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स्त्री रत्न, ए सात पंचेंद्री । तिर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, केवली, साधु, श्रावक, सम्यकत्व दृष्टी, मंडलिक राजा ए नव निधान प्रथम नरक नो नीकल्यो जीव सात एकेंद्री रत्न विना सोल संपदा पामें । बीजी नरकनोनीकल्यो जीव जीव सात एकेंद्री रत्न चक्रवर्ती विना पनर संपदा त्रीजी नरकनो निकल्यो जीव सात एकेंद्री चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, विना तेर संपदा पामें । चोथी नरकनो निकल्यो जीव तिथंकर विना बार संपदा पामे । पांचमी नरकनो नीकल्यो जीव केवली विना ग्यार संपदा पामें। छठी नरकनो नीकल्यो जीव दस संपदा पामें साधु विना सातमी नरकनो नीकल्यो जीव लण संपदापामें। अश्व, गज, समकित ये तीन ॥ दस भुवनपति, व्यंतर, योतिषी ए बार दंडकनो निकल्यो जीव तिर्थकर वासुदेव विना एकवीसं संपदा पामें । पृथ्वी, पाणी, वनस्पती, तियेच पंचेंद्री, मनुष्य