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थी अनंत गुण विशुद्ध ने उपशान्त मोहनी थी हीण तेमाथी संजलनो लोभ घणो जाडो हतो ते सुक्षम मात्र रह्यो ॥ ११ ॥ हवे उपशान्त मोहनी गुण ठाणानी स्थिती कहे छे जघन्य एक समय नी उत्कृष्टी एक मुहूर्त ते सुक्षम गुण ठाणा थी अनंत गुणु विशुद्ध ने क्षीण मोहनी थी हीण तेमां थी मोहनी कर्मनी प्रकृति उपस मावी राखी छे केवी रीते के कादव वाला पाणी माहें कादव वेशी गयो छे पण जो कोइक माणस अन्दर पगमूके तो बधो कादव उपर आवी जाय तेवी रीते उप समावी राखी छे ॥ १२ ॥ हवे क्षीण मोहनी गुण ठाणानी स्थिती कहे छ जघन्य एक समय ने उत्कृष्टी अन्तर मुहर्तनी उपशान्त मोहनी गुण ठाणा थी अनन्तगुण विशुद्ध ते सजोगी थी हीण तेमाह थी मोहनी कर्म खपान्यो हवे तेनो लक्षण कहे छे जारे मोहनी कर्मनो क्षय थयो त्यारे यथा ख्यात चारित्रनी प्राप्ति थई जेम कोई माणस समुद्रमा