश्या ३ तेजु १ पद्म २ शुक्ल ३ आठमे गुणठाणासुमांडीने तेरमा गुणठाणा सुधी १ शुक्ल लेश्या चवदमै गुणठाणा लेश्या नथी इति लेश्या द्वारा संपूण। हवे हेतु द्वारा लिख्यते । हेतु ॥५७॥ मिथ्यात्व ५ अभीग्रक अणअभीग्रक २ सांसे ३ अभीनिवेसीक ४ अणाभोग ५ अत्रत १२ छेकायनी ६ इंद्रीनी Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) ५ मनणी १ सर्व १२ एम १७ जोग १५ कसाय २५ सोले कसाय नोकसाय सर्व मिली हेतु ५७ पहिले गुणठाणे हेतु ५५ लाभे आहरक १ आहारीक मिश्र २ जोगटल्या बीजे गुणगणे हेतु ५० लाभे ५ मिथ्यात्व टल्या त्रीजे गुणाठाणे हेतु ४३ लाभे अनंतानु बंधी चोकडी टल्यी उदारीको मिश्र १ वे क्रियनो मिश्र २ कारमण ३ एम जोगंटल्या चोथे गुणठाणे हेतु४६ लाभे ३ जोग पाछा आव्या पांच मे गुणठाणे हेतु ३९ लाभे आप्रत्याख्यानी वाकडी टली सनी अबत टली कार्मण जोग उदारीक मिश्र नोटल्या । छटे गुणठाणे हेतु २६ लाभे १९ आव्रतटल्या प्रत्यख्यानी चोकडी टली आहारक आहारकनो मिश्र २ जोग पाछा आव्या सातमे गुणठाणे हेतु २४ लाभे २ मिश्र जोग टल्या आठ गुणठाणा हेतु २२ लाभे आहारक वेकीय २ जोग टल्या नव मे गुणठाणे हेतु १६ लाभे ६ हास्यादिक टल्या | दशमे गुणठाणे हेतु १ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ ( ६१ ) लाभे संजलनो क्रोध १ मान २ माया ३ स्त्रीवेद ४ पुरुषवेद ५ नपुंसकवेद ६ एवं ६ टल्या इग्यारेमे बारमे गुणठाणे हेतु ९ लाभे जोग संजलनो लोभ टल्यो तेरमे गुणठाणे हेतु ७ लाभे ते जोग चवदमें गुणठाणे कर्म बंधनो हेतु नथी । इति सं० हवे मार्गणा द्वार लिख्यते । पहिलागुणठाणे मार्गणा ४ पहिलानो तीजे चोथे पांचमें सातमे गुणठाणेआवे १ बीजे गुणठाणे मार्गणा बीजानो पहिले गुणठाणे आवे २ | त्रीजे गुणठाणे मार्गणा ४ त्रीजानो पहिले चोथे पांचमे सातमे गुणठाणे आवे ३ चोथे गुणठाणे मार्गणा५ चोथाना चीजे बीजे पहिले पांच में सात गुणठाणे आवे ने जाय ४ | पांचमा गुणठाणे मार्गणा ५ पांचमानु चोथे त्रिजे बीजे पहिले सातमे गुणडाणे जाय ५ छठे गुणठाणे मार्गणा ६ छठानो ५-४-३-२- १ सातमे गुणठाणे जाय ६ सातमे गुणठाणे मार्गणा ३ सातमानो ६-८- ९-१० आवे काल करतो चोथे गुणठाणे जाय । आठमा Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) गुणठाणे मार्गणा ३ नवमे मार्गणा ८ दसमे गुणठाणे मार्गणा ४ दसमानो ९-११-१२ काल करे तो चोथे गुणठाणे आवे इग्यारमा गुणठाणे मार्गणा २ ११-१० काल करे तो चोथे गुणठाणे आवे ११ बारमानो तेस्मे तेरमानो चवदमानो काल करे तो चोथा गुणठाणे जाय । इति मार्गणा दार संपूर्ण। हवे ध्यान दार लिख्यते । ध्यान ४। आरत १ रोद्र २ धर्म ३ शुक्ल ४ पहिले बीजे वीजे गुणठाणे ध्यान २ आत १ रुद्र २ चोथे पांचमें गुणठाणे ध्यान ३ आर्त १ रुद्र २ धर्म ३ छठे गुणठाणे ध्यान २ सातमा गुणठाणा सुं मांडीने चवदमा गुणठाणा सुधी ध्यान १ शुक्लध्यान १ इति ध्यान द्वार सम्पूर्ण हवे दंडक द्वार लिख्यते ॥ दंडक २४ पहिले गुणठाणे दंडक २४ लामे बीजे गुणठाणे दंडक १९ लाभे थावरना टल्या त्रीजे चौथे गुणाणो दंडक १६ लाभे ३ विकलेंद्री नाटल्या पांचमें गुणठाणे Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) दंडक २ लाभे मनुष्य १ तिर्यच २ छटा गुणठाणासु मांडी चवदमा गुणठाणा सुधी मनुध्यनो दंडक १ । इति दंडक द्वार संपूर्ण २१ . हवे जीवा जोनी दार लिख्यते। पहिले गुणठाणे ८४००.०० लाख जीवा जोनी लाभे बीजो गुणगणे ३२००००० लाख लाभे ५२ एकेंद्रीनी टली बीजे गुणठाणे चोथे गुणठाणे २६००००० लाभे जीव लाभे ६ विकलेंद्रीनी टली पांचमां गुणठाणे १८०००० जीव लाभे ८ देवता नारकी टली छठा गुणठाणासु मांडी चवदमां गुणठाणासुधी १४००००० लाख मनुष्यनी जोनी लाभे । इति जीवाजोनी सं. हवे संतर द्वार लिख्यते । संतर कहता आंतरो पडतो पहिले गुणठाणे केटलो पडे जघन्य अन्तर मुहुर्तनो उत्कृष्टी ६६ सागर झाजेरो बीजा गुणठाणासु मांडी इग्यारमा गुणठाणा सुधी आंतरो जघन्य अन्तर मुहरतर्नु उत्कृष्टो अर्ध पुद्गल देशे उणो बारमें तरमै छुटो ते छुटो फेर पाछो न आवे Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) नीरंतर कहता जेटली अपाप गुणठाणानी स्थीतीछ तेटला काल त्यां रहे इति सतरदार सम्पूर्ण। हवे अल्पा बहुत्वद्वार लीख्यते सर्वथी थोडा ग्यारमा गुणगणाना धणी तेथी बारमें गुणठाणा वाला संख्यातगुणा तेथी आठमा नवमा दसमाना धणी माहों माहें समतुल्य तेथी बारमा गुणागाना धणी विशेष अधिक तेथी तेरमां गुठाणाना संख्याता गुणा तेथी सातमा गुणगणाना धणी संख्याता गुणा तेथी छटा गुणगणाना धणी संख्याता गुणा तेथी पांचमा गुणगणाना धणी असंख्यता गुणा तीर्यंच में सावग घणा तेमाटे तेथी त्रीजा बीजा गुणठाणाना धणी असंख्याता गुणा विकलेंदीनी अपेक्षाथी तेथी तीजा गुणठाणा ना धणी असंख्याता गुणा देवता नारकीनी अपेक्षा थी तेथी चौथा गुणगणाना धणी असं ख्याता गुणा स्थीती घणी तेमाटे तेथी चवदमा गुणठाणाना धणी अनंत गुणा सिद्धनी अपेक्षाथी Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेथी पहिला गुणठाणाना धणी अनंत गुणा नीगोदीया जीव नी अपेक्षा थी ॥ इती अल्पा घुहुत्व द्वार सम्पूर्ण ॥ ॥ लघु संग्रहणीनो यंत्र ॥ (जंबु द्वीप लाख जोजननो) एक खांडवानु भरत क्षेत्र छे ते भरत क्षेत्र केवडु छे ५२६ जोजनने ६ कलानो छे ५०० को १०० से गुणाकया तो ५०००० हजार थया ५०० को ९० से गुणाकया तो ४५००० हजार थया २५ जोजनको १०० से गुणाकया तो २५०० थया २५ जोजन को ९० गुणाकया तो २२५० थया १ जोजनको १०० से गुणाकन्यतो १०० थया. १ जोजनको ९० गुणाकन्यतो ९० थया ६ कला को १०० गुणाकन्यतो ६०० थया ६ कलाको ९० - Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) गुणाकन्यतो ५४० थया १९ कलानुं एक जोजन ९५ कलाना ५ जोजन थया ६०० कलाना ३० जोजन थया अने ३० कला बधी ५०० कलाना २५ जोजन थया अने २५ कला वधी ३० कला २५कला ४०कला सर्वे भेगीकरी त्यारे ९५कला यया तेनापजोजनथया सर्वमलीने६ जोजनथया सर्वेनो आंखभेगोकरता लाख जोजननो जंबुद्धीप थयो. १९. खांडवा पेला पासाना ६३ खांडवा. १. खांडवानुं भरत क्षेत्र २. खांडवानुं हिमवंत पर्वत ४. खांडवानुं हिमवंत क्षेत्र, ८. खाडवानुं महा हिमवंत पर्वत. १६. खांडवानुं हरण्य क्षेत्र ३२. खांडवानुं निषध पर्वत ए सर्वे मलीने ६३ खांडवा थया. बीजा पासाना. १. खांडवानें ऐरावत क्षेत्र Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) २. खाडवानुं शिखरी पर्वत ४. खांडवा- हरण्यवंत क्षेत्र. ८. खांडवानुं रुपी पर्वत. १६. खांडवानुं रम्यक् क्षेत्र ३२. नलिवंत पर्वत ए बे ६३ खांडवा जाणावा ६४. खांडवातुं महाविदेह क्षेत्र. ए सर्व भेगा करता १९० खांडवा थया. ३ लाख १६ हजार २२७ जोजन ३ कोस १२८ धनुष १३॥ अंगुलनो गुणा करावा. .३ लाखने १०० से गुणाकया तो ३ क्रोड थया ३ कोडने १० से गुणाकन्या ३० क्रोड थया. ३० कोडने २५ से गुणाकन्योतो ७५० क्रोड थया. १६ हजार १०० से गुणाकन्या १६ लाख थया. १६ लाखने १० से गुणाकन्यतो १कोडने ६० लाख थया. १ कोडने २५ से गुणाकन्यातो २५ क्रोड थया. ६० लाखने २५ से गुणाकन्यतो १५ कोड थया. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६८ ) २ सौने १०० से गुणाकयतो २० हजार थया. २० हजार १० से गुणा कन्यातो २ लाख थया. २ लाखने २५ से गुणाकयतो ५० लाख थया. २७ ने १०० से गुणाकयतो २७०० सौ थया. २७ सौने १० से गुणा कयतो २७ हजार थया. २७ हजारने २५ से गुणाकान्यातो ६७५००० थया. ३ कोसने १०० से गुणाकयतो ३ सौ कोस थया. तेना ७५ जोजन थया. ७५ जोजनने १० सेगुणाकयतो ७५० जोजन थया. ७५० जोजनने २५ से गुणाकऱ्या तो १८७५० जो जन थया. २८ धनुषने १०० से गुणाकयतो २८ सौ थया. २८ सौ धनुषने १० गुणाकयतो २८ हजार धनुष थया. १२ हजार धनुषनो एक कोस थाय: अने चार कोसनो एक जोजन थाय २८ हजार Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६९ ) धनुषनो ३ || जोजन थया ३ || जोजनने २५ से गुणाकयातो ८॥ जोजन थया १०० धनुषने १०० से गुणाकयतो १० हजार थया दस हजारना ५ कोस थया. ५ कोसने १० से गुणा कन्यातो ५० कोस थया तेना जोजन १२ ॥ थया. १२ || जोजनने २५ से गुणाकयतो ३१२|| जो जन थया. १३ ॥ अंगुलने १०० से गुणाकयातो १३५०० अंगुल थया. १३५०० अंगुलने १० सुं गुणाकऱ्या तो १३५००० अंगुल थया• १३५००० अंगुलनां १४० धनुष अने ६० अंगुलथया. १४• अंगुलने २५ से गुणाकयतो ३५०० धनुष थया. हजार धनुष नो एक कोस अने पन्नरसो धनुष थया. ६० अंगुल २५ से गुणाकयतो १५०० अंगुलथया. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ९६ अंगलनो एक धनुष १५०० अंगुलना १५ धनुषने ६० अंगुल थया सर्वनो आंकडो भेगो कन्योतो ७०० कोड ९० क्रोड ५६ लाख ९४ हजार १५० जोजन १ कोस १५१५ धनुष अने ६० अंगुल थया नानी संघरणी नो गणी पद. इति समाप्त॥ हवे पर्वत. ३८ वैताब्य पर्वत तेमा चार वाटला आकारे ३४ लांबाछे १६ बखारा पर्वतछे एक चीत्र अने बीजो विचत्रि एक जमग अने बीजो समग बे पर्वतछे २०० कंचन गीरीछे गजदंता पर्वत तेमा १ सुमेरू ६ वर्षधर पर्वतछे ए सर्व इकठा करता २६९ थयाछे. हवे कुटनी गीनती. १६ वखारा पर्वतने विशे चार २ कुट एकंदर ६४ कुट थया-सोमनस अने गंध मादन तेने वीशे सात २ कट अने रूपी तथा महा हीमवंत पर्वत Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) एबे पर्वतने विशे आठ २ कुट सर्वे मलीने ९४ थया. ३४ वैताब्य पर्वत ए बे पर्वत विघुत पर्वत नीशेध पर्वत नीलवत पर्वत मालगीरी पर्वत सूरगिरी पर्वत ए ३९ पर्वतने विशे नव २ कुट सर्वे मली ३५१ थया. हीमवंतपर्वत अने शिखरीपर्वत एबेपर्वतनविशे ग्यार २ कुट सर्वनो आंख भेगो करता ४६७ कुट थया ३४ विजयने विशे ३४ रिशभ कुट छे तथा मेरूपर्वत, जंबुवृक्ष अने देवकुरु क्षेत्र ए त्रणने विशे आठ २ कुट सालिवृक्ष मध्येना हरिकुट अने हरशिी कुट ए सर्वे मलीने ६० भुमीकुट थया. हवे १०२ तीर्थ लिख्यते. मागद तीर्थ, वरदांम तीर्थ, प्रभास तीर्थ ए तीन तीर्थ ३२ विजय तथा भरत ऐरावत ए ३४ ने विशे तीन २ तीर्थ होय सर्व मलीने १०२ तीर्थ थया. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) हेवे १३६ श्रेणी लिख्यते. विद्याधर अने अयोगी देवतानी ३४ वैताड्य पर्वतनेविशे चार श्रेणीछे ३४ ने चार सुंगुणा करतां १३६ श्रेणी थाय. हवे नदियों १४५६००० लखीयेछे गंगा सींधु रक्ता ने रक्तवती ए चार नदीयोंने विशे प्रत्येके २ चौद २ हजार नदीयोनो परीवार छे सर्वे मलीने ५६००० नदियो थयी हीमवंत अने ऐरावत ए बे क्षेत्रनी रोहीता रोहीतासा रूपकला रुवार्णकला ए चार नदियोने प्रत्येकर अठावीसर नदियोनो परीवार हरिवर्ष रम्यक क्षेत्रनी हरीकंता हरीशलीला नरकंता नारीकंता ए चार न. दियोने प्रत्येक २ छपन २ हजार नदियो नो परिवार छ देव करने उत्तर करु मा ६ द्रह तेना नाम पद्म महापद्म पुण्डरीक महा पुण्डरीक तीगीरछ अने केसरी ए ६ द्रहनी ६ नदियोने विशे १ चौद२ हजारनो परिवार सर्वथईने ८४००० थई. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) पछीम महा विदेहनी सोल वीजय तेमा बत्री सनदियों तेने प्रत्येके २ चोदे २ हजारनो परीवार सर्वे चार लाख ४८ हजार नदियों थई सर्वे नो आख भेगो करता सीता नदिमा पांच लाखने बीस हजार नदीयो थई अने सीतोदा नदी मा पांचलाख ने बत्रीसहजार नदीयो नो परिवार सर्वे नदीयोनो परिवार भेगो करता चौदेलाख ने ५६ हजार नदियों थई. ॥ बासठ मार्गणा ए ५६३ भेद जीवना लखियेछे || १९८ देवता नी गती १५ परमाधामीना १० भुवन पतीना १६ बाणव्यंतर ना १० तिर्यग जंभक ना १० जोतीषीना १२ देवलोकना ३ कि. वीषीया ना ९ लोकांतिक ना ९ नवग्रैवेग ना ५ अनुत्तर विमाना एकटा ९९ पर्याप्ता ९९ अपर्या प्ता मिलाकर १९८ भेद थया. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) ३०३ मनुष्यनी गती १५ कर्मज भुमी तेएम ५ भरत ५ ऐरावत ५ महाविदेह मिलकर १५ भेद ३० अकर्मज भुमि ते एम ५ हेमवंत ५ ऐरण्यवंत ५ हरिवर्ष ५ रम्यक ५ देवकुरु ५ उत्तरकुरु मिलकर ३० भेद ५६ अंतरदिप मिलकर १०१ पर्याप्ता १०१ अपर्याप्ता १०१ समुर्छिम मिलकर ३०३ भेद. ४८ तिर्यंच नी गती २२ एकेंद्रीना ६ विगलेंद्रीना २० पेचेंद्री तिर्यंचना एम ४८ भेद. १४ नरकनी गती ७ नारकी पर्याप्ती ७ अपयाप्ती एम १४ भेद ___ २२ एकेंद्रीनी मार्गणा ए ४ पृथ्वीकाय ४ अपकाय ४ तेउकाय ४ वाउकाय ६ वनस्पती काय एम २२ भेद. २ बेइंद्री मार्गणा ए १ पर्याप्ता १ अपर्याप्ता एम २ भेद. २ तेइंद्रीनी मार्गणा ए १ पर्याप्ता १ अपर्याप्ता एम २ भेद. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७५ ) २ चौरींहीनी मार्गणा ए १ पर्याप्ता १ अपर्याप्ता एम २ भेद. ५३५ पंचेंद्रिीनी मार्गणा ए १९८ देवताना ३०३ मनुष्यना. २० तिर्यच पंचेंद्रिीना १४ नारकीना एम ५३५ भेद. ४ पृथ्वी कायनी यार्गणा एम १ सुक्षम १ बादर २ पर्याप्ता २ अपर्याप्ता मिलकर ४ भेद. ४ अपकायनी मार्गणा एम सुक्षम १ बादर २ पर्याप्ता २ अपर्याप्ता मिलकर ४ भेद. ४ ते कायनी मार्गणा एम १ सुक्षम १ बादर २ पर्याप्त २ अपर्याप्ता मिलकर 8 भेद. ४ वाउकायनी मार्गणा एम १ सुक्षम १ बादर २ पर्याप्ता २ अपर्याप्ता मिलकर ४ भेद. ६ वनस्पतीनी मार्गणा एम २ प्रत्येक वनस्पती काय : पर्याप्ता १ अपर्याप्ता २ भेद- ४ साधारण वनस्पती काय ते एम 3 सुक्षम Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) १ बादर २ पर्याप्ता २ अपर्याप्ता मिलकर ४ भेद. ५४१ त्रसकायनी मार्गणा एम १९८ देवताना ३०३ मनुष्यना २० तिर्यच पेचंद्री १४ नारकीना ६ विगलेंद्रीना एम मिलकर ५४१ भेदः । ___२१२ मनयोगनी मार्गणा एम ९९ देवताना पर्याप्ता १०१ मनुष्यना पयाप्ता ५ तिर्यंच पेचेंद्रीना पयाप्ता ७ नारकीना पर्याप्ता मिलकर २१२ भेद. २२० बचन योगनी मार्गणा एम कि २१२ मनयोगवाला अने ५ तिर्यच पेचेंद्री असंनीना पर्याप्ता ३ विगलेंद्रीना पर्याप्ता एम २२० भेद__ ५६३ काया योगनी मार्गणा ए सर्व याने ५६३ भेद. ४१० पुरुष वेदनी मार्गणा एम १९८ देवताना २०२ मनुष्यना पर्याप्ता १०१ अपर्याप्ता ११ मिलकर २०२ भेद १० तिर्यंच पेचेंद्रीना गर्भज पर्याप्ता अपर्याप्ता १०भेद सब मिलकर ४१० भेद. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ ३४० स्त्रियों वेदनी मागर्णा एम १२८देवबाना १५ परमाधामीना १० भुवनपतीना १६ वाणव्यंतरना १० तिर्यगजंभकना १० जोतिषीना १ किविषियाना २ देवलोकना एम ६४ पर्याप्ता ६४ अपर्याप्ता मिलकर १२८ भेद २०२ गर्भज मनुष्यना १० गर्भजतियचपंचेंद्रिीना एम ३४० भेद १९३ नपुंसक वेदनी मार्गणा एम १४ नारकीना ४८तिर्यंच पंचेंद्रीना १०१ समुर्छिममनुष्यना ना ३० कर्मभूमीना पर्याप्ता अपर्याप्ता मिलकर १९३ भेद. ५६३ क्रोधनी मार्गणा ए ५६३ भेद. ५६३ माननी मार्गणा ए ५६३ भेद. ५६३ मायानी मार्गणा ए ५६३ भेद५६३ लोभनी मार्गणा ए ५६३ भेद. ४२३ मतिज्ञाननी मार्गणा ए १३ नारकीना सातमी नरकना अपर्याप्ता बिना १०तिर्यचगर्भज, पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एम १० भद Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८ ) २०२ मनुष्य गर्भज पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एम २०२ भेद देवताना १९८ भेद. ४२३ श्रुतज्ञांननी मार्गणा ए १३ नारकीना १० तीर्यंचना २० २मनुष्यना १९८ देवताना सर्व ४२३ भेद २४६ अवधिज्ञान मार्गणा ए १३ नारकीना ५ तिर्यच गर्भज पर्याप्ताना १९८ देवताना ३०म नुष्यगर्भजना कर्मभूमीना १५ पर्याप्ता १५ अपर्याप्ता एम ३० १५ मनपर्यवज्ञान मार्गणा ए १५ मनुष्यगभंजना कर्मभुमी पर्याप्ता १५ केवलज्ञाननी मार्गणा ए १५ गर्भजमनुष्य कर्म भुमीना पर्याप्ता. ५३५ मतिअज्ञान मार्गणा ए१४ नरकना, ४८ तिर्यचना ३०३ मनुष्यना १०० देवताना एम ९ लोकातिकना ५ अनुत्तर विमानना ए १४ पर्याअने अपर्याप्ता मिलकर २८ बिना १७० भेद लीना५३५ श्रुतअज्ञान मार्गणा ए मति अज्ञाननी परे जाणवा. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९) २२४ विभंग अज्ञान मार्गणा ए १४ नस्कना' १० तिर्यचना ३० मनुष्यना १५कर्म भुमिना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता १७० देवताना ९ लोकांतिकना ५ अनुत्तरविमान १४ पर्याप्ता१४अपर्याप्ता मिलकर २८ बिना १७० भेद. । १५ सामाइक चारीतने १५ कर्म भुमिना पर्याप्ता. १. छेदोपस्थापनिक चारीत्रने १० मनुष्य ५ भरत ५ ऐरावत एम १० भेद. १० परीहार विसुध चारीत्रने १० मनुष्यना उपर परमाने ___ १५ सुक्ष्म संपराय चारीचना १५ कर्मभुमि मनुष्यना. - १५ यथाख्यात चरित्रना १५ मनुष्य कर्म भुमिना. २० देशविरती चारीत्रना १५ कर्म भुमिना मनुष्य ५ तिर्यंच गर्भज पर्याप्ताना २० भेद: Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८० ) ५६३ अविरती चारीत्रना. २१८ चक्षु दर्शन मार्गणा ए ७ नारकीना पर्यात्पा १९ तिर्यचना ५ संज्ञी पंचेंद्री पर्यात्पाना ५ असंज्ञी पंचेंद्रिीना पर्याप्ता १ चउद्री पर्याप्ता ना १०१ मनुष्य गर्भज पर्याप्ताना ९९ देवताना पर्याप्ताना एकंदर मिलकर २९८ भेद. ५६३ अचक्षु दर्शन मार्गणाने विषे . २४६ अवधी दर्शन मार्गणा ए अवधीज्ञान नी परे जाणवो. १५ केवलदर्शन मार्गणा ए कर्मभुमीनामनुष्य ४५९ कृष्ण लेश्यानीमार्गणाए नारकीना पांचमी १ छठी १ सातमी एम ३ नरकना पर्याप्ता अने ३ अपर्याप्ताना एम ६ भेद ४८ तिर्यंचना ३०३ मनुष्यना १०२ देवताना १५ परमाधामी १० भु वनपतीना १६ वाणव्यंतरना १० तीर्यगजंभकना ५१ पर्याप्ता अने अपर्याप्ता मिलकर १०२ भेद. ४५९ नीललेश्या ए ६ नारकीना वीजी १ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८१) चोथी १ पांचमी १ एम ३ नरक पयांप्ता अने अपर्याप्ता ६ भेद ४८ तिर्यचना ३०३ मनुष्यना १०२ देवताना कृष्ण लेश्यानी परे. ___४५९ कापोत लेश्या नी मार्गणा ए ६ नारकी ना १ पहेली १ बीजी १ त्रीजी एम ३ नारकी पर्याप्ता अपर्याप्ता ६ भेद ४८ तिर्यंचना ३०३ मनुष्यना १०२ देवताना कृष्णलेश्यानी परे जानवा. ३१३ तेजूलश्यानी मार्गणा ए १३ तिर्यंचना १०गर्भज तिर्यंचपर्याप्ता अने अपर्याप्ता३ पृथ्वीकाय १ अपकाय १ वनस्पती एम मिलकर १३ मनुष्य गर्भजना २०२ पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, ९८ देवताना १० भुवन पती १६ वाणव्यंतर १० तिर्यग. जंभक १० जोतीषी १ किल्विषीयानो २ देवलोक एकंदर ४९ पर्याप्ता अने ४९ अपर्याप्ता ९८ भेद. ६६ पद्मलेश्यानी मार्गणा ए १० तिर्यचना गर्भज पर्याप्ता अने अपर्याप्ता ३० मनुष्यना १५ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) कर्मजभूमिना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता २९ देवताना त्रीजो, चौथु, पांचमुं ३ किल्वीपीयानो अने ९ लोकांतिक एम १३ पर्याप्ता अने १३ अ. पर्याप्ता एम २६ भेद. ____८४ शुक्ललेश्या नी मार्गणा ए १० तिथंचना ३० मनुष्यना ४४ देवताना १ छठं १ सातमुं १ आठमुं १ नवमुं १ दशमुं १ ग्यारमुं १ बारमुं देवलोकना १ किल्वीषियानो ९ नवग्रैवेग ५ अनुत्तर विमान एम २२ पर्याप्ता अने २२ अपर्याप्ता मिलकर ४४ भेद. ५६३ भव्यनी मार्गणा ए सर्व ५६३ भेद. ५०५ अभन्यनी मार्गणा ए १५ परमाधामीना ९ लोकांतिक ना ५ अनुत्तर विमनना एम २९ पर्याप्ता अपर्याप्ता ५८ बिना ५०५ अने ९ लोकांतिकना ५ अनुत्तर विमानना एम १४ पर्या: प्ता अने अपर्याप्ता २८ भेद बिनगणीये तो ५३५ भेद. