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१४३) समकितदृष्टि गुणठाणो, पांचमो देशवृत्ती गुणगणो, छटो प्रमत्त गुणठाणो, सातमो अप्रमत्त गुणठाणो, आठमो अपूर्व गुणठाणो, नवमो अनिवृत्ती बादर गुणठाणो, दसमो सुक्षम संपराय गुणठाणो, इग्यारमा उपशांत मोह गुणठाणो, बारमो खीणमोह गुणठाणो तेरमो संयोगी गुणाणो, चवदमो अयोगीगुणगणा.
॥ हवे लक्षण दूर लिख्यते ॥ ___ पहिलो मिथ्यात्व गुणठाणानो लक्षण कहे छ ।
श्री वीतराग निवार्ण अधिक ओछी प्ररूपे विपरीत सरदे जिन धर्म ऊपर दुष्ट परिणाम राखे कुदेव, कुगृरू कुधर्म कुशास्त्र ४ बोल ऊपर आस्ता राखे तेहने मिथ्यात्व गुणठाणो कहिये छे । त्यारे श्रीगो. तमश्वामी हात जोडी मानमेडिी विनय नमस्कार करी श्री भगवंतने पूछता हवा स्वामीनाथ एहने शुं गुण नीपन्यो त्यारे श्री भगवंत देवजी बोल्या अहो गोतम गुण ए निपन्यो जीव रूपी दंडी