Book Title: Tattvabodhak Kalyan Shatak
Author(s): Hemshreeji
Publisher: Hemshreeji
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(६३) दंडक २ लाभे मनुष्य १ तिर्यच २ छटा गुणठाणासु मांडी चवदमा गुणठाणा सुधी मनुध्यनो दंडक १ । इति दंडक द्वार संपूर्ण २१ .
हवे जीवा जोनी दार लिख्यते। पहिले गुणठाणे ८४००.०० लाख जीवा जोनी लाभे बीजो गुणगणे ३२००००० लाख लाभे ५२ एकेंद्रीनी टली बीजे गुणठाणे चोथे गुणठाणे २६००००० लाभे जीव लाभे ६ विकलेंद्रीनी टली पांचमां गुणठाणे १८०००० जीव लाभे ८ देवता नारकी टली छठा गुणठाणासु मांडी चवदमां गुणठाणासुधी १४००००० लाख मनुष्यनी जोनी लाभे । इति जीवाजोनी सं.
हवे संतर द्वार लिख्यते । संतर कहता आंतरो पडतो पहिले गुणठाणे केटलो पडे जघन्य अन्तर मुहुर्तनो उत्कृष्टी ६६ सागर झाजेरो बीजा गुणठाणासु मांडी इग्यारमा गुणठाणा सुधी आंतरो जघन्य अन्तर मुहरतर्नु उत्कृष्टो अर्ध पुद्गल देशे उणो बारमें तरमै छुटो ते छुटो फेर पाछो न आवे

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