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८३) २०३ उपसमकित नी मार्गणा एनरकीना पर्याप्ता ना ५ तिर्यंचना गर्भज पर्याप्ताना १०१ मनुष्यना गर्भज पर्याप्ता ना ९० देवताना ९ लोकांतिक विना पर्याप्ताना सर्वार्थसिद्धि नो ? नगणी ए तो २०२ भेद. १६८ खाइक समकित नी मार्गणा ए६ ना. स्कीना पहीली, बीजी, त्रीजी, एम ३ पर्याप्ता ३ अपर्याप्ता ६ नारकांना २ तिर्यंचना थलचर प; याप्तिा अने अपर्याप्ता २ भेद. ___ ९० मनुष्यना १५ कर्मभुमिना पर्याप्ता अने ३. अकर्म भुमिना एम ४५ पर्याप्ता अने अपयप्तिा ९० भेद. ___७० देवताना १२ देवलोक ९ लोकांतिक ९ नवौवेक ५ अनुत्तर विमानना एम ३५ पर्याप्ता अपर्याप्ता ७० भेद ४२३ खयोप समकिर्तना मार्गणा ए १३नारकीना १० तिर्यंचना २०२ मनुष्यना १९८देवताना: Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) १९८ मिश्रसमकितनी मार्गणा ७ नारकीना पर्याप्ता ८५ देवताना ९ लोकांतिक ५ अनुत्तर विमान एम ९४ पर्याप्ताना विना ८५ देवताना ५ तिर्यंच पंचेद्री पर्याप्ताना १०१ मनुष्यना गर्भज पर्याप्ताना. ४०. सास्वादन समकितनी मार्गणा ए नरकना पर्याप्ताना २१ तिर्यंच गतिना ३ एकेद्री अपर्याप्ताना 'पृथ्वीकाय आपकाय १ वनस्पती काय ३ पर्याप्ता ३विगकेंद्री अपर्याप्ताना ५ अस नी अपर्याप्ताना १० संत्री अपर्याप्ताना, पर्याप्ताना २०२ मनुष्गतिना गर्भज पर्याप्ता अपर्याप्ताना १७० देवताना ९ लोकांतिकना ५ अनुत्तर विना विमानना एम ९४ पर्याप्ता १४ अपर्याप्ता २८ १७० देवताना. ५३५ मिथ्यात्वनी मार्गणा ए ५६३ माहेथी ९ लोकांतिकना ५ अनुत्तर विमानना एम १४ पर्याप्ता १४ अपर्याप्ता २८ विना ५३५ भेद. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८५) ४२४ संनीनी मार्गणा ए ५६३ माथी २२ एकेंद्रीना ६ विगलेंद्रीना १० असन्नी तिर्यंच पंचेद्री ना एम ३८ समुर्छिम १०१ मनुष्यना एम १३९ विना ४२४ भेद. १३९ असन्नीनी मार्गणा ए २२ एकेंद्रीना ६ विगलेंद्रीना १० तिर्यच पंचेद्री समुर्छिमना १०१ मनुष्य समुर्छिमना एम १३९ भेद. ५६३ आहारनी मार्गणा ए सर्व. ३४७ अणाहीरानी मार्गणा ए ७ नारकीना अपर्याप्ताना २४ तिर्यचना सर्व अपर्याप्ताना २१७ . मनुष्यना एम १०१ समुर्छिमना १०१ गर्भज अपर्याप्ता १५ कर्म भुमिना पर्याप्ता एम २१७ . भेद ९९ देवताना अपर्याप्ताना एम सर्व ३४७ भेद. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिसंयोगी भांगा. | त्रिसंयोगी भांगा म उदीक १ उपसम क्षायक ११ उपसम क्षायक | क्षीपसम २ उयसम क्षोपसम १२ उपसम क्षायक | उदीक . उपसम उर्दाक १३ उपसम क्षायक परिणामिक १ उयसम परिनामीक १४ उपसम | क्षोपसम | उदीक ५क्षायक क्षोपसम १५ उपसम क्षोपसम परिणामिक ६क्षायक उदीक १६ उपसम उदीक परिणामिक क्षायक | परिणामिक १७क्षायक क्षोपसम क्षोपसम | उदीक १८ क्षायक | क्षोपसम परिणामिक ९ क्षोपसम | परिणामिक १९क्षायक परिणामिक १० उदीक परिणामिक २० क्षोपसमा उदीक परिणामिक चतुर्थ संयोगी भागा २१ उपसम क्षिायक क्षोपसम उदीक २२ उपसम |क्षायक क्षोपसम परिणामिक २३ उपसम क्षायक उर्दाक परिणामिक २४ उपसम क्षोपसम उदीक परिणामिक २५क्षायक क्षोपसम |उदीक परिणामिक Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८७) पंच संयोगी भांगा. २६ उपसम । क्षायक । क्षोपसम | उदीक परिणामिक सर्व२६ बांसठ मार्गणा ऊपर त्रेपन भाव मार्गणा उपसम क्षयक क्षयकउपसम उदीरत परिणामिक सर्वमाव ६२ २ ९ १८ २१ ३ १७ ३ ३ ३७ ५० . س १ देवगती १ २ मानवगतीर ३ तियंचगती१ ४ नरकगती १ ५ एकेंद्रीजाति० ६ बेइंद्रीजाति० ७ तेइंद्रीजाति० १ ९ १ १ . . ० १५ १८ १६ १५ ८ ८ ८ २५ १३ १४ १३ १३ ३ ३ ३ । ३ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) . ९ . ९ १० १३ २१ ३ ३ २५ ५३ س ८ ८ १४ १३ ३ ३ س س ८ चोरोंदाजाति ९पचंद्री २ १. पृथ्वीकाय.. ११ अपकाय • १२ तेउकाय . १३ वउकाय • १४ वनस्पती ० १५ असकाय २ १६ मनोयोग २ १७ वधनयोग २ १८ काययोग २ १९ भावेद २ २० पुरुषवेद २ २१ नपुंसकवेद२ २२ क्रोध २ س س ० . . . १ ९ १ ९ ९ १ १ १ س १८ १८ २१ २१ س س س م १८ س Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ ३ ३ २३ मान २ २४ माया . २ २५ लोभ २ २६ मतज्ञिान २ २७ श्रुतज्ञान २ २८ भवधिज्ञान२ २९ मनपर्यव,,२- ३० केवल ० ३१ मतिभज्ञान० ३२ भूत ,. ३३ विभंग , . ३४ सामायक-२ चारित्र ३५ छेदोपस्था २ ३६ परिहार- १ विशुद्धी १ १८. १८ . १ १८ १८ १ १८ १८ २ १५ १९ २ २ १५ १९ २ . १४ ९ . १०. २१ . . १० २१ १ १ १ १४ १४ १५ १४ २ . Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ सुक्ष्म संपरा ३८ यथाख्यात २ ३९ देशावरती १ ४० असंयम १ ४१ दर्शन २ ४२ भचक्षुदर्शन२ ४३. अवधिदर्शन २ ४४ केवल ४५ कृष्णलेश्या १ ४६ निल १ ४७ कापति, १ ४८ तेजो ४९ पद्म 13 " 99 " ५० शुक्ल ” ५१ भव्य १ १ २ ४ १ १ १ १ १ ४ (१०) १३ १२ १३ १५ १८ १८ १५ o ૨૮ १८ છુટ १८ १८ ૪૮ ૨૮ oc m १७ २१ २१ २१ १९ ३ १६ १६ १६ १५ १५ १५ २१ A 2 m W m ३ m m ov २२ २८ ३५ ર ४६ ४६ ४० १३ ३९ ३९ ३८ ३८ १७ ५२ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ س (९१) ५२ अभव्य ... ... १० २१ २ ३३ । ५३ क्षायकउप ० . . . १५ - १९, २. ३६ ५४ उपसमिक २ . १४ - १९ , २ . . ३७ ५५ क्षायक १ ९ १४ - १९ . २. ४५ ५६ मिश्रसम . . १४ १९ . २ ५७ मिथ्यासम० . ० १० २१ ३ ३४ ५८ सास्वादन .. .. १० २० २. ३२ ५९ संझी २ ९. १८ २१. २१ ३ . ५३ । ६० अशी . . . ९ १५ .. ३ .. २७ . । ६१ माहारक २ ९ : १८ . २१ , ३ . ५३ ६२ अणाहारक१ ९ १५. २१ ३ ४९ ६३ मिथ्यात्व ० . १० २१ ३ ३ गुणठाणा ६४ सास्वाद, . ६५ मिभ , . १२ १०. २ ३३ ६६ अविरती ,१ १ १२ १९ २ ३५ س Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ३३ (९२) ६७ देशाविरती,१ १ १३ १७ . २ ६८ प्रमथ १ १ १४ १५ २ ६९ अप्रमय ,१ . १. १४ ७० अपूर्वकरण,१ १ १३ ७१ अनिवृत्ति,२ १ . १३ ७२सुक्ष्मसंवरा,२ १ १३ ४ २ ७३उपशांतमो,२ १ १२ ३ २ ७४ खीणमोह, २ १२ ३ २ ७५ संयोगी , ९ ० ३ १ ७६ अयोगि , ९ ० २ १ सम्पूर्ण थयो. २२ २० १९ १३ १२ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) पांचसो त्रेपन जीवना भेद द्विप क्षेत्र आसरी. नर्कना तिर्यचना १४ ४८भेद ० ४८ क्षेत्र १ भरत में २ ऐरावत में ३ महाविदेह में ४ जंबुद्विपमें ५ लवणसमुद्र में ६ धातकीखंड में ७ कालोदधिस. raigar वरत द्विपमें नंदीश्वर द्विप प्रमुख ८ १० तिर्छालोक में ११ अर्धलोक में ० ० 0 ० O ० ० ० 0 १४ ४८ ४८ ४८ ૪૮ છૂટ ४: ४८ ४६ बादरते उकायटली. ४८ ४८ मनुष्य ना ३०३भेद ३ कर्मभूमी ३. २७ कु. ३.क.ग.प. अ. स. ९. प. अ.स. १६८-५६ अंतरद्वीप प.अ.स. ५४कु. ६क.ग.प.अ. स. २८ प. अ.स. ० ५४कु. ६क.ग.प.भ. स. १८५.अ.स. O ३०३ देवताना सर्वसंख्या १९८ भेद ५६३ ० ५१ ५१ ५१ O ० ० ० ७२दे. १६ व्यं १० ज्यो १०त्रीयक प.अ. ७५ २१६ १०२ ४८ १०२ ४६ ४२३ ३उडाविजे सॅनीनो ५०कु१५५ ११५ प. अ. छे. १० भुप अ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) | २ .. नर्कना क्षेत्र भी १२ उर्धलोकमें . तिर्यंचना मनुष्यना देवताना सर्वसं. भेद - ३०भेद १९८भेद ५६३ ७६देव१२३० ४६थलचर ३कि.९.९ बे नथी लो.प. अ.५ अनुत्तरविमान .. ४८ ४८ ३०३ | १३ मेरुगिरपर्वत ० १४ अढाईद्विपमें ० ४८दे.१२ प.अ. १५ बार देवलोकमें . २० तेउकाय टाली . दे.९लो.३ कि.प.अ. १४कु.५सु.प.अ.२ १६ नव प्रेविकमें • बाद.प.अ.पृथवी . १८९या ३२ वाउ4 अ. १७ लोकनेछेहडे . १२ती.१०सु.प.अ. ° २वा.प.अ.