Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji

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Page 46
________________ (४४) " कर्म रूपी लाकडी चारगतीने चोवीसी दंडके भमे पण शातानो ठिकाणो नथी। हवे २ सास्वादन गुणठाणानो लक्षण कहे छे । तेहनो दृष्टांत कहे छे जेम कोईक मनुष्य खीर खांडनो भोजन जीम्यो हतो ते समान तो समकित पाछो वमन कीधो त्यारे कोई पुरुष पूछो तुं काई जीम्यो त्यारे कह्यो खीरनो स्वाद रह्यो ते समान सुस्वादन समकित । बीजो दृष्टांत घंटानो नाद पहिलेतो गहिर गंभीर शब्द निकले ते समान तो समकित पाछो रणकारो रहिगयो ते समान सास्वादन गुणठाणो । त्रीजो दृष्टांत जीव रूपी आंत्रो अने परिणामरूपी • डाल समकित रूपी फल, परिणाम रूपी डालीथी समकित रूपी फल टुटो ते मिध्यात्व रूपी धरती • ता आव्यो तेहने सास्वादन गुणठाणो कहिये त्यारे श्री गोतमश्वामी पूछता हवा स्वामीनाथ एहने शुं गुण निपन्यो त्यारे श्री भगवंतजी बोल्या अहो गोतम गुण. ए निपन्यो कृष्णपक्षनो शुक्ल पक्ष थयो ~

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