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(५१) शुक्लध्यान लब्दी १०, एम १० बोल सहित १४ गुणठाणे आवे इहां चारी अध्यात्मकर्म क्षय करीने निर्वाण जाय ॥ इति लक्षण द्वार संपूर्ण ॥ २१ ॥
हवे स्थिती द्वार लिख्यते । पहिला गुणठाणानी स्थिती तीन प्रकारनी अभवी आसरी अनादी अनंत भवी आसरी अनादी सान्त पड़वाई समदृष्टि जाणवो तेहनी स्थिती जघन्य अन्तर मुहुर्त उत्कृष्टो अर्ध पुद्गल देश उणी१, बीजा गुणठाणानी स्थिती जघन्य १ सम्योत्कृष्टि ६ आवलिकानी स्थिती त्रीजा गुणठाणानी स्थिती जघन्य उत्कृष्ट अन्तर मुहुर्तनी चोथा गुणठाणानी स्थिती जघन्य अन्तर मुहुर्त उत्कृष्टी ६६ सागर झाझेरी पांचमा छठा तेरमा गुणठाणानी स्थिती जघन्य अन्तर मु. हुर्त उत्कृष्टो १ कोडी पूर्व देश उणी सातमा गुण. ठाणासु मांडीने इग्यारमा गुणठाणा सुधी जघन्य एक सम्यो उत्कृष्टो अन्तर मुहुर्त बारमा गुणठाणा नी स्थिती जघन्य उत्कृष्टी अन्तरमुहुर्तनी चवदमा