पृथवी |१८ आधी गांवमें ० ४८ ३ ० ५१ | १९ मुठ्ठीमें , . ४ नंदीश्वर समु. . प्रमुख में " तेउ बादर टाली ० ० ४६ पेला आराना युगलिया→ ३ पत्योपमनुं आयुष्य ३ कोसनुं शरीर चोथे दिवसे तुवर प्रमाणे अहार करे ५५६ पासली १९ दिवस प्रति पालणाकरे बीजे आरे २ पल्योपमनुंआयुष्य २ कोसनुं शरीर त्रीने दिवसे बोर प्रमाणे अहार करे १२७ पासली ६१ दिवस प्रतिपालणा करे, Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९५ ) त्रीजा आरना युगलियानुं एक पल्योपमनुं आयुष्य १ कोसनुं शरीर एकांतरे आमला जेटलो अहार करे ६४पांसली ७९ दिवस प्रतिपालणाकरे ३ अजीवना धर्मास्तिकाय आकास्ति कालास्तिका पुद्गलास्ति सर्वसंभेद५६० अधर्मास्ति १६ काय ८ ६ काय५३० ख्या भेद २१ भरतक्षेत्र १४ संघटाल्यो २२ जंबुद्विप १४ धटाल्यो २३ २४ लवण समुद्र १४घटाल्यो ७खंध कालना६भेद टाल्यो मांथी १टाल्यो ७खंध कालना ६भेद टाल्यो मांथी १टाल्यो ७ खंध कालना ६भेद टाल्यो मांथी टाल्यो नंदीश्वर १४ घटाल्यो द्विप ७बंध टाल्यो ५३० ७३० ५३० ५३० जीवना चउदा भेद ऊपर गुणठाणा, योग, उपयोग, लेश्या, बंध, उदय, उदीरण, सत्ता. ५५७ ५५७ ५५७ ५५१ जीवना १४ भेद- गुण. योग. उपयोग. लेइया. बंध उदे. उदीरतो. सत्ता. १४ संशीपचेंद्री पर्याप्ता १४ १५ १२ ६ ७८ ८७ ४८७८२ ६९ ४ ६५२ १३ सशीपचेंद्री भ. प. ३ ३ ४ ६ ७८ ८ ७८ O ८ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९६ ) जीवना १४ भेद. गुण. योग. उपयोग. लेइया. बंध उदे. उदीरतो. सत्ता. १२ असनीपचेंद्री पर्याप्ता. १ २ ११ असन्नी पंचेंद्री अ. प. २२३ १० चौरिंद्री पर्याप्ता. १ २ ९ चौरिंद्री भ. प. २२३ १ २ २ २३ १ २ ८ तेइंद्री प. .७ तेइंद्री अ. प. ६ बेइंद्री प. २ २३ ५ बेइंद्री अ. प. ४ बादर एकेंद्री प. १ ३ ३ बादर एकेंद्री अ. प. २ २३ २ सुक्षम एकेंद्री प. ३ सुक्षम एकेंद्री अ.प. १२३ १ १ 20mm r t m mm N ४ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ७८ ८ ७८ ३ ७८ ३ ७८ ७८ ३ ७८ ८ ३ ३ ७८ V v ७८ ३ ४ ७८ ८ ७८ ८ ८ ७८ ३ ७८ ८ ७८ ३ ३ ७८ UV U V V V V V V ८ ८ ७८ ८ * * * * * * ८ ८ ७८ ८ २ २ ७८ ८ ७८ ३ ३ ७८ ८ VV ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ शेस कूट नी गीनती. पांच भरत अने पांच ऐरावत ए दस क्षेत्रनी तीस चोवीसी तेना सातसेने बीस प्रतिमा थयी पांच महाविदेह क्षेत्रनी पांच बत्रीसी तेना एकसौने साठ प्रीतीमा थई एकसोने बीस कल्या णक बीस वेरमान चार सास्वता सर्वे मलीने एकहजारने चोवीस प्रतिमा थई. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९७) चारासालाख जीवाजोनीना प्राण, पर्याप्ती, इन्द्री. ___ चोरासी लाख जीवाजोनीनी इन्द्री दोक्रोड पृथ्वीकाय सातलाखअपकाय सातलाखतेउसकाय सातलाखवाउकाय दसलाख प्रत्येकवनस्पतीकाय चउदालाख साधारणवनस्पतीकाय ए बावनलाख एकेन्द्रीनाथई बेइंद्रानी चार लाख तेइंद्रीनी छे लाख चौरींदीनी आठलाख त्रणविकलेंद्रानीअठारा लाख इन्द्री थई देवतानी बीसलाख नारकीनी बीस लाख तिर्यंचपंचेंद्रीनीबीसलाख मनुष्यनीसत्तरलाख सर्वे मिली बे कोड इन्द्री थई. चौरासी लाख जीवा जोनीना प्राण५ कोड १० लाख बावनलाख एकेंद्रीना ४ प्राण तेने चार गुणा करतांबे कोड आठ लाख प्राण थया बेइंद्रीना बारालाख तेइंद्रीना चउदलाख प्राण थया चौरींदीना सोलालाख प्राणथया त्रण विकलेंद्रीना बेतालीस लाख प्राण थया देवताना चालीसलाख नारकीना चालीस लाख तीर्यचपंचेंद्रीना चालीस Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (98) लाख मनुष्यना एक क्रोड चालीस लाख सर्वना भेगा करता पांच कोड दस लाख प्राण थया. 3 कोड 94 लाख // चौरासी लाख जीवा. जोनीनी पर्याप्ती // बावन लाख एकेंद्रीनी चार पर्याप्ती तेने चार गुणा करता बे क्रोड आठ लाख पर्याप्ती थई बेइंद्रिने दसलाख तेइंद्रीने दस लाख चरिद्रीने दस लाख त्रण विकलेंद्रीने तीस लाख पर्याप्ती थई देवतानी 24 लाख नारकीनी चोवीस लाख तीर्यच पंचेंद्रीनी चोवीस लाख मनुष्यनी चोवीस लाख पर्याप्ती सर्वे भेगीकरता 3 कोड चोराणु लाख पर्याप्ती थई. PARTWAH FEATURE समाप्त. PERSUISONE