Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji

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Page 28
________________ (२६) भुवनपतिना भुवन सात कोडी ने बहोतर लाख भुवन | हवे भुवन पतिना भुवन कहे छे । एक लाख अस्सी हजारयोजन रत्नप्रभा पृथ्वीनो पिंडछे। ते मध्ये एक हजार योजन उपर मुकिये, हजार योजन हेठा मुकिये, बीचमा एकलाख अढोतर हजार योजन नी पोहोलाण छे । ते मांहे संख्याता असंख्याता योजन ना भुवन पतिना भुवन छे । सुक्षम पांच, थावर तीन, विगलेंद्री, तिर्यंच पंचेंद्री लोकने देशे देशे छे । मनुष्य, बादर, अभिकाय अदी द्वीपमां छे । व्यंतर देवता रत्नप्रभा पृथ्वी नो उपलो एक हजार योजन ते मध्ये एक सौ योजन उपर मुकिये अने सौ योजन नीचे मुकिये बीचमें आठसौ योजन मांहीं असंख्याता नगरछे । व्यंतरना नगर भरत क्षेत्र जेवडाछे । मध्ये महाविदेह जेवडा छे, उत्कृष्टा जंबूदीप जेवडा छे, योतिषी ना विमान असंख्याता छे, संभुतला पृथ्वी थी मांडीने सात सौ ने नेव योजन तारा छे, ते उपर